देखो देखो यह कैसा जमाना आया है कैसा जमाना आया है*— राजेश यादव

जुल्म तब भी हो रहा था हुकूमत के इशारे पर जुल्म अब भी हो रहा है हुकूमत के इशारे पर फर्क, फर्क तो इतना ही हुआ है देश डिजिटल नेटवर्किंग का जमाना आया है  हुकूमत के आला कलंदरो की एक आर्टिकल बनाया है / खोज तो देश के महान ज्ञानियों ने की थी प्रोत्साहन हमारे बीच चाटुकारों ने पाया हैं/ जमाना तब ना बुरा था जमाना अब ना बुरा है पहले भाई भाई के लिए मरता था अब भाई भाई को मारता है /
लोग मां बाप की सेवा के गुणगान गाते हैं खुद मां, बाप बन जाते हैं औलाद खरी-खोटी बेजुबा सुनाते हैं/
घरों पर राग गाते हैं दुखों के पहाड़ों का बोझ बनकर घरों के अंदर अंधेरा छाया है तो बाहर चारदीवारी पर दीपक जलाया है/
उन्हें तो तब भी पड़ी थी देश की जनता की उन्हें अब भी पड़ी है देश की जनता की बस फर्क वही डाल रहा है जो स्वार्थी जमाना है/
यहां तो ना कोई अपना है और ना कोई भी बेगाना है देखो देखो यह कैसा जमाना है
/ना हिंदू अपना है ना मुस्लिम अपना है जमाना इतना बुरा हो गया है कि अपना औलाद ही बेगाना है अपना औलाद ही बेगाना है /
मंदिर मस्जिद पर कसमें खाकर सात फेरो की सौगन्ध खाते हैं देखो देखो यह कैसा जमाना आया है कैसा जमाना आया है/
हवस की आग में डूबना पूंजीपतियों ने सिखाया है किसी को दारू पीने (नशे की लत) को बताया है तो किसी को चोरी करना सिखाया है /
मोहब्बत को भी बदनाम करके प्रेम को जालिम ने ठुकराया है कहीं अपनी पत्नी को जलाया है तो कहीं अपने पति को मरवाया है/
हुकूमत ने लाख कानून बनाया हैं  महाजनों ने कानून को गुलाम बनाया है, जुल्म तो उन मजलूमों  पर होता है जिनको इशारे पर नचाया शिखाया  है/ पहले स्वार्थ ने सोचा था फिर स्वार्थी ने नोचा है देखो देखो यह कैसा जमाना आया है जमाना आया है/
लोग अपनों पर खंजर भोंक रहेम दिल पर ना आया है मतलब ना हासिल होने पर उनकी हालत को ना सोचा अपने स्वार्थ के आगे जालिम मजलूमों को हवालात की सैर दिखाया है देखो देखो यह कैसा जमाना आया है जमाना आया है/ *अपना औलाद ही बेगाना है अपना औलाद ही बेगाना है*

Leave A Reply

Your email address will not be published.