महाराष्ट्र के रहने वाले  प्रदीप पुराने टायर और इंडस्ट्रियल वेस्ट से बनाते हैं फर्नीचर और होम डेकोरेशन आइटम्स, कमाते है सालाना एक करोड़ 

आपको बताते चले कि महाराष्ट्र के पुणे के रहने वाले प्रदीप जाधव एक बेहद ही सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनका बचपन तंगहाली में गुजरा। पिता खेती करके परिवार का खर्च चलाते थे। 10वीं के बाद उन्होंने ITI की पढ़ाई की और फिर तीन साल का डिप्लोमा किया। इसके बाद उन्होंने वायर बनाने वाली एक कंपनी में कुछ साल काम किया। कुछ पैसे इकट्ठे हो गए तो उन्होंने 2016 में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की।इसके बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में उनकी नौकरी लग गई। कुछ साल उन्होंने यहां काम किया। फिर 2018 इंडस्ट्रियल वेस्ट को अपसाइकल  करके फर्नीचर तैयार करने का बिजनेस शुरू किया। आज उनकी कंपनी का टर्नओवर एक करोड़ रुपए है।29 साल के प्रदीप कहते हैं कि कंपनी में काम करने के दौरान ही मुझे यह एहसास हो गया था कि बहुत दिनों तक 5 से 9 का काम मैं नहीं कर पाऊंगा। मेरी स्किल सही जगह पर इस्तेमाल नहीं हो रही थी। तब मैंने एक बुक शॉप खोली। कुछ दिनों तक किसानों के लिए ड्रिप इरिगेशन वाले पाइप और मशीन बेचने का भी काम किया, लेकिन कुछ खास हाथ नहीं लगा। उल्टे घाटा ही होने लगा जिससे मुझे ये कारोबार बंद करना पड़ा।प्रदीप कहते हैं कि 2016 में खुद का काम छोड़कर बतौर मेंटेनेंस इंजीनियर नौकरी करने लगा। इस दौरान काफी कुछ सीखने को मिला। मैं चीन भी गया। वहां की टेक्नोलॉजी और लोगों के काम करने के तरीके को समझा। ठीक-ठाक सैलरी थी, सब कुछ अच्छे से चल रहा था। वे कहते हैं- मुझे शुरुआती बिजनेस में घाटा जरूर हुआ था, लेकिन मैंने कोशिश नहीं छोड़ी थी। मैं अक्सर नए-नए आइडिया के बारे में सोचता रहता था।प्रदीप बताते हैं कि 2018 में उन्होंने यूट्यूब पर एक वीडियो देखा। इसमें एक आदमी पुराने और बेकार टायरों की मदद से कुर्सी बना रहा था। प्रदीप के लिए यह एक नई चीज थी। उनकी दिलचस्पी बढ़ी और उन्होंने इस तरह के और भी वीडियो देखने शुरू किए। कई सारे वीडियो देखने और इंटरनेट से जानकारी जुटाने के बाद प्रदीप को लगा कि ये काम वे अपने यहां भी कर सकते हैं। इस तरह के वेस्ट उनके आसपास बहुत हैं। इसलिए रॉ मटेरियल की दिक्कत नहीं होगी।प्रदीप कहते हैं कि मैंने इस आइडिया को लेकर अपने दोस्तों से बात की, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उनका कहना था कि इसमें कोई स्कोप नहीं है। ये चीजें देखने में सुंदर हो सकती हैं, लेकिन इसका बिजनेस करना आसान नहीं होगा। इसके बाद मैंने अपने घर वालों से बात की। उन्होंने सपोर्ट जरूर किया, लेकिन वे नहीं चाहते थे कि अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर मैं रिस्क लूं। मुझे भी लगा कि नौकरी छोड़कर काम शुरू करना सही नहीं होगा, क्योंकि परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। इसलिए प्रदीप ने नौकरी के साथ ही साल 2018 में अपने काम की शुरुआत की। वे ऑफिस से वापस लौटने के बाद अपने काम में जुट जाते थे। देर रात तक वे फर्नीचर तैयार करने का काम करते थे।प्रदीप के मुताबिक अपसाइकल करने के लिए जरूरी मशीनें, ऑफिस के लिए जगह और बैनर-पोस्टर तैयार करने में करीब 2 लाख रुपए खर्च हुए थे। ये पैसे मेरी सेविंग्स के थे। शुरुआत के तीन महीने उन्हें कुछ खास हाथ नहीं लगा। इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पेज बनाया और उस पर अपने प्रोडक्ट की फोटो पोस्ट करने लगे। वे हर तस्वीर के साथ उसके बारे में भी विस्तार से लिखते थे। वे लोगों को बताते थे कि ये फर्नीचर किस प्रोडक्ट को अपसाइकल करके बनाया गया है। इसमें किन चीजों का इस्तेमाल किया गया है और इसकी कीमत क्या है। इसके बाद उन्हें कई लोगों ने फोन किया और प्रोडक्ट खरीदने में दिलचस्पी दिखाई।वे बताते हैं कि सबसे पहले पुणे के एक कैफे वाले ने उनसे कॉन्टैक्ट किया था। प्रदीप ने उस कैफे के लिए टेबल और चेयर बनाए थे। साथ ही कैफे को डिजाइन करने और बेहतर लुक देने में भी मदद की थी। वहां जो भी ग्राहक आते थे, वे कैफे की डिजाइन की तारीफ करते थे। कई लोग तो उस कैफे के जरिए ही प्रदीप के कस्टमर भी बन गए। इसके बाद उनका कारवां बढ़ता गया। एक के बाद एक ऑफिस और कैफे की डिजाइनिंग और फर्नीचर के लिए उनके पास ऑर्डर आने लगे।प्रदीप कहते हैं कि जब अच्छी-खासी संख्या में लोगों के ऑर्डर आने लगे, बढ़िया कमाई होने लगी तो 2019 में नौकरी छोड़ी दी और अपना पूरा समय अपने बिजनेस को देने लगा। वे कहते हैं कि अभी मैं सोशल मीडिया के साथ-साथ देशभर में कई कंपनियों और बिजनेस मैन के लिए भी ऑफिस डेकोरेशन और फर्नीचर तैयार करता हूं। इस तरह के 500 से ज्यादा प्रोजेक्ट पर मैं काम कर चुका हूं। अभी हमारे साथ 15 लोग काम कर रहे हैं। वे बताते हैं कि कोविड और लॉकडाउन के चलते हमारा कारोबार जरूर प्रभावित हुआ है, फिर भी पिछले साल हमने एक करोड़ रुपए का टर्नओवर हासिल किया था।

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