पेट्रोल महंगा होने में एक शख्स ने छोड़ी कार और अब घोड़े से आने-जाने लगा ऑफिस

महाराष्ट्र समेत पूरे देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में तेजी से इजाफा हो रहा है। यूक्रेन-रशिया के बीच जारी जंग के कारण कच्चे तेल की कीमत में और बढ़ोतरी की बात कही जा रही है। औरंगाबाद की बात करें तो यहां पेट्रोल 110 रूपये प्रति लीटर के हिसाब से बिक रहा है। रोज-रोज की बढ़ती कीमत से परेशान औरंगाबाद के एक शख्स ने अपने कार को घर में छोड़ घोड़े से ऑफिस जाने का निर्णय लिया है।

औरंगाबाद के रहने वाले शेख युसूफ की। शेख ने बताया कि मैं एक कॉलेज में लैब असिस्टेंट के रूप में काम करता हूं और पेट्रोल के बढ़ते दामों को देखते हुए मैंने विरोध जताने के लिए घोड़े से ऑफिस आने-जाने का निर्णय लिया है। शेख ने बताया कि मैं सिर्फ ऑफिस ही नहीं, बल्कि कई बार बाजार भी घोड़े से ही जाता हूं। इससे मैं पेट्रोल के पैसे बचाने के साथ-साथ खुद को फिट भी रखता हूं।

शेख ने बताया कि उन्होंने इस घोड़े का नाम ‘जिगर’ रखा है। शेख ने यह भी मांग की है कि घोड़े के लिए ट्रैफिक के बीच में चलना बेहद मुश्किल है। हम मांग करते हैं कि नगर निगम को घोड़े और साइकिल को वैकल्पिक ट्रांसपोर्ट मोड के रूप में विकसित करना चाहिए। शेख ने इसके लिए अलग से ट्रैक बनाने की मांग भी की है। शेख कहते हैं कि जब सरकार पेट्रोल सस्ता नहीं करेगी तो हमारे पास और कोई विकल्प नहीं होगा। शेख कहते हैं कि हर दिन घोड़े पर यात्रा करने वाले को दिल की कोई बिमारी नहीं होती है।

युसूफ ने ये घोड़ा लॉकडाउन में खरीदा था। शेख ने बताया कि कोरोना काल में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करना सेफ नहीं है तो वहीं अपनी गाड़ी चलाने के लिए पेट्रोल और डीजल के दाम काफी महंगे हैं। ऐसे में उन्होंने घुड़सवारी को सबसे अच्छा विकल्प माना और अब वो शहर की सड़कों पर घोड़ा दौड़ाते हुए दिखाई देते हैं।

घोड़े के खाने का फ्री में होता है इंतजाम
शेख ने बताया कि उन्हें इस घोड़े की बहुत देखभाल करनी पड़ती है। शेख के मुताबिक, घोड़े को कोलिक(पेट का दर्द) की समस्या होती है। इसलिए डेली उसके मलमूत्र को देखना पड़ता है। उसे ठंडी और ग्रीन चीजें खिलानी पड़ती हैं। इनमें चारा भी शामिल है। घोड़े पर महीने में आने वाले खर्च के बारे में शेख ने बताया कि महानगर पालिका के हॉस्पिटल में इसका फ्री में इलाज हो जाता है। वह औरंगाबाद के वाईबी चव्हाण कॉलेज में काम करते हैं। कॉलेज के कैंपस में बड़ी-बड़ी हरी घास है, इसलिए चारे का कोटा यहां से पूरा हो जाता है। इसके अलावा वे जिस मोहल्ले में रहते हैं, वहां के लोग घर का बचा हुआ खाना और अनाज घोड़े को खाने के लिए देते हैं। इसलिए इसपर आने वाला खर्च लगभग न के बराबर हो।

शेख ने यह भी बताया कि जब भी किसी शादी या विवाह में उन्हें जाना होता है उनका परिवार रिक्शे या ऑटो रिक्शा से जाता है, लेकिन वे अपने घोड़े से ही जाते हैं। शेख ने बताया कि यह घोड़ा बहुत समझदार है और ट्रैफिक सिग्नल देख खुद ही रुक जाता है। शांतिप्रिय होने के साथ-साथ यह वफादार भी है और जैसे ही इसे कोई छूने का प्रयास करता है वह आवाज निकालने लगता है।

पहले सिर्फ ट्रेवलिंग में होता था 10 हजार का खर्च
शेख के मुताबिक, वे दिन में 25 किलोमीटर(आना और जाना) मिलकर इस घोड़े से यात्रा करते हैं। पहले कार से इनका दिन में तकरीबन 150 से 200 का खर्च सिर्फ पेट्रोल का होता था, इसके अलावा कार के मेंटेनेंस में वे महीने में 5 हजार खर्च करते थे। ऐसे में उनकी कार का खर्च तकरीबन 10 हजार प्रति महीने होता है। शेख ने बताया कि छोटी से नौकरी में अगर 10 हजार सिर्फ आने-जाने में खर्च हो जाए तो परिवार कैसे चलेगा, इसलिए उन्होंने यह तरीका खोज निकाला।

पैसों का जुगाड़ कर यूं 40 हजार में खरीदा ‘जिगर’
शेख ने बताया कि एक रिश्तेदार के पास 40,000 रुपये में बिक्री के लिए एक घोड़ा था और यूसुफ को बचपन से ही घोड़े की सवारी पसंद थी। उन्होंने अपनी जंग लगी बाइक बेच दी, कुछ बचत की, रिश्तेदार से कुछ पैसे उधार लिये। मई 2020 में, काठियावाड़ी नस्ल के एक सुंदर काले घोड़े ‘जिगर’ को घर ले आए।

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