अगर करा ली शादी से पहले लड़के-लड़की की एचपीएलसी जांच ताे पैदा ही नहीं हाेंगे थैलीसेमिक बच्चे

बता दे कि थैलीसीमिया राेग रक्त विकार है जाे आनुवांशिक है। इससे बच्चों के शरीर में लाल रक्त कोशिकाएं नहीं बन पाती हैं इनमें हीमोग्लोबिन बन नहीं पाता ताे 15 से 20 दिन में खून चढ़वाना पड़ता है। जिले में ऐसे करीब 60 बच्चे हैं जाे थैलीसीमिया राेगी हैं और वे रक्तदाताओं के भरोसे पर ही जिंदा हैं। शादी से पहले अगर लड़के-लड़की जांच करा लें और वे दाेनाें रिपोर्ट में माइनर थैलीसीमिया आते हैं उनकी शादी काे राेका जा सकता है। क्योंकि ऐसे पति-पत्नी से 25 प्रतिशत मेजर थैलीसीमिया बच्चे पैदा की आशंका रहती है। देश में हर साल 10 हजार बच्चे थैलीसेमिक पैदा हाे रहे हैं।

थैलीसेमिक बच्चो को  हर 15 दिन में चढ़ाना पड़ रहा है ब्लड

गाेविंदगढ़ निवासी माेहित (11) पुत्र मुकेश काे दाे महीने की उम्र में हीमोग्लोबिन कम हाेने पर जांच कराई ताे पता चला कि वह ताे थैलीसेमिक है। तभी से हर 15 दिन में खून चढ़वा रहे हैं।

नगर निवासी सवा तीन साल का अंश पुत्र नीरज 3 साल तक सही था उसका अचानक हीमोग्लोबिन कम हाेना शुरू हाे गया। हर माह ब्लड चढ़वाना पड़ता है।

राजगढ़ निवासी निक्की (5) काे 6 महीने की उम्र में जांच कराने पर पता चला कि वह थैलीसेमिक है। पति-पत्नी की जांच कराई ताे दाेनाें माइनर थैलीसीमिया रिपोर्ट हुआ।

 

अगर दाेनाें हैं थैलीसीमिया माइनर ताे शादी राेकना है जरूरी- डॉ. विकास दुआ

गुरुग्राम के फोर्टिस हॉस्पिटल के बाेनमेराे ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ डाॅ. विकास दुआ का कहना है कि थैलीसीमिया कैरियर का एचपीएलसी जांच से ही पता किया जा सकता है। ये जांच भी मात्र 650 रुपए में बाजार में उपलब्ध है। क्योंकि अगर दाे माइनर थैलीसीमिया कैरियर लड़के-लड़की की शादी हाे जाएगी ताे उनके मेजर थैलीसीमिया बच्चे पैदा हाेंगे। अगर एक नाॅर्मल व एक माइनर है ताे काेई समस्या नहीं हाेती। गर्भ में पल रहे 10-12 सप्ताह के बच्चे का भी सीवियस टेस्ट से थैलीसीमिया का पता लगाया जा सकता है, जिससे कानून के मुताबिक 20 सप्ताह के बच्चे का अबाॅर्सन करा सकते हैं। बच्चाे में इसका इलाज सिर्फ बाेनमेराे ट्रांसप्लांट से संभव है।

सिर्फ बाेनमेराे ट्रांसप्लांट से ही संभव है बच्चों का इलाज  – डॉ. अरुण दनेवा

गुरुग्राम के फोर्टिस हॉस्पिटल के बाेनमेराे ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ डाॅ. अरुण दनेवा का कहना है कि थैलीसीमिया ग्रसित बच्चों का इलाज सिर्फ बाेनमेराे ट्रांसप्लांट से ही संभव है जिससे मरीज की खराब बाेनमेराे भी ठीक हाे जाती हैं और उन्हें खून चढ़ाने की जरूरत नहीं हाेती। सगे भाई बहिन या दूसरे स्वस्थ बच्चे का एचएलए टेस्ट मैच हाेने पर बाेनमेराे ट्रांसप्लांट संभव हाे पाता है। क्योंकि दूसरे के रक्त पर जिंदा रहने वाले थैलीसीमिया ग्रसित बच्चे की उम्र 30 साल से ज्यादा नहीं हाेती। बार-बार ब्लड चढ़ाने से हार्ट, लीवर और शारीरिक ग्राेथ वाली ग्रंथियां खराब हाेती हैं। क्योंकि एक यूनिट ब्लड के साथ 200 मिलीग्राम आयरन शरीर में जाता है जाे शरीर से निकल नहीं पाता है।

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