यूपी के लखनऊ में एक नवजात के दिमाग का तरल पदार्थ आंखों तक आ जाने के बाद किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के डाक्टरों ने जटिल आपरेशन कर उसे नया जीवन दिया। बच्चे के दिमाग का तरल पदार्थ दोनों आंखों तक लगातार बढ़ता जा रहा था। इससे उसकी आंखें छिप गई थीं। बच्चे की सेहत में सुधार के बाद शुक्रवार को उसे छुट्टी दे दी गई। डाक्टरों का दावा है कि केजीएमयू में इस तरह का पहला आपरेशन हुआ है।
मैनपुरी निवासी विपिन कुमार के बच्चे का जन्म 18 सितंबर को सैफई मेडिकल कालेज में हुआ। नवजात के माथे पर सूजन नजर आई। परिजन नवजात को लेकर केजीएमयू पहुंचे। पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डा. जेडी रावत ने बच्चे को देखा। जांच में बाइलेट्रल नेजल इंसेफलोसिल की पुष्टि हुई। डाक्टरों ने बीमारी रोकने के लिए दवाएं दीं। कुछ समय बाद आपरेशन की जरूरत बताई। 26 नवंबर को बच्चे को आपरेशन के लिए भर्ती किया गया।
जांच पड़ताल के बाद एक दिसंबर को डाक्टरों ने बच्चे का आपरेशन किया। सर्जरी सफल होने के बाद नवजात को कुछ दिन निगरानी में रखा गया। उसकी हालत बेहतर होने के बाद शुक्रवार को उसे छुट्टी दे दी गई। केजीएमयू विशेषज्ञों का दावा है कि इस तरह की बीमारी बहुत कम बच्चों में पाई जाती है। डॉक्टरों की कड़ी मशक्कत के बाद ढाई माह के शिशु को नई जिंदगी मिल गई है।
यूपी के लखनऊ में एक नवजात के दिमाग का तरल पदार्थ आंखों तक आ जाने के बाद किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के डाक्टरों ने जटिल आपरेशन कर उसे नया जीवन दिया। बच्चे के दिमाग का तरल पदार्थ दोनों आंखों तक लगातार बढ़ता जा रहा था। इससे उसकी आंखें छिप गई थीं। बच्चे की सेहत में सुधार के बाद शुक्रवार को उसे छुट्टी दे दी गई। डाक्टरों का दावा है कि केजीएमयू में इस तरह का पहला आपरेशन हुआ है।
मैनपुरी निवासी विपिन कुमार के बच्चे का जन्म 18 सितंबर को सैफई मेडिकल कालेज में हुआ। नवजात के माथे पर सूजन नजर आई। परिजन नवजात को लेकर केजीएमयू पहुंचे। पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डा. जेडी रावत ने बच्चे को देखा। जांच में बाइलेट्रल नेजल इंसेफलोसिल की पुष्टि हुई। डाक्टरों ने बीमारी रोकने के लिए दवाएं दीं। कुछ समय बाद आपरेशन की जरूरत बताई। 26 नवंबर को बच्चे को आपरेशन के लिए भर्ती किया गया।
जांच पड़ताल के बाद एक दिसंबर को डाक्टरों ने बच्चे का आपरेशन किया। सर्जरी सफल होने के बाद नवजात को कुछ दिन निगरानी में रखा गया। उसकी हालत बेहतर होने के बाद शुक्रवार को उसे छुट्टी दे दी गई। केजीएमयू विशेषज्ञों का दावा है कि इस तरह की बीमारी बहुत कम बच्चों में पाई जाती है। डॉक्टरों की कड़ी मशक्कत के बाद ढाई माह के शिशु को नई जिंदगी मिल गई है।