यूपी के वाराणसी में एक ऐसा मुर्दा है जो न सिर्फ बोलता और चलता है बल्कि उसने चुनाव लड़ने के लिए नामांकन पत्र भी दाखिल कर दिया। उसे देखकर कोई डरता नहीं है। उसका नामांकन पत्र खारिज कर दिया गया क्योंकि वह एक मुर्दा है।
आप सोच रहे होंगे कि यह क्या अजीब पहेली है। हम बात कर रहे हैं वाराणसी के चोलापुर के रहने वाले कागजों में मृतक संतोष मूरत सिंह की। वह पिछले 20 वर्षों से अपने जिंदा होने का सबूत शासन प्रशासन को दे रहे हैं लेकिन कोई उन्हें जिंदा मानने को तैयार तक नहीं है।
है जॉली LLB-2 की पटकथा से मिलती जुलती संतोष की कहानी
आपने जॉली LLB-2 फिल्म देखी होगी। उसकी पटकथा से मिलती जुलती कहानी संतोष मूरत सिंह की है। उसमें सीताराम नामक बुजुर्ग को कागजों में मृत घोषित कर दिया गया था और वो अपने जिंदा होने का सबूत मांगने के लिए कोर्ट पहुंचते हैं। वहां पर जज के सामने ही सीताराम जहर खाने का प्रयास करते हैं तो जज उन्हें पुलिस कस्टडी में भेज देते हैं। इसके बाद उनका नाम पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हो जाता है। उस फिल्म और वाराणसी के संतोष मूरत सिंह की वास्तविक जिंदगी एक जैसी है।
फर्क केवल इतना है कि सीताराम को पुलिस अपने कानूनी रजिस्टर में दर्ज कर जिंदा होने का प्रमाण देती है। मगर वाराणसी के संतोष मूरत सिंह को पुलिस पकड़ती तो जरूर है लेकिन लिखा-पढ़ी नहीं करती है। एक दो नहीं पूरे 60 बार पुलिस ने पकड़ा, लेकिन एक बार भी संतोष के नाम पर लिखा-पढ़ी नहीं हो सकी। अब संतोष मूरत सिंह अपने जिंदा होने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। देखना यह है कि उनके जिंदा रहते ही नाम मिलता है या मौत के बाद लावारिस ही वे मर जाएंगे।
यह है संतोष मूरत सिंह की असल कहानी
संतोष मूरत सिंह “मैं जिंदा हूं” इसी टाइटिल से वे जाने जाते हैं। वे कहते हैं कि 20 वर्षों से आज तक मुझे न्याय नहीं मिला। तहसील से लेकर यूपी सरकार तक की चौखट खटखटा चुका हूं। उनके पिता सेना में थे। 1988 में पिता की मौत हो गई और 1995 में मां भी दुनिया में नहीं रहीं। सन 2000 में नाना पाटेकर मुंबई से आंच फिल्म की शूटिंग के लिए आए थे।
उसी समय मैं भी नाना पाटेकर के साथ मुंबई चला गया। तीन साल तक मुंबई में रहा। इसी बीच पट्टीदारों ने यह साबित कर दिया कि मैं लापता हो गया हूं और मेरी मृत्यु ट्रेन ब्लास्ट में हो गई। तब से लेकर आज तक मैं खुद को जिंदा बताते चल रहा हूं।
जिंदगी के साथ-साथ पर्चा भी किया खारिज
संतोष बताते हैं कि नामांकन दाखिल किया था ताकि असहाय और मजलूमों की आवाज बन सकूं लेकिन प्रशासन तो यही नहीं चाहता है। उन्होंने कहा कि वाराणसी में नामांकन पत्र दाखिल किया गया लेकिन मेरा नामांकन पत्र खारिज हो गया।
मैं खुद पीड़ित हूं और तहसील के अधिकारियों से लेकर प्रदेश सरकार तक अपने जिंदा होने का सर्टिफिकेट मांग चुका हूं। इस पर सुनवाई तो दूर मुझे आश्वासन भी कोई देने वाला नहीं हैं। उन्होंने कहा कि जिंदा लोगों की सरकारें बहुत देख लीं एक बार मुर्दे की सरकार देखिए। अत्याचार के खिलाफ हमारी जंग जारी रहेगी।
हुई 60 बार गिरफ्तारी, लेकिन लिखा-पढ़ी नहीं
संतोष मूरत सिंह बताते हैं कि जब भी कोई VIP मूवमेंट क्षेत्र में होता है तो पुलिस उसे पहले ही पकड़ लेती है और थाने पर लेकर चली जाती है। इसके बाद उनके जाने के बाद ही छोड़ दिया जाता है। आखिर मैं कौन हूं और मेरी आइडेंटिटी क्या है कोई तो इसे बताए।