डॉक्टर्स ने रचा इतिहास,नवजात के पेट के बाहर थी आंतें, 5 घंटे चला ऑपरेशन, पेट में जगह बनाई फिर आंतें डाली अंदर
बिहार के पटना में डॉक्टर्स ने 3 दिन के नवजात को एक नई ज़िन्दगी दी है। बच्चे के जन्म के साथ ही उसकी छोटी और बड़ी आंत पेट से बाहर आ गई थीं। ऐसे में मासूम की जान बचाना डॉक्टरों के लिए भी बड़ी चुनौती थी, लेकिन स्टडी के बाद किए गए ऑपरेशन ने सर्जरी का इतिहास बना दिया है।
डॉक्टर्स की टीम ने 5 घंटे तक ऑपरेशन किया जो सफल रहा। इस ऑपरेशन में सबसे पहले बच्चे के पेट में जगह बनाई गई। फिर उसकी आंतों को पेट के अंदर डाला गया। बच्चे के पेट में जगह बनाना फिर आंतों को अंदर डालना डॉक्टर्स के लिए भी चुनौती से कम नहीं था।
बच्चे को गैस्ट्रोस्काइसिस बीमारी
दरभंगा की रहने वाली सुषमी देवी और रविंद्र साह पहली संतान को लेकर काफी खुशी थे। दरभंगा के एक निजी अस्पताल में सुषमी ने ऑपरेशन के बाद बेटे को जन्म दिया लेकिन जन्म के साथ ही बच्चे की दुर्लभ बीमारी देख डॉक्टर भी हैरान हो गए। सुषमी और उसके पति को जब नवजात की बीमारी का पता चला तो वह भी निराश हो गए लेकिन दरभंगा के डॉक्टरों ने उम्मीद जगाई और इलाज के लिए पटना रेफर कर दिया।
पटना के कंकड़बाग के मेडिमैक्स हॉस्पिटल में रेफर होकर आए नवजात की हालत देख डॉक्टर भी दंग रह गए। नवजात की पूरी आंत पेट से बाहर निकली हुई थी और इसे पेट में जगह बनाकर डालना आसान नहीं था। ऐसा करने से सर्जरी में ही बच्चे की जान जा सकती थी।
ऑपरेशन से पहले डॉक्टरों ने किया बोर्ड बनाकर मंथन
मेडिमैक्स हॉस्पिटल के सीनियर गैस्ट्रो सर्जन डॉ. संजीव कुमार का कहना है कि- यह दुर्लभ बीमारी गैस्ट्रोस्काइसिस है। इस बीमारी के मरीज अब तक बिहार में सुनने में भी नहीं आए थे। ऐसे में डॉ संजीव के लिए नवजात का इलाज करना बड़ी चुनौती थी। हालांकि डॉ संजीव ऐसे ही दुर्लभ बीमारियों के ऑपरेशन के लिए चर्चा में रहते हैं लेकिन नवजात की बीमारी से वह भी मुश्किल में पड़ गए। डॉ संजीव ने नवजात की जान बचाने के लिए ऑपरेशन करने की ठान ली।
इसके लिए पहले एक टीम बनाई गई जिसमें सीनियर पेडियाट्रिक सर्जन डॉ. अशोकानन्द ठाकुर सीनियर एनेस्थेटिस्ट डॉ अरविन्द कुमार आदित्य एवं पेडियाट्रिसियन डॉ राकेश कुमार एवं डॉ अरविन्द कुमार को शामिल किया गया। ऑपरेशन से पहले स्टडी की गई फिर जोखिम भरी सर्जरी की गई।
ऑपरेशन के दौरान आई बड़ी बाधा
डॉ. संजीव कुमार का कहना है कि 3 दिन के नवजात की लगभग 5 घंटे तक सर्जरी चली। इस दौरान बीच में ही ऐसा लगा कि बच्चे को बचाना मुश्किल हो जाएगा। सर्जरी करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि जब पूरी आंत को एबडोमिनल केविटी ( Cavity ) में डाला गया। इस दौरान पेट में जगह बनाना और फिर उसमें आंत को डालने में बच्चे की सांस थम सकती थी क्योंकि पेट में आंत की जगह ही नहीं थी।
डॉक्टरों ने हिम्मत नहीं हारी और इस तरह का पहला ऑपरेशन सफलतापूर्वक कर इतिहास बना दिया। डॉक्टरों का कहना है कि ऑपरेशन के बाद भी बच्चे की जान को खतरा था उसे वेटिंलेटर पर रखा गया लेकिन अब वह पूरी तरह से ठीक है। अब दूध पीकर पचा ले रहा है इससे ऑपरेशन पूरी तरह से सफल माना जा रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि ऑपरेशन के बाद नवजात की मां सुषमी देवी और पिता रविंद्र साह के खुशी का ठिकाना नहीं है, क्योंकि वह उम्मीद छोड़ चुके थे।
सीनियर गैस्ट्रो सर्जन डॉ. संजीव कुमार का कहना है कि गैस्ट्रोस्काइसिस एक बहुत ही गंभीर बिमारी है। इसमें पूरी आंत अपने एबडोमिनल के दायरे से बाहर रहती है तथा उसका स्टोमैक एवं रेक्टम शरीर के अन्दर रहता है। जब भी बच्चा दूध पीता है तो वह स्टोमैक के रास्ते बाहर आता है और फिर छोटी आंत एवं बड़ी आंत होते हुए फिर रेक्टम में अन्दर जाता है।
उन्होंने कहा कि अगर इसका ऑपरेशन जल्दी नहीं किया जाता तो फिर उसको बचा पाना असंभव हो जाता। यह बीमारी दुर्लभ और दस लाख में से एक बच्चे को होती है। इस तरह की बिमारी का सफल ऑपरेशन पहली बार बिहार में किया गया है। डॉ. सजीव ने दरभंगा के डॉ संजीव कुमार को धन्यवाद दिया जाे समय से बच्चे को पटना रेफर कर उसकी जान बचाने में सहायक हुए।