इन गांवों में न बिजली-सड़क, वाहन के नाम पर गधे,पानी के लिए चढ़ना पड़ता है पहाड़,बीमार को चारपाई पर लादकर ले जाते हैं अस्पताल
एक तरफ देश डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ रहा है। दूसरी ओर राजस्थान के उदयपुर के पास एक ऐसा इलाका भी है, जो आज भी पाषाण काल में जी रहा है। उदयपुर से लगभग 125 किलोमीटर दूर कोटड़ा इलाके में अब भी ऐसे कई गांव, कई परिवार हैं जिनका आधुनिक दुनिया से कोई वास्ता नहीं है। ये ना तो बिजली समझते हैं ना ही सड़क। स्कूल-अस्पतालों से इनका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं। सुविधाओं का अभाव इस कदर है कि पीने के पानी के लिए भी पहाड़ों से निकलने वाले झरनों और तालाबों पर निर्भर रहना पड़ता है। पानी की लाइन तो दूर यहां हैंडपम्प तक नहीं है।
यहां गधों के सहारे चलती है जिंदगी
कोटड़ा क्षेत्र से जुड़ी कुछ पंचायतों के गांवों में करीब 200 परिवार ऐसे हैं जिनकी जिंदगी गधों के सहारे ही चल रही है। यूं भी कहा जा सकता है कि यहां की दुनिया को सरकार नहीं गधों ने संभाला हुआ है। वो इसलिये क्योंकि इन गांवों में बसर करने वालों के लिए हर सुविधा पहुंचाने का जरिया गधे ही हैं। पानी को ले जाना हो या घरेलू सामान ढोना हो। या फिर गंभीर बीमार को सड़क तक पहुंचाना हो। सभी काम के लिए गधा ही उनका सहारा है। यही कारण है की यहां सभी परिवार ने गधों को पाल रखा है।
कई गांवों में हैंडपम्प तक नहीं
कई गांवों में आजतक हैंडपंप भी नहीं खुदा है। इसके चलते पूरा गांव पहाड़ियों के नीचे से निकलने वाले पानी पर निर्भर हैं। ये पानी झरनों के जरिए आता है। पहाड़ियों के नीचे पानी को रोकने के लिए आदिवासी लोगों ने गड्ढे बना रखे हैं। ताकि पानी इसमें ठहर सके। बड़े बर्तनों में पानी भरने के बाद, गधों पर लादकर उंचाई पर ले जाना पड़ता है। इसके अलावा गांव में मवेशियों की प्यास भी इसी गड्ढे से बुझती है।
इन गांवों में हैं विकट हालात
यहां की तिलोई पंचायत के अम्बाल गांव में 90 परिवार हैं। ऐसे ही हालात पालछा ग्राम पंचायत के कमर गांव में हैं जहां करीब 70 परिवार हैं। करेलिया में 15 परिवार, मरेवा में करीब 25 परिवार बसर करते हैं। इन गावों में मूलभूत सुविधाओं के नाम पर सड़क, पानी, बिजली जैसी व्यवस्था नहीं हो पाई है। पगडंडी नुमा पथरीले रास्तों से रोज गुजरना पड़ता है। मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए कई किमी तक चढ़ाई कर पैदल चलना होता है। अंधेरा होते ही गांव का कोई व्यक्ति घर से बाहर नहीं निकल पाता।
झोली या खाट पर ले जाते हैं बीमारों को
सड़कें नहीं हैं इसलिए चिकित्सा सुविधा भी नहीं पहुंच पाई है। कोई बीमार पड़ता है तो पूरे गांव को मदद के लिए बुलाया जाता है। बीमार को झोली या खाट पर लैटाकर कंधों पर उठाकर 5 किमी लंबा पहाड़ियों का रास्ता तय करना पड़ता है। मैन सड़क पर आने के बाद भाड़े पर कार लेकर अस्पताल तक पहुंचाया जाता है।
चुनाव के बाद कोई नेता शक्ल तक नहीं दिखाता
यहां के ग्रामीणों ने बताया कि नेता यहां केवल चुनाव के दौरान ही नजर आते हैं। भाजपा विधायक प्रताप लाल गमेती, कांग्रेस के पूर्व मंत्री मांगीलाल गरासिया से लेकर कई नेताओं ने खूब वादे किये। लेकिन चुनाव खत्म होते किसी ने शक्ल तक नहीं दिखाई।
वन क्षेत्र के कारण सड़क की स्वीकृति नहीं मिलती
कोटड़ा में पीडब्ल्यूडी के एईएन विजय कुमार कहते हैं कि कई गांव वन क्षेत्र में होने से वहां सड़क निर्माण की स्वीकृति नहीं मिल पाती है। इसी कारण इन गांवों को सड़कों से नहीं जोड़ा जा सकता है। वन विभाग स्वीकृति दे तो काम हो। वहीं पूर्व जिला परिषद सदस्य राजाराम गरासिया का कहना है इसके लिए कोई विकल्प नियमों में निकालना चाहिए। जिससे परेशानी दूर हो।
उदयपुर सांसद अर्जुन लाल मीणा ने कहा कि कांग्रेस ने इतने वर्षों तक इन गांवों पर ध्यान नहीं दिया। पिछले 7 साल में हमने वहां बिजली पहुंचाने का काम किया है। पानी और सड़कों को लेकर भी हम प्रयास कर रहे हैं। प्रधानमंत्री जलजीवन मिशन सहित अनेक योजनाओं में हम इन गावों तक सड़क और पानी पहुंचाने के भी प्रयास कर रहे हैं।