कोरोना के डर से मौत के बाद शिमला में ही जलाए गए 210 में से 190 शव,  अपने गांव नहीं ले गए अपनों के शव

बताते चले कि माैत के बाद हर व्यक्ति काे उसके पैतृक गांव में ही जलाने की परंपरा है। चाहे व्यक्ति देश के किसी काेने में हाे या विदेश में उसे घर जरूर लाया जाता था। मगर काेराेना के डर लाेगाें में इस कदर है कि शिमला जिला में कुछ ही किलाेमीटर दूर भी अगर किसी व्यक्ति के घर थे ताे भी मरने के बाद उसे घर पर जलाने के लिए नहीं ले जाया गया।मृतक व्यक्ति काे अपनाें काे माैत के बाद भी घर की मिट्टी नसीब नहीं हाेने दी। यही कारण है कि शिमला जिला में मई माह में 210 लाेगाें की माैत जिला शिमला में हुई। यह माैत आईजीएमसी, डीडीयू, सुन्नी, राेहड़ू एरिया में हुई। मगर इसमें करीब 190 शवाें काे शिमला के कनलाेग स्थित श्मशानघाट में ही जला दिया गया जबकि मात्र 20 लाेगाें काे ही मरने के बाद घर की मिट्टी नसीब हाे पाई।काेराेना काे डर लाेगाें में इस कदर था कि बीते वर्ष काेराेना से मरने वालाें की अस्थियां लेने तक काेई परिजन नहीं आ रहा था। कनलाेग स्थित श्मशानघाट में ही करीब 70 लाेगाें की अस्थियां लेने पहले काेई नहीं आया था। हालांकि बाद में जब सूद सभा ने लाेगाें से संपर्क किया था। उसके बाद लाेगाें ने यहां से अपने परिजनाें की अस्थियां उठाई थी।मरने के बाद लाेगाें काे घर पर इसलिए भी जलाने नहीं ले जाया गया क्याेंकि जब काेराेना की शुरुआत हुई थी ताे उस समय प्रशासन और सरकार ने काेराेना प्राेटाेकाेल के तहत शिमला में ही शवाें काे जलाना शुरू किया था। इसमें शव काे जलाने के बाद पूरे श्मशानघाट काे भी सेनेटाइज किया जाता था।इसके अलावा किसी काे वहां पर आने जाने की अनुमति नहीं हाेती थी। मगर अब प्रशासन ने शवाें काे घर ले जाने की अनुमति भी देनी शुरू कर दी है, मगर अब यदि शवाें काे घर ले भी जाएं ताे वहां पर कांधा देने के लिए काेई नहीं मिलता। प्रदेश में कई जगहाें से ऐसे मामले आ चुके हैं कि शवाें काे जलाने के लिए या ताे प्रशासन काे आगे आना पड़ा या फिर खुद परिजन कंधे पर उठाकर शवाें काे ले गए।बीते वर्ष काेराेना का पहला मामला मई माह में आया था। उसके बाद सालभर काेराेना के मरीज आते रहे, इसमें माैतें भी हुई। में एक साल में मई माह काेराेना मरीजाें के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक रहा। मई माह में ही सबसे ज्यादा 210 मरीजाें की माैत हुई। इसके लिए कनलाेग श्मशानघाट में में अलग से तीन शेड भी तैयार करने पड़े।इससे पहले अप्रैल माह में 150 के करीब लाेगाें की जान काेराेना से गई थी, जबकि बीते वर्ष में दिसंबर तक 180 के करीब लाेगाें की माैत हुई थी। वहीं मामले भी मई माह में सबसे ज्यादा आए हैं। जिला शिमला में 4000 से ज्यादा मरीज मई माह में ही आए। शिमला में हुई मौतों के बाद संक्रमण के डर से परिजनों ने शिमला में अंतिम संस्कार करवाना सही समझा।मई माह में सबसे ज्यादा काेराेना शवाें काे कनलाेग में जलाया गया। यहां पर करीब 190 शव पूरे मई माह में जलाए गए। उनका कहना है कि काेराेना प्राेटाेकाेल के कारण लाेग शिमला में ही अपने परिजनाें का दाह संस्कार कर रहे हैं।

Leave A Reply

Your email address will not be published.