नई दिल्ली। दिल्ली सरकार के अस्पतालों में पहचान पत्र दिखाने पर ही मरीजों को विशेष सुविधाएं मिलेंगी जबकि बाहर के मरीजों के लिए मुफ्त दवाएं व जांच की सुविधा बंद की जा सकती है। दिल्ली सरकार ने अस्पतालों में बाहरी मरीजों की भीड़ कम करने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर जीटीबी (गुरु तेग बहादुर) अस्पताल में यह प्रयोग शुरू करने का निर्देश दिया है। इसके तहत जीटीबी अस्पताल में बाहर से इलाज के लिए आए मरीजों को निशुल्क दवा व जांच की सुविधा नहीं मिलेगी। जीटीबी अस्पताल में सरकार ने 20 दिन में यह प्रयोग शुरू करने का निर्देश दिया है। दिल्ली के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अनुसार, करीब अस्पतालों में करीब 40 फीसद मरीज बाहर से आते हैं। सरकार ने अधिकारियों के साथ बैठक कर अस्पतालों में भीड़ व चिकित्सा सुविधाओं की समीक्षा की। इसमें यह बात सामने आई कि अस्पतालों में मरीजों की भीड़ पहले के मुकाबले बढ़ गई है। जीटीबी अस्पताल में करीब 80 फीसद मरीज दूसरे जगहों से इलाज के लिए पहुंचते हैं। इस कारण दिल्ली के लोगों को सुविधा का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है।
इसके बाद सरकार ने यह तय किया है कि जीटीबी अस्पताल में दिल्ली के मरीजों के लिए पंजीकरण के अतिरिक्त काउंटर शुरू किए जाएंगे और बाहरी मरीजों के लिए कम काउंटर रहेंगे। बाहरी मरीजों को ओपीडी में चिकित्सकीय परामर्श व इमरजेंसी में इलाज की सभी सुविधाएं मिलेंगी पर ओपीडी के मरीज दवा व जांच के हकदार नहीं होंगे। वैसे भी दिल्ली सरकार के ज्यादातर अस्पतालों में एमआरआइ, सीटी स्कैन जैसी जांच की अत्याधुनिक सुविधाएं नहीं हैं। कई अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड की भी सुविधा नहीं है, इसलिए सरकार ने निजी लैबों से करार किया। उन लैबों में दिल्ली के मरीजों के लिए ही निशुल्क जांच की व्यवस्था है। यह सुविधा लेने के लिए दिल्ली का मतदाता पहचान पत्र होना अनिवार्य है। इस तरह निजी लैबों में निशुल्क जांच की सुविधा से बाहर के मरीज पहले से महरूम हैं। नए आदेश के बाद जीटीबी अस्पताल में उपलब्ध जांच की सुविधाएं भी बाहर के मरीजों को नहीं मिल पाएंगी। सरकार ने जीटीबी अस्पताल में 20 दिन में उक्त प्रयोग शुरू करने को कहा है। सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। सवाल यह है कि क्या क्षेत्र के आधार पर देश के राजधानी के सरकारी अस्पतालों में मरीजों के इलाज में भेदभाव सही है। राष्ट्रीय राजधानी में देशभर के लोग आते हैं। क्या यह उनके साथ भेदभाव नहीं है। सरकार के इस फैसले के बाद इसे लेकर बहस शुरू हो गई है।