अफगानिस्तान में हालात पहले भी खराब थे, अब वो बदतर हो चुके हैं। यहां जारी संकट एक त्रासदी में बदलने के कगार पर पहुंच गई है। अर्थव्यवस्था ढह चुकी है और बड़ी तादाद में लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने अफगानिस्तान में भुखमरी और अकाल की चेतावनी दी है। अफगानिस्तान में हालात कैसे हैं ये समझने के लिए हमने तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान की सीमा पर बसे एक शहर की 19 साल की एक लड़की से बात की। सुरक्षा कारणों से हम उसका नाम और पता जाहिर नहीं कर रहे हैं।
काबुल में तालिबानियों के 100 दिन पूरे हो चुके हैं, लेकिन हमारे यहां वे उससे भी पहले आ चुके थे। हमारे लिए हालात पहले भी आसान नहीं थे, लेकिन अब इतने मुश्किल हैं कि हर दिन एक संघर्ष बन गया है। मैं आगे पढ़ना चाहती थी। इस बार यूनिवर्सिटी में मेरा दूसरा साल था, लेकिन मेरी पढ़ाई छूट गई। मैं अपने घर में कैद हूं। बीते सौ दिनों में मैं घर की दहलीज से बाहर नहीं निकली हूं अपने शहर की गलियों को नहीं देखा है।
बहुत सी बच्चियों की पढ़ाई छूट गई है। मां-बाप उन्हें स्कूल नहीं भेज रहे हैं। उन्हें डर है कि कहीं तालिबान उनके घर पर दस्तक ना दे दें, लेकिन मैं जानती हूं कि आगे बढ़ने और इस दौर से गुजरने का रास्ता सिर्फ एजुकेशन ही है। मैं अपने घर पर आसपास की बच्चियों को पढ़ा रही हूं। एक छोटा सा अस्थाई स्कूल मैंने अपने कमरे में शुरू किया है। रोजाना करीब 30 बच्चियां पढ़ने आती हैं।
मेरे स्टूडेंट के लिए हालात बहुत मुश्किल हैं। यहां 3-4 साल से लेकर 12-13 साल की उम्र तक की बच्चियां हैं। इन सबके परिवारों के आर्थिक हालात खराब हो रहे हैं। बच्चों को भरपेट खाना नहीं मिल पा रहा है जिसकी वजह से उनकी सेहत गिर रही है।
अफगानिस्तान में सर्दियां आ चुकी हैं। मेरा शहर तुर्कमेनिस्तान के रेगिस्तान के पास है। यहां कड़ाके की ठंड पड़ रही है। मेरे दो छात्र हैं, उनके पास सिर ढंकने के लिए गर्म टोपी तक नहीं है। वो कांपते हुए आते हैं और मैं किसी तरह उनका ध्यान रखने की कोशिश करती हूं। मेरे पास भी इतने पैसे नहीं है कि मैं उन्हें टोपी दिला सकूं।
इनके पिता की टांग टूट गई है। वो काम नहीं कर सकते हैं। तालिबान इनकी मां को काम नहीं करने दे रहा है। इनके घर में हालात बहुत मुश्किल हैं। कई बार उनके घर में खाने के लिए नहीं होता है और पड़ोसी मदद करते हैं। आप यहां के हालात इससे समझ सकते हैं कि मेरी एक स्टूडेंट के माता-पिता ने घर चलाने के लिए अपनी दो-तीन महीने की बेटी बेच दी। वो इतने मजबूर हैं कि अपने बच्चों का पेट भरने के लिए अपना बच्चा ही बेच दिया है। ये कुछ दिन पहले की ही बात है। अपनी बहन को बेचे जाने के बारे में बात करते हुए मेरी स्टूडेंट बहुत रो रही थी।
यह परिवार मेरे घर के पास ही रहता है। उनके पास खाने-पीने के लिए कुछ नहीं बचा था। फिर एक निस्संतान परिवार ने उनकी बेटी को खरीद लिया। अब वो अपने घर का खर्च चला पा रहे हैं। यहां ऐसे बहुत से परिवार हैं जो गरीबी और भुखमरी की वजह से अपने बच्चे बेचने को मजबूर हैं। कोई खरीददार हो तो वो 40-50 हजार में बच्चा बेच देंगे और इससे चार-पांच महीने का खर्च चल पाएगा।
मेरे पास तीस बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं। इनमें एक भी परिवार ऐसा नहीं है जो आर्थिक मुश्किलों का सामना नहीं कर रहा हो। लोगों ने पहले जरूरतें पूरी करने के लिए अपने घर के सामान बेचे लेकिन अब लोगों के पास ऐसा कुछ नहीं है जिसे वो बेच सकें।
कई बार तो बच्चियां भूखे पेट ही पढ़ने के लिए आती हैं। मेरा अपना परिवार गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। मेरे पिता इस समय बेरोजगार हैं और मां जो एक शिक्षिका हैं उन्हें चार महीनों से वेतन नहीं मिला है। जो कुछ पैसे उन्होंने बचाए थे वो भी तालिबान ले गए हैं।
कुछ फाउंडेशन यहां लोगों की मदद करते हैं और राहत भेजते हैं, लेकिन तालिबान उसमें से भी आधा हिस्सा ले लेते हैं। मेरे स्टूडेंट के लिए आई मदद में भी तालिबान हिस्सा ले गए थे। तुर्कमेनिस्तान ने अपनी सीमा बंद कर रखी है। बहुत से लोग उज्बेकिस्तान गए हैं। मेरी कई दोस्त अपने परिवारों के साथ शहर छोड़कर जा चुकी हैं। मेरे चाचा का परिवार इस समय पाकिस्तान में हैं।
यहां हर कोई देश छोड़कर जाना चाहता है। पहले मैं सोचती थी कि मैं अफगानिस्तान में रहूंगी और अपने लोगों की सेवा करूंगी लेकिन अब मैं भी यहां से जाना चाहती हूं लेकिन मेरे पास पासपोर्ट नहीं है और ना ही यहां से जाने का कोई रास्ता।
अभी तालिबान ने स्कूलों को खुलने की मंजूरी दे दी है, लेकिन बहुत से लोग डर की वजह से बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं। मेरे शहर के आसपास दायेश (इस्लामिक स्टेट) भी अपना दायरा बढ़ा रहा है। अभी कुछ दिन पहले यहां की मुख्य मस्जिद पर दायेश ने अपना काला झंडा लहरा दिया था। इससे लोगों में डर फैल गया है।
लोगों को आशंका है कि कहीं तालिबान और दायेश के बीच यहां लड़ाई ना छिड़ जाए। हिंसा होगी तो बहुत से लोग मारे जा सकते हैं। डर के इसी माहौल की वजह से भी लोग बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं।
सर्दियां तेज होती जा रही हैं। बहुत से लोगों के पास गर्म कपड़े नहीं हैं। जैसे-जैसे सर्दियां बढ़ेंगी यहां हालात और मुश्किल होते जाएंगे। मुझे अपने छात्रों की फिक्र है। मैं नहीं जानती कि अगर भुखमरी की नौबत आई तो हम क्या करेंगे।