बता दे कि केरल सरकार के अधिकारियों ने दो महीने पहले बहुत भरोसे के साथ यह दावा किया था कि राज्य में कोरोना वायरस पर काबू पा लिया गया है। 12 मई को यहां नए केस पीक पर पहुंचे। तब एक दिन में 43,529 लोगों में संक्रमण की पुष्टि हुई। इसके बाद से केस लगातार कम होने लगे। अधिकारियों ने फिर दावा किया कि अगले दो-तीन हफ्तों में दूसरी लहर खत्म हो जाएगी। दूसरी लहर से बेहतर तरीके से निपटने के लिए दुनिया भर में केरल मॉडल की तारीफ हुई।
अब नए आंकड़े बताते हैं कि देश के आधे से ज्यादा नए केस केरल में मिल रहे हैं। बुधवार को देश में 43,132 केस मिले, इनमें से 22,056 केरल के थे। शुक्रवार को भी यहां 20 हजार से ज्यादा केस मिले। लगातार चौथे दिन राज्य में संक्रमितों की संख्या 20 हजार से ज्यादा रही है।
कोरोना से बिगड़े हालात इशारा कर रहे हैं कि दूसरी लहर खत्म होने का दावा जल्दबाजी में किया गया था। भारत में मेडिकल फैसिलिटी के मामले में बेहतर राज्यों में शुमार केरल अब भी संक्रमण से जूझ रहा है। जून में यहां हर दिन औसतन 8 हजार केस मिल रहे थे। इसके बाद से केस का ग्राफ फिर ऊपर की बढ़ने लगा।
राज्य में 35% आबादी को पहला और 16% को दोनों डोज लग चुके हैं। देश में अब तक सिर्फ 8% को दोनों डोज लगे हैं। इसके बावजूद केरल में संक्रमण क्यों बढ़ रहा है? इसका जवाब मिलना बाकी है। मशहूर वायरोलॉजिस्ट गगनदीप कंग का मानना है कि केरल कोरोना को काबू में रखने की कामयाबी का शिकार हो सकता है।
माना जा सकता है कि राज्य में केस डिटेक्ट करने में कोताही नहीं बरती जा रही है इस वजह से मरीज ज्यादा संख्या में मिल रहे हैं। इस पर वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील कहते हैं कि मैं केवल एक ही जवाब देख सकता हूं कि केरल बहुत बड़े पैमाने पर टेस्ट कर रहा है और ईमानदारी से इन्हें रिपोर्ट कर रहा है। ऐसा करके वह डेथ रेट कम रखने की कोशिश कर रहा है।हालांकि, कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह देखने के लिए और जांच की जरूरत है कि क्या केस बढ़ने की कोई और वजह भी हो सकती है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की केरल विंग के प्रेसिडेंट इलेक्ट सल्फी नूहू का कहना है कि इसके पीछे कोई और फैक्टर है तो हमें और स्टडी करने की जरूरत है। इसके लिए ज्यादा जीनोमिक टेस्टिंग होती है तो वायरस के नए वैरिएंट्स का पता लग सकता है।
डर है कि केरल से संक्रमण पड़ोसी राज्यों या देश के दूसरे हिस्सों में फैल सकता है। यह पहले से ज्यादा खतरनाक तीसरी लहर आने की वजह बन सकता है। चिंता की बात ये है कि केरल के 14 में से 7 जिलों में पिछले 4 हफ्तों में संक्रमण बढ़ रहा है।इस वजह से सरकार ने आने वाले वीकेंड से राज्य में दो दिन लॉकडाउन लागू करने का फैसला लिया है। एक्सपर्ट्स भी कह रहे हैं कि आने वाले वक्त में आवाजाही पर सख्त पाबंदी लगाने की जरूरत हो सकती है।
केरल सरकार के बनाए वॉर रूम ने अब तक राज्य में बेहतरीन काम किया है। यहां से हॉस्पिटलों के बिस्तरों पर डेटा जुटाने के साथ ही मरीजों की निगरानी भी की जाती है। कोरोना की पीक के वक्त यह मौतों को निचले स्तर पर रखने में कामयाब रहा था। अब भी केरल में दूसरे राज्यों के मुकाबले डेथ रेट कम है। केरल की आबादी में बुजुर्ग बड़ी संख्या में हैं। साथ ही कई लोग डायबिटीज और दूसरी बीमारियों से पीड़ित हैं।
- 29 जुलाई को केरल में 22,056 और महाराष्ट्र में सिर्फ 6,857 थे। तब केरल में महाराष्ट्र की 286 की तुलना में 131 ही मौतें हुईं।
- सीरो पॉजिटिविटी सर्वे में सामने आया है कि केरल में सिर्फ 44% लोगों में एंटीबॉडी मिली है। देश में यह आंकड़ा 67% है।
- केरल की आबादी का बड़ा हिस्सा अब भी संक्रमण की चपेट में है। इसके अलावा इससे बचे रह गए लोग भी संक्रमित हो रहे हैं।
ICMR के सीरो सर्वे से पता चला है कि भारत में नेशनल लेवल पर 33 मामलों में से सिर्फ एक का पता लगाया गया है। वहीं केरल 6 में से एक केस डिटेक्ट करने में कामयाब रहा है। महाराष्ट्र जहां तेजी में मामले अभी कम हो रहे हैं, माना जाता है कि वहां 12 मामलों में से एक का पता चला है।केरल सरकार का कहना है कि उसकी क्लस्टर टेस्टिंग भारत के ज्यादातर हिस्सों की तुलना में ज्यादा प्रभावी है। क्लस्टर टेस्टिंग में उन सभी का टेस्ट करना शामिल है जिनका किसी संक्रमित के साथ कॉन्टेक्ट रहा है।
देश के दूसरे हिस्सों की तरह केरल में भी कोरोना से निपटने में चूक हुई है। राज्य ने पहले लोकल और फिर विधानसभा चुनाव के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों में ढील दी। एहतियात बरत रहे लोग पिछले साल राज्य के मुख्य त्योहार ओणम के दौरान अचानक मिलने-जुलने लगे। चिंता की बात यह है कि ओणम अभी अगस्त में है और अधिकारी आने वाले हफ्तों में कोरोना के मामलों में तेजी की आशंका जता रहे हैं।
फिर भी अब तक राज्य ने हालात का अच्छी तरह से मुकाबला किया है। अधिकारियों का कहना है कि भयानक दूसरी लहर के दौरान भी जनरल वार्ड या ICU में बिस्तर की कमी कभी नहीं हुई। इसके अलावा केरल को अपने मजबूत हेल्थ सिस्टम का फायदा मिला कि यहां ऑक्सीजन भरपूर थी।देश के कई हिस्सों में ऑक्सीजन की कमी के कारण मरीजों के मरने की खबरें आ रही थीं। राज्य सरकार ने जनवरी 2020 में भारत का पहला मरीज मिलने के तुरंत बाद महामारी से निपटने के लिए योजनाएं बनाना शुरू कर दिया था।
शुरुआत में राज्य की कोशिशें इतनी कामयाब रहीं कि दुनिया भर में इसकी तारीफ हुई। तब राज्य की स्वास्थ्य मंत्री रहीं के के शैलजा ने वोग मैगजीन में साल की सबसे प्रभावशाली महिलाओं की लिस्ट में जगह बनाई। ये हालात बदले जब देश के दूसरे हिस्सों से लोग राज्य में लौटने लगे। राज्य सरकार के अधिकारियों ने दिसंबर के आसपास पहली लहर खत्म होने की उम्मीद की थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
एक जवाब लंबा लॉकडाउन हो सकता है लेकिन राज्य सरकार इस विकल्प से बच रही है, क्योंकि इकोनॉमी पहले ही इसका बुरा असर झेल चुकी है। राज्य में कोई बड़ी इंडस्ट्री नहीं है। और केरल के कई परिवार विदेशों से आने वाले पैसों पर निर्भर हैं। कोविड के कारण इसमें भी कमी आई है। कई लोगों की खाड़ी की नौकरियां चली गई हैं और वे वहां से वापस नहीं आ पाए हैं। छोटे दुकानदारों को भी झटका लगा है।कोरोना पर काबू करने के लिए केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने हाल में ऐलान किया कि सिर्फ 50% सरकारी कर्मचारियों को ऑफिस बुलाया जाएगा। साथ ही माइक्रो कंटेनमेंट जोन भी शुरू किए गए हैं। इन्हें आधे-अधूरे उपाय के तौर पर देखा जा रहा है।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि वायरस को खत्म करने का इकलौता तरीका लॉकडाउन हो सकता है और उन्हें इस पर विचार करना चाहिए। कम से कम ज्यादा संक्रमण वाले एर्नाकुलम मल्लपुरम और कोझीकोड में तो इसे लागू करना ही चाहिए। मल्लपुरम में पॉजिटिविटी रेट 17% है। राज्य में यह बढ़कर 13.61% हो गया है। दूसरी लहर में बहुत बुरा वक्त देख चुकी राजधानी दिल्ली में पॉजिटिविटी रेट महज 0.08% है।
केरल सरकार के अधिकारियों का कहना है कि वायरस से लड़ने के लिए वैक्सीनेशन ही इकलौता हथियार है। वे इसके लिए केंद्र की पैरवी कर रहे हैं। 18 से 24 जुलाई के बीच राज्य के 18 लाख लोगों को टीका लगाया गया। वे इस सप्लाई की गति को बनाए रखने के लिए 90 लाख और डोज की मांग कर रहे हैं। केरल में इस सप्ताह टीकों की कमी हो गई है और वह नई खेप का इंतजार कर रहा है।