यूपी के बिजनौर में पूस की सर्द रात, तापमान एक से चार डिग्री और फूस के छप्पर के नीचे पुआल के विस्तर पर ठिठुरती गरीब प्रमोद देवी और उसके चार पौते-पौती। हालात ऐसे कि रोटी, कपड़े और मकान के लिए 75 वर्षीय वृद्धा लोगों की दया की मोहताज है। इतने पैसे भी पास नहीं कि बस में सफर कर सरकारी विभागों में जाकर खुद के लिए मदद की गुहार लगा सके। यही नहीं, पांच साल में पति, बेटे और बहू तीनों को खो दिया। प्रमोद देवी की झकझोर देने वाली कहानी तमाम योजनाओं और कैमरों के सामने गरीबों की मदद का दावा करने वालों को आईना दिखा रही है।
नगीना से चार किलोमीटर दूर स्थित ग्राम पंचायत बिंजाहेड़ी के गांव जलालपुर सुल्तान निवासी 75 वर्षीय प्रमोद देवी कच्ची छत के आगे पड़े फूस के छप्पर के नीचे तीन पौती संध्या (6), गुनगुन (4), परी (3) और दो वर्षीय पौते लक्की के साथ रहती है। सभी सिर्फ एक कमरे के मकान में इसलिए नहीं सोते, क्योंकि लकड़ी की जर्जर कड़ी कभी भी गिर सकती हैं।
पांच साल पहले मधु मक्खियों के हमले में पति नत्थू सिंह की मौत हो गई। दो साल पहले करंट लगने से बेटा सुनील चल बसा। पिछले साल बहू राखी की भी कपड़ों में आग लगने से मौत हो गई। प्रमोद देवी की पूरी दुनिया ही मानों उजड़ गई और चार पौते-पौतियों की जिम्मेदारी बूढे़ कंधों पर आन पड़ी।
उनका राशनकार्ड तो बना हुआ है लेकिन उसमें यूनिट एक ही है। जिस पर केवल पांच किलो अनाज मिल पाता है। सिर्फ पांच किलो अनाज में चार पौते-पौतियों को पूरे महीने रोटी नहीं मिल पाती। पड़ोस के रहने वाले लोग दया कर आटा आदि दे देते हैं। लेकिन सर्दी से बचने के लिए उनके पास न रजाई है और न कंबल। पुआल का बिस्तर ही सहारा बना हुआ है।
कमाल यह है कि प्रमोद देवी की इस हालत से तमाम योजनाएं गरीबों तक पहुंचाने का दावा करने वाले सरकारी विभाग और सर्दी में जगह-जगह कंबल, रजाई बांटने का दावा कर रहे सामाजिक लोगों की नजर आज तक नहीं पड़ी। गरीबी का दंश ऐसा कि नगीना तक वाहन से जाने के लिए पैसे नहीं हैं। प्रमोद देवी का कहना है कि मेरे पास चार छोटे पौते-पौती हैं। मेरी सांसें शरीर का साथ कब छोड़ दें पता नहीं, बस अब तो इन बच्चों की चिंता सताती रहती है।
प्रमोद देवी ने कहा कि दो साल पहले बेटे सुनील ने बिजली कनेक्शन कराया था। उसकी मौत के बाद मीटर तो घर में लगा है, लेकिन घर में बल्ब लगाने तक को पैसे नहीं हैं। बिजली विभाग के कर्मचारी सात हजार का बिल मांग रहे हैं और हर माह पर्ची निकालकर बिल जमा करने को कह रहे हैं। घर में खाने, ओढ़ने को पैसे नहीं हैं अब बिल कहां से जमा करूं समझ ही नहीं आ रहा।
प्रमोद देवी कहती हैं कि बेटे ने किसी तरह गैस सिलिंडर तो खरीद लिया था, लेकिन उसके जाने के बाद आज तक उसमें गैस नहीं भरवा सकी हूं। कभी-कभी मन में आता है कि उसे बेचकर घर का कुछ दिन खर्चा चला लूं, लेकिन बेटे की आखिरी निशानी समझकर उसे बेचने की हिम्मत नहीं जुटा पाती।