भारत में कितना कारगर फाइजर का टीका, सर्वे में दावा फाइजर की वैक्सीन से ओरिजनल वैरिएंट के मुकाबले भारत के डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ 5 गुना कम एंटीबॉडीज बनी

आपको बताते चले कि भारत में कोरोना की अमेरिकी वैक्सीन फाइजर का आने का रास्ता साफ हो रहा है और जल्द ही ये देश में मिलने लगेगी। लेकिन एक स्टडी में बताया गया है कि फाइजर का टीका ओरिजनल वैरिएंट के मुकाबले भारतीय डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ 5 गुना कम एंटीबॉडीज पैदा करेगा।लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ती उम्र के साथ-साथ इन एंटीबॉडीज की वायरस को पहचानने और उनसे लड़ने की क्षमता भी घटती जाएगी। डेल्टा वैरिएंट और उससे जुड़ी परेशानी बढ़ाने वाले 4 वैरिएंट अब तक सामने आए हैं। इनमें पहला अल्फा यानी B.1.1.7 है। यह पिछले साल सितंबर में ब्रिटेन में मिला था। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका में बीटा और ब्राजील व जापान में गामा वैरिएंट मिले। पिछले साल अक्टूबर में भारत में डेल्टा वैरिएंट यानी B.1.617 मिला। ये वैरिएंट परेशानी वाले इसलिए हैं क्योंकि ये गंभीर लक्षण पैदा करते हैं। तेजी से फैलते हैं और एंटीबॉडीज को भी चकमा दे सकते हैं।फाइजर के टीके के इमरजेंसी इस्तेमाल का अप्रूवल भारत में दिया जा चुका है। इसे जल्द से जल्द लाने के लिए केंद्र सरकार ने अमेरिकी कंपनी की लोकल ट्रायल न करने की शर्त भी मान ली है। इसके अलावा एम्स ने यह भी कहा है कि फाइजर का टीका भारत में बच्चों को भी लगाया जा सकेगा।अमेरिका और ब्रिटेन में फाइजर बच्चों को लगाने की मंजूरी पहले ही दी जा चुकी है। अब तीसरी लहर में बच्चों के ज्यादा संक्रमित होने की आशंका है। दूसरी बात डेल्टा वैरिएंट भारत में है। ऐसे में फाइजर का टीका और इसका डेल्टा लिंक हमारे लिए बेहद अहम है।फाइजर पहली वैक्सीन है जो बच्चों को लगाई जा रही है। फाइजर ने कहा है कि वह इस साल 5 करोड़ डोज भारत को देने को तैयार है। इस बीच लैंसेट जर्नल की स्टडी सामने आई है, जो कहती है कि डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ फाइजर ओरिजनल वैरिएंट के मुकाबले 5 गुना कम एंटीबॉडी पैदा करेगी। एंटीबॉडी की वायरस को पहचानने और लड़ने की क्षमता उम्र के साथ-साथ कम होती जाएगी।ये भी वक्त के साथ-साथ घटेगी। ये रेस्पॉन्स तब और कम होता जाएगा, जब किसी को एक ही डोज लगेगा। या फिर दो डोज के बीच के बीच अंतर लंबा होगा। अब भारत में कोवीशील्ड के दो डोज के बीच अंतर को 6-8 हफ्तों से बढ़ाकर 12 से 16 हफ्ते कर दिया गया है। फाइजर के मामले में अभी ये अंतर तय नहीं किया गया है।ब्रिटेन ने अपनी स्टडी में पाया कि फाइजर का टीका पहले के वैरिएंट की तुलना में मौजूदा वैरिएंट के खिलाफ कम एंटीबॉडी पैदा करता है। ये उस स्थिति की बात है जब किसी को पहली डोज दी जाए। लंदन में द लेगेसी स्टडी की सीनियर क्लीनिकल रिसर्च फैलो एम्मा वाल का कहना है कि हमारी स्टडी ये कहती है कि एंटीबॉडीज वाली समस्या को दूर करने के लिए दो डोज के अंतर को कम किया जाए। इसके साथ ही जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है, उन्हें बूस्टर डोज भी दिया जाए। इन स्टडीज के बाद ब्रिटेन ने दो डोज के बीच के अंतर को कम करने का फैसला लिया है। भारत भी ऐसा कदम उठा सकता है।लैंसेट की स्टडी में कहा गया कि ओरिजिनल वैरिएंट के खिलाफ फाइजर की सिंगल डोज लेने वाले 79% लोगों में एंटीबॉडीज बनीं। लेकिन अल्फा के खिलाफ ये आंकड़ा 50% तक गिरा डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ गिरावट 32% रही बीटा वैरिएंट के खिलाफ ये कमी 25% तक पहुंच गई। रिसर्च में यह भी कहा गया कि लोगों को हॉस्पिटल जाने से बचाने के लिए वैक्सीनेशन का परसेंटेज हाई रखना होगा।

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