सोशल मीडिया पर लड़कियां इनबॉक्स, इजहार-ए-मुहब्बत झेलती हैं, न मानने पर बदचलनी खिताब भी बटोरती हैं

 

दक्षिणी अमेरिका का एक देश है बोलिविया। आमतौर पर इतवार की दुपहरी की तरह सुस्त पड़ा ये मुल्क साल 2009 में एकदम से चर्चा में आ गया। दरअसल यहां की एक बस्ती- मेनिटोबा की डेढ़ सौ से ज्यादा बच्चियां-औरतें कुछ बोल रही थीं। वे बता रही थीं कि कैसे लगातार दो सालों तक नशे की दवा सुंघाकर उनका रेप होता रहा। कैसे हर सुबह अस्त-व्यस्त कपड़ों, शरीर पर खून, नोंचने-काटने के निशानों और बेहिसाब दर्द के साथ वे जागतीं।

धड़ाधड़ एक के बाद एक किशोरियों से लेकर बुढ़ापे के मुहाने पर खड़ी अकेली औरतें प्रेग्नेंट होती गईं। इधर पूरी कॉलोनी के मर्दों, पिता-भाई-पतियों ने मिलकर साबित कर दिया कि उनका रेप ‘प्रेत’ कर रहे हैं। क्यों? क्योंकि औरतें पापिन होती हैं। इस ‘ईश्वरीय एलान’ के बाद युवतियां खामोश हो गईं। करीब 1800 लोगों की बस्ती में रोज रात में कई-कई रेप होते रहे, हर सुबह औरतें शरीर और सिर में भयंकर तकलीफ के साथ सोचती रहीं कि आखिर किस पाप के कारण शैतानी रूहें उनकी ताकत पी रही हैं।

रेप पीड़िताएं दोपहर में मिलतीं और मुंडी से मुंडी सटाकर रोतीं। ‘मैं सुबह उठकर देर रात तक घर के काम करती हूं। इबादत करती हूं। सबकी सेवा भी करती हूं। फिर प्रेत मुझे क्यों सता रहा है!’ बीती रात की कहानी सबके दिमाग से ऐसे छूमंतर थी, जैसे इतिहास से सच्चाई।

हफ्ते, महीने और फिर साल में बदले। घर के पुरुषों ने चौकीदारी भी की, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। रात गायब की गायब रही! आखिरकार राज खुला। जून 2009 में औरतों ने मिलकर तमाम प्रेतों को धर दबोचा और पुलिस के पास लेकर आईं। इसके बाद हुए खुलासे ने बोलिविया समेत दुनिया से सभी देशों को हिलाकर रख दिया।

 

सर्जरी के दौरान जानवरों को देने वाले बेहद स्ट्रॉन्ग एनेस्थिसिया से परिवार को बेहोश किया जाता। फिर बेहोश औरतों का बलात्कार होता। मर्दों की जो टोली ये कर रही थी, वो मानती थी कि औरतें अपने फर्ज भूलकर बिगड़ैल हो रही हैं। वे हंसती हैं। काम से जी चुराती हैं। शहर जाती हैं और यहां तक कि वर्जिनिटी पर भी बात करती हैं। ये औरतें खतरनाक हैं तो, उन्हें सबक सिखाकर काबू किया जाने लगा। वैसे ही जैसे बिगड़ैल घोड़े की सवारी से पहले चाबुक फटकारें तो घोड़ा कंट्रोल में रहता है।

सबक का ये जादुई नुस्खा बोलिवियन कॉलोनी तक सीमित नहीं- हर देश में, हर समुदाय ने, वक्त के हर दौर में, औरतों को इस तरह सबक सिखाया है। हमारे यहां कुछ दिनों पहले एक फिल्म आई- द कश्मीर फाइल्स। इस पर खूब बात हो रही हैं। खासकर उसके एक दृश्य पर, जब रेप के बाद एक महिला को आरी से दो हिस्सों में चीर दिया जाता है।

ये घटना नहीं, अपनेआप में पूरा दस्तावेज है, मर्दानी नफरत का! वो नफरत, जो टाइम बम की तरह हर पल टिकटिक करती रहती है कि जैसे ही मौका मिले, वो पूरी ताकत से फट पड़े और चीथड़े उड़ा दे, हर उस स्त्री के जो बोलती हो, विरोध करती हो, या तयशुदा दहलीज के बाहर दिखती हो।

दो ताकतवर पुरुष भी आपस में भिड़ें तो फैसला स्त्री पर पहुंचकर ही खत्म होता है। चाहे विराट कोहली से भड़के ट्रोल्स की उनकी बेटी से रेप की धमकी हो, या फिर भिंड के किसी अनाम मर्द की दूसरे अनाम मर्द से भिड़ंत हो- निशाना औरत ही बनेगी।

एक इंटरनेशनल एनजीओ प्लान इंटरनेशनल ने दुनिया के 22 देशों पर सर्वे किया, जिसके नतीजों को ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स गर्ल्स रिपोर्ट’ नाम से छापा गया। पड़ताल में अमेरिका से लेकर जापान और भारत भी शामिल था। सर्वे के मुताबिक, 58 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं को अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ‘प्रेमपगी’ अश्लील चिट्ठियां लिखी गईं या फिर रेप की धमकी मिली। दोनों में कोई खास फर्क नहीं।

 

सोशल मीडिया पर लिखतीं, बोलतीं या खुशलिबास दिखतीं लड़कियां कमोबेश रोज ही इनबॉक्स में इजहार-ए-मुहब्बत झेलती हैं, और न मानने पर फेक अकाउंट से चरित्रहीन होने का टैग भी बटोरती हैं। ये सिलसिला चलता रहता है, जब तक कि जनाना हिम्मत दम न तोड़ दे।

ऑनलाइन धमकी-वमकी देते खरगोश नुमा मासूम मर्दों को छोड़कर चलते हैं, थोड़े मर्दाना मर्दों के पास, वे जो बंदूक के बल पर जबर्दस्ती करते हैं। दुनियाभर में रेप महजबी (पढ़े, कट्टर) मर्दों का खास हथियार रहा है। चुनिंदा सबसे अमीर आतंकी संगठनों में से एक इस्लामिक स्टेट के पास जितनी बंदूकें और गोला-बारूद होंगे, उससे कहीं ज्यादा औरतों के लिए नफरत का हथियार उनके जखीरे में है। दूसरे समुदाय की औरतों को अगवा करके संगठन के लड़ाके उन्हें यौन गुलाम बना लेते हैं।

अगस्त 2014 में उत्तरी इराक के कई गांवों पर हमला बोलकर आतंकियों ने कुर्दिश भाषा बोलती महिलाओं को अगवा कर लिया। इनमें छोटी बच्चियां भी शामिल थीं। कुछ ही रोज बाद एसोसिएटेड प्रेस समेत कई बड़े इंटरनेशनल मीडिया संस्थानों के पास एक संदेश आया, जिसमें बताया गया कि कैसे 12 साल की बच्चियों को भी सेक्स स्लेव बनाकर बेचा जा रहा है। कमउम्र लड़कियों में जबरन नशा और बर्थ कंट्रोल हॉर्मोन्स घुसेड़े जाने लगे, क्योंकि ‘आतंकियों के उसूल’ के मुताबिक यौन संबंध उसी से बनाए जा सकते हैं, जिसकी कोख ‘खाली’ हो।

जब ये सब लिख रही हूं, तभी बिहार के मधेपुरा से एक खबर आती है। बदचलनी के आरोप में वहां एक औरत को अर्धनग्न करके गर्म लकड़ी से पीटा गया। दरअसल गांव के सच्चरित्र पुरुषों को शक था कि वो मकई के खेत में किसी मर्द से मिलती है। इतना काफी था! औरत को तब तक पीटा गया, जब तक कि उसकी अकड़ नहीं निकल गई। घटना 19 मार्च की बताई जा रही है, जिसका धुआं अब जाकर उठा।

ये होता रहेगा। कभी प्रेत रेप करेंगे तो कभी सत्यवान पुरुषों की टोली, जब तक कि लड़कियां बोलना न शुरू कर दें। जागो लड़कियों! तुम्हारी ताकत याद दिलाने को कोई जामवंत नहीं आएगा, जख्मों पर कोई गुलाबजल का ठंडा फाहा नहीं रखेगा। ये सब तुम्हें खुद करना होगा कि हमारी बेटियां जब युवा हों तो विरासत में हम उन्हें बराबरी का संसार सौंपकर जाएं।

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