पिछले 25 वर्षों से नगरपालिका में काबिज एकछत्र राज पतन की ओर -वक्त ने बौना किया परिषद के शहंशाह को* *(अवधेश कुमार दुबे)*

 

*✍️”पुरुष बली नहीं होत है समय होत बलवान”* की कहावत एक बार फिर चरितार्थ होते हुए यह साबित कर दिया कि मनुष्य अपने को चाहे जितना बड़ा बलवान समझता हो परंतु एक पल मनुष्य को नेस्तनाबूद करने के लिए काफी होता है नगर पालिका परिषद में पिछले 25 सालों से देखा जा रहा था की एक विशेष वर्ग के ठेकेदार अपनी मनमानी करते हुए बोर्ड का संचालन संपादन कर रहे थे बीच के वर्षों में तमाम अन्य पार्टियों एवं वर्गों के नगर पालिका अध्यक्ष आते और जाते गए जिनको परिषद का बोर्ड चलाने में कठिन परिश्रम का सामना करना पड़ा अपवाद के रूप में इन चयनित अध्यक्षों में चंद्र प्रकाश लोधी का कार्यकाल जरूर इस वर्ग के विरुद्ध नजर आया परंतु फिर भी उन्हें बोर्ड संचालन के लिएअति कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।2 दिन पूर्व की घटित घटना इस बात को सिद्ध करती है कि परिषद के चेयरमैन प्रतिनिधि हाजी रजा कितने निडर और बाहोश थे जिन्होंने भाजपा सरकार के रहते हुए जिला प्रशासन को भी बौना समझ लिया। तमाम आपराधिक इतिहास को समेटे हुए वह राजनीति के पायदान में बराबर उच्च शिखर पर पहुंचने का प्रयास करते रहे एवं कुछ हद तक सफलता भी प्राप्त की परंतु वक्त निश्चित ही करवटें बदलता है जिसके कारण वह आज शहर की राजनीति में निचले पायदान पर आकर खड़े हो गए कुछ भी हो उक्त घटना से निश्चित ही उनके राजनैतिक जीवन का अस्तित्व पतन की ओर अग्रसर हो गया है साथ ही उनके बेखौफ गुर्गों पर भी कड़ी कार्यवाही की आवश्यकता है जिससे समाज में बुरे कर्मों का नतीजा परिलक्षित हो सके। शहर की तमाम सही और गलत जमीनों के अधिष्ठाई रहते हुए अकूत संपत्ति का अर्जन करने के बावजूद उनकी पिपासा शांत नहीं हो सकी जिसके कारण तमाम अनैतिक कार्यों में भी उनकी संलिप्तता देखी जा रही थी परंतु इस आपराधिक खेल के विरुद्ध आवाज उठाना भी जनसाधारण के लिए संभव नहीं था परंतु वक्त की करवट बदलते ही एक छोटी सी घटना ने पूरा परिदृश्य ही बदल कर रख दिया देखना है वक़्त आगे और भी क्या गुल खिलाता है। अभी तो भाजपा के शहर विधायक के तेवरों से प्रतीत होता है की पिछले समय में किए गए तमाम आपराधिक षड्यंत्र निश्चित ही जनता के बीच उजागर होंगे जिसका जीता जागता उदाहरण रामपुर के सांसद मोहम्मद आजम खान है। जिनके विरुद्ध जो कुछ हुआ वह निश्चित ही कभी संभव नहीं समझा जा सकता था परंतु सब कुछ संभव होते हुए आज उन्हें सपरिवार *जेल की हवा खानी पड़ रही है।*

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