मथुरा। न्यूज वाणी गोवर्धन गुरू के प्रति समर्पण के भाव का दूसरा नाम ही मुड़िया पूर्णिमा है। पूरे देश में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाये जाने वाले गुरू पूर्णिमा पर्व को यहां मुड़िया पूर्णिमा के नाम से मनाते हैं। मुड़िया शब्द की उत्पत्ति मुंडन से हुई है। जो कि अपने गुरू के प्रति अगाध प्रेम और समर्पण की भावना को उजागर करता है। चैतन्य महाप्रभु के कृपापात्र शिष्य श्री सनातन गोस्वामी जी महाराज ने ब्रज में रहकर ब्रजवासियों व अपने शिष्यों को भगवान की लीलाओं का अनुसरण कराया। जब वे इस जगतचर को छोड़कर ब्रह्म लीला में विलीन हुए तो ब्रजवासी ही नहीं बल्कि उनके शिष्यों ने उनकी याद में अपने सिर का मुंडन कराया। गुरू की याद में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को ही सिर मुंडन कराया और हरिनाम संकीर्तन के बीच करीब 500 साल पुरानी परंपरा में आज भी गौड़ीय संप्रदाय के साधु-संत व ब्रजवासी सनातन गोस्वामी के महाप्रयाण को लेकर परिक्रमा करते हुए शोभायात्रा निकालते हैं। पूज्य सनातन गोस्वामी महाराज ने ब्रजमंडल में आकर विलुप्त तीर्थों की खोज की और उनके महत्व के बारे में बताया। उनका तिरोभाव शकाब्द 1476 में हुआ था। श्रीपाद सनातन गोस्वामी महाराज प्रतिदिन चक्लेश्वर स्थित चैतन्य महाप्रभु जी की बैठक के समीप भजन कुटीर में रहकर हरिनाम संकीर्तन और गिरिराज महाराज की परिक्रमा किया करते थे। उनका शरीर भी आषाढ़ मास की पूर्णिमा को ही पूरा हुआ। आज भी सनातन गोस्वामी जी महाराज की भजन कुटीर चक्लेश्वर पर स्थित है। मुड़िया पूर्णिमा मेला की चक्लेश्वर से अलग-अलग दो गुटों की शोभायात्राऐं निकाली जाती हैं। 500 साल से चली आ रही परंपरा की शोभायात्राऐं अपने आप में अनूठी हैं। इस बार मुड़िया पूर्णिमा मेला के समापन पर 27 जुलाई को पहली शोभायात्रा श्यामसुंदर मंदिर के महंत रामकृष्ण दास महाराज के निर्देशन में सुबह 9 बजे और दूसरी शोभाया़त्रा महाप्रभु जी मंदिर के महंत गोपाल दास बाबा के निर्देशन में निकाली जायेगी। इन शोभायात्रा से पूर्व गौड़ीय संप्रदाय के साधु-संत भजन कुटीर में भजन संकीर्तन व अधिवास कर रहे हैं।