अब होगा आंख की बीमारी का जोंक से इलाज:  पटना के  आयुर्वेदिक अस्पताल में पुरानी पद्धति से मरीजों पर होगा बड़ा प्रयोग

पटना। मेडिकल साइंस के आधुनिक युग में भी  आयुर्वेद इलाज की पुरानी पद्धति पर काम कर रहा है। बिना सर्जरी के ग्लूकोमा के इलाज पर बड़ा प्रयोग किया जा रहा है। घाव और चर्म रोग की गंभीर बीमारी में भी जोंक से इलाज का बड़ा प्रयोग चल रहा है। राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज पटना में एक दर्जन से अधिक मरीजों पर प्रयोग चल रहा है। इसमें पोस्ट कोविड के मामले काफी अधिक हैं। प्रयोग सबसे अधिक आंखों में जमा गंदे खून के इलाज में काफी सफल साबित हुआ है। अब अलग-अलग बीमारियों को बिना सर्जरी के ठीक करने की कोशिश की जा रही है।

आंखों में कोविड के बाद  बढ़ा संक्रमण

राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज पटना के प्रिंसिपल डॉ. दिनेश्वर प्रसाद ने बताया कि पोस्ट कोविड के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसमें आंखों की समस्या के सबसे अधिक आ रही है। किसी की आंख लाल हो जा रही है तो किसी को दिखाई देना कम हो गया है। ऐसे मरीजों की संख्या जब तेजी से बढ़ने लगी तो अस्पताल में पुरानी पद्धति को आगे बढ़ाने पर काम किया गया जिससे दवा या ऑपरेशन का कोई साइड इफेक्ट नहीं हो। ऐसे मरीजों का इलाज जलौका पद्धति (जोंक) से करने का निर्णय लिया गया। डॉ दिनेश्वर प्रसाद का कहना है कि यह बड़ा प्रयोग था जो अब सफल हो रहा है।

डॉ मुकेश का पुरानी पद्धति को लेकर बड़ा प्रयाेग

केरल से आयुर्वेद की विशेष पढ़ाई कर पटना राजकीय आयुर्वेदिक अस्पताल में तैनात हुए डॉक्टर मुकेश इलाज की पुरानी पद्धति को फिर से लाने में जुटे हैं। वह जलौका यानी जोंक से इलाज में काफी पारंगत हैं। हालांकि उन्होंने आयुर्वेद में सर्जरी की पढ़ाई की है, लेकिन उनका पूरा जोर पुरानी पद्धति पर है जिसमें बिना सर्जरी के ही इलाज किया जाता है। बड़ी-बड़ी सर्जरी को भी इलाज से टाल दिया जाता है। ऐसी ही पद्धति है जलौका जिसमें जोंक के माध्यम से मरीजों का इलाज किया जाता है।

3 से 4 बार में हो रहा है गायब आंखों का गंदा खून

राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज एंड अस्पताल के प्रिंसिपल डॉ दिनेश्वर प्रसाद का कहना है कि पोस्ट कोविड में आंखों की बढ़ती समस्या को लेकर जलौका से उपचार करना शुरु किया गया। इसमें फंगस जैसे मामले भी शामिल हैं। मरीज की आंखों में गंदा खून जमा हो जाता है जिसे आयुर्वेद की प्राचीन पद्धति में इसे बिना सर्जरी के ठीक करने की कोशिश हो रही है। ऐसे मरीजों को अस्पताल में भर्ती किया जा रहा है और उनकी आंखों में जलौका यानी जोंक को लगाया जा रहा है। वह बिना किसी दर्द के मरीज की आंखों का सारा गंदा खून चूस ले रहा है। डॉ. दिनेश्वर प्रसाद का कहना है कि 3 से 4 बार में ही इस पद्धति से मरीज पूरी तरह से सही हो जा रहा है।डॉ. दिनेश्वर प्रसाद का कहना है कि आंखों की गंभीर बीमारी भी इस विधि से ठीक की जा रही है। मोतियाबिंद के मामले भी जो बिना ऑपरेशन ठीक नहीं होते हैं उन्हें इस विधि से ठीक किया जा रहा है। कई मरीजों पर प्रयोग किया गया है जो सफल होता दिख रहा है। प्रयोग पूरी तरह से सफल हुआ तो मरीजों को ऑपरेशन के बड़े झंझट से काफी हद तक मुक्ति मिल जाएगी।धुबनी के राकेश कुमार की आंखों में काफी समस्या थी लेकिन संक्रमण का आयुर्वेद की पुरानी जलौका पद्धति से पूरी तरह से ठीक कर लिया गया है। आंखों में थोड़ी लालिमा है, उसके खत्म होते ही छुट्‌टी दे दी जाएगी।

यह घाव और चर्म रोग में भी काफी कारगर है 

राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज अस्पताल के प्रिंसिपल का कहना है कि ऐसे घाव जो बिना सर्जरी के लिए नहीं ठीक हो पाते हैं उन्हें भी जलौका विधि से ठीक करने की कोशिश की जा रही है। ऐसे चर्म रोग जो जल्दी ठीक नहीं होते हैं उन्हें भी इसी विधि से ठीक किया जा रहा है। प्रिंसिपल का कहना है कि अस्पताल में बेड की समस्या है, 200 बेड हैं, जिसमें 100 पर मरीजों को भर्ती कर जलौका विधि से इलाज का प्रयोग किया जा रहा है। इसमें चर्म रोग के साथ आंखों के मरीज हैं। अलग-अलग विभागों में मरीजों को रखा गया है। मरीजों पर प्राचीन पद्धति से इलाज का प्रयोग किया जा रहा है जो सफल हो रहा है। आंखों में ग्लूकोमा के इलाज में बड़ी कोशिश की जा रही है जो काफी सफल हो रहा है। केरल से आए डॉक्टर मुकेश कुमार सालाक्य विभाग यानी ईएनटी एंड आई में हैं। वह पुरानी पद्धति से इलाज की विधि में नई जान डाल रहे हैं।

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