महिला ने पति को बच्चा देकर कहा- भाग जाओ,  महिला से 8 लोगों ने गैंगरेप करके हत्या कर दी

 

एक परिवार जिसमें पति-पत्नी और 6 महीने का बच्चा था, उसे गांव से निकाल दिया गया। वह गांव से निकलकर नदी पार ही किए थे कि 8 लोग पहुंच गए। महिला ने पति को बच्चा सौंपते हुए कहा- इसे लेकर भागो। पति भागा। पत्नी को लोगों ने पकड़ लिया। गैंगरेप करके हत्या कर दी। हाईकोर्ट ने सभी को बरी कर दिया। मर्डर मिस्ट्री सीरीज की 15वीं और आखिरी कहानी ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले की है। इस घटना में आरोपियों को बचाने के लिए पूरी सरकार लग गई थी। आइए शुरू से बताते हैं।

 

किराए का कमरा लेकर रहते थे, मालिक की बहन से प्यार हो गया
ये कहानी 1977 की है। छबिरानी अपने परिवार के साथ पुरी में रहती थी। उनके बड़े भाई पुरी के ही कृष्ण बलराम मठ में प्रभारी के रूप में काम करते थे। छबि का परिवार पश्चिम बंगाल के मेदनापुर का था। मां-बाप बंगाली बोलते थे लेकिन पुरी में रहते हुए ओडिया सीख ली थी। 1976-77 के बीच नबा किशोर महापात्रा भुवनेश्वर के धियाशाही गांव से संस्कृत पढ़ने पुरी पहुंचे थे। किराए पर रहने के लिए कमरा चाहिए था। छबिरानी के घर में मिल गया।

करीब एक साल तक रहने के दौरान नबाकिशोर और छबिरानी को प्यार हो गया। छबि के घर वालों को ये बात पता चली तो पहले ऐतराज जताया, क्योंकि किशोर बेरोजगार थे लेकिन बाद में मान गए। पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में शादी में दोनों की शादी हो गई। अब पहली चुनौती थी कि परिवार को चलाने के लिए कुछ काम किया जाए। किशोर महापात्रा अपनी पत्नी छबिरानी के साथ अपने गांव धियाशाही आ गए।

 

अखबार बांटते-बांटते अखबार में लिखने लगे किशोर और छबि
किशोर अपने गांव आए, लेकिन उन्हें कुछ समझ नहीं आया कि क्या किया जाए। कुछ लोगों ने सलाह दी कि तुम अखबार की एजेंसी ले लो। किशोर को यह बात समझ आई। वह अपनी पत्नी के साथ बिरिडी में बस गए। कटक, भुवनेश्वर व दूसरे राज्यों से आने वाले अखबार किशोर की एजेंसी पर आते उसके बाद यहीं से वह लोगों के घरों तक पहुंचते थे। यह काम खुद किशोर करते थे। छबि पढ़ी लिखी थी, इसलिए एजेंसी के काम में वह भी हाथ बंटाती थी।

अखबार से लगातार जुड़े रहने के कारण वह किशोर और छबि खबरों से अपडेट रहते थे। धीरे-धीरे दोनों ने खबर लिखना शुरू कर दिया। उसी दौरान भुवनेश्वर में प्रगतिबड़ी अखबार शुरू हुआ था। नबा किशोर अखबार से जुड गया। पद मिला संवाददाता। दूसरी तरफ छबिरानी भी सब कुछ सीख गई थी। वह कटक के दुर्मुखा अखबार से जुड़ गई। इसी दौरान तीसरी खुशी बनकर इस दुनिया में आया दानी महापात्रा। शादी के डेढ़ साल बाद किशोर पिता बन गए।

 

सीमेंट में राख मिलाकर बेचने वाले के खिलाफ लिख दी खबर
नबाकिशोर डरने वाले लोगों में नहीं थे। उन्होंने बिरिडी के सबसे अमीर व्यक्ति राजूराव डोरा के खिलाफ खबर लिख दी। खबर में लिखा, राजू डोरा सीमेंट में राख मिलाकर बेचता है। उड़ीसा सरकार की तरफ से गरीबों के लिए जो मुफ्त अनाज आता है उसे जरूरतमंदो तक नहीं पहुंचने देता है। इस खबर ने राजू डोरा की सच्चाई खोल दी। राजू पॉलिटिकल पार्टियों को पैसा देता था, इसलिए ऐसी खबर से ये उसके कामों की चर्चा राजनीति में होने लगी।

 

कांग्रेस नेताओं के खिलाफ लिखा तो घर में चोरी करवा दी
1980 के फरवरी में ओडिशा के अंदर जनता पार्टी की सरकार गिर गई। 9 जून 1980 को प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। जानकी बल्लभ पटनायक CM बन गए। नबाकिशोर पर सरकार बनने का कोई असर नहीं पड़ा। उसने बिरिडी कांग्रेस के अध्यक्ष दिवाकर नायक और कार्यकारी अध्यक्ष नंदा मोहंती के खिलाफ खबर लिख दी। इस खबर के बाद नबा के घर में चोरी हो गई। जिसकी शिकायत उसने पुलिस में की। जिनके खिलाफ केस लिखवाया उसमें सभी कांग्रेस कार्यकर्ता थे। नबा किशोर और छबिरानी की खबरें से कांग्रेस के लोग खिलाफ रहने लगे।

 

पीटते हुए कांग्रेस कार्यालय ले गए और फिर गांव से निकाल दिया
3 अक्टूबर 1980, छबिरानी को अपने आईडी कार्ड के लिए दुर्मुखा के दफ्तर कटक जाना था। छबि का 6 महीने का बच्चा था तो उसे घर छोड़ नहीं सकती थी। इसलिए उसकी मदद के लिए किशोर महापात्रा भी साथ निकल लिए। सुबह 6.30 बजे एक दुकान पर बैठकर नाश्ता कर रहे थे। तभी 6 लोग आए। एक बोला- “नबा किशोर तुमको नंदा मोहंती ने बुलाया है, 7.30 बजे तक तुम उनके घर पहुंचो।” छबि ने शाम को मिलने की बात कही तो उन लोगों ने कहा, ठीक नहीं होगा।

नंदा मोहंती का उस वक्त इलाके में बड़ा नाम था। छबि रानी ने कहा, “मिल लीजिए। हम लोग किसी और दिन कटक चले जाएंगे।” नबा किशोर और छबि अपने घर पहुंचने वाले ही थे कि वो सभी फिर से आ गए और किशोर को पीटना शुरू कर दिया। पीटते-पीटते वह किशोर को नंदा मोहंती के घर ले गए। नंदा ने कहा, “इसे लेकर कांग्रेस के दफ्तर ले चलो।” सभी उसे लेकर बिरिडी के कांग्रेस दफ्तर पहुंचते हैं। वहां मोहंती ने नबा को जमकर पीटा और आदेश दिया, “तुम आज इस गांव को छोड़कर चले जाओगे।” नबा ने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए कहा, “शाम के 5 बज गए हैं आज मोहलत दे दीजिए, कल चला जाऊंगा।” लेकिन वो नहीं माने।

 

छबि ने नबा को बेटा पकड़ाते हुए कहा, तुम भागो, तुम्हें मेरी कसम
नबा लंगड़ाते हुए घर पहुंचा। पत्नी छबि ने उसकी यह हालत देखी तो सहम गई। नबा ने सारी बात बताई और कहा, हमें तुरंत इस गांव से चलना होगा। छबि ने कुछ जरूरी सामान उठाया और घर से निकल पड़ी। रात के 8 बजे वह गांव के किनारे बिलुआखाई नदी के किनारे पहुंच गए। छबि ने छह महीने के बेटे दारा को दूध पिलाया। नबा किशोर ने नदी में हाथ-मुंह धुले। इसके बाद दोनों नदी पर बने लकड़ी के पुल के जरिए दूसरी तरफ पहुंचे। तभी पीछे से कुछ लोग आते नजर आए।

छबि खतरे को समझ गई। उसने नबा को बेटे को सौंपते हुए कहा, “तुम दारा को लेकर भागो।” नबा ने कहा, “नहीं, मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जा सकता।” छबि ने नबा को बच्चे की कसम दे दी। नबा बच्चे को लेकर करीब 50 मीटर दूर एक झाड़ी में छिप गया। उधर, आठ लोग पहुंचे और छबि को पकड़ लिया। आसपास नबा को खोजा पर वह नहीं मिला। इसके बाद उन आठों ने छबि के साथ गैंगरेप करना शुरू किया। नबा ये सब देख रहा था, लेकिन वह कुछ भी नहीं कर पा रहा। तभी वह वहां भागा और सबसे पास के गांव कुकुनदारा पहुंचा।

 

गांव से 200 लोग नदी की तरफ भागे तो वहां लाश देखकर सहम गए
नबा कुकुनदारा गांव के मुखिया के घर पहुंचा। पूरी बात बताई। मुखिया नबा को जानता था। तुरंत गांव के करीब 200 लोग इकट्ठा हुए और लाठी डंडा लेकर नदी के किनारे पहुंचे। वहां छबि तो थी लेकिन जिंदा नहीं। उसकी लाल-पीली साड़ी लाश से 5 फुट दूरी पर पड़ी थी। पूरा शरीर घाव से भरा था। नोचे हुए बाल बिखरे थे। छबि की यह हालत नबाकिशोर ने देखी तो बेदम हो गया। सिर पकड़कर बैठ गया। आवाज ही नहीं निकल रही थी। लोगों ने किसी तरह से संभाला।

 

कांग्रेस नेता का नाम दिखा तो दरोगा ने फाड़ दी FIR
गांव के लोग नबा को लेकर पोस्ट ऑफिस पहुंचे और रात एक बजे वहां से जगतसिंहपुर थाने में फोन मिलाया गया। सेकण्ड अफसर ने फोन उठाया। नबा ने पूरी बात बता दी। अफसर बोला, हम लोग पहुंच रहे हैं। सुबह के आठ बज गए पर कोई नहीं पहुंचा। नबाकिशोर बदहवास हाल में सीधे थाना इंचार्ज के घर पहुंच गया। वहां सदी वर्दी में भुवनेश्वर के एसपी बाटाकृष्ण त्रिपाठी बैठे थे। नबा ने पूरी बात बताई। एसपी ने कहा, “तुम थाने पहुंचकर रिपोर्ट लिखवाओ, हम आते हैं।”

नबा ने FIR में आठ लोगों का नाम लिखवा दिया। इसमें नंदा मोहंती का भी नाम था। दरोगा ने नबा से नंदा मोहंती का नाम हटाने को कहा। नबा नहीं माना। दरोगा ने एसपी के सामने ही FIR की कापी फाड़ दी। नबा वहां से भागकर फिर से लाश के पास पहुंचा। करीब 24 घंटे बीत गए पर पहुंच ने लाश नहीं उठाई। इधर गांव वालों को पता चला तो उन्होंने राजूराव डोरा के घर में आग लगा दी। पहली बार पुलिस बैकफुट पर आई और घटना के 36 घंटे बाद लाश को वहां से उठाया।

 

नबा को किडनैप किया और ऐसा इंजेक्शन लगाया कि महीने भर उठ नहीं पाया
कांग्रेस के नेताओं का नाम आने से मामला हाईप्रोफाइल हो गया था। नबा की जान का खतरा बताकर एसएसपी ने उसे हिरासत में रख लिया। एक दिन वह साइकिल से कहीं जा रहा था तभी उसे एम्बेसडर कार में जबरन बैठा लिया गया। एक गुप्त जगह पर ले गए और खाली पेज पर सिग्नेचर करवाया। एक ऑडियो रिकॉर्ड किया, जिसमें नबा से कहलवाया कि इस मामले में नंदा मोहंती का कोई रोल नहीं है। इसके बाद एक इंजेक्शन लगाया, जिससे उसे खून की उल्टी होने लगी। महीनों तक वह बिस्तर पर ही पड़ा रहा।

पुलिस ने नबा को समझाया कि तुम मजिस्ट्रेट के सामने नंदा मोहंती के खिलाफ नहीं बोलोगे। नबा ने हां में सिर हिला दिया। लेकिन जैसे ही मजिस्ट्रेट के सामने पेश हुआ उसने वह सब बता दिया जो उसकी आंखों के सामने उसकी पत्नी के साथ हुआ था। मजिस्ट्रेट ने सुना तो पुलिस को फटकार लगाई और केस दर्ज करने को कहा। लेकिन, पुलिस यहां केस दर्ज नहीं किया। तीन दिन तक नबा को समझाया जाता रहा। उस वक्त 50 हजार रुपए देने का लालच दिया। फिर से मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। नबा ने वही फिर से बोल दिया जो पहले कहा था।

 

लोवर कोर्ट ने सभी आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई, लेकिन हाईकोर्ट ने पलट दिया
नबा के बयान के बाद मजिस्ट्रेट ने केस को क्राइम ब्रांच को सौंप दिया। क्राइम ब्रांच ने सभी 8 आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज किया और जांच शुरू की। 1985 में लोवर कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए सभी 8 आरोपियों को दोषी करार दिया और उम्रकैद की सजा सुनाई। इन सभी ने लोवर कोर्ट के फैसले को ओडिशा हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। नंदा मोहंती की तरफ से उस वक्त के कई बड़े वकील खड़े हुए। नतीजा ये रहा कि 1993 में हाईकोर्ट ने लोवर कोर्ट का फैसला बदल दिया और सभी को बरी कर दिया।

 

दोषी छूटे तो हार गए नबा, लेकिन कुछ लोग साथ आए और फिर से फैसला पलट गया
हाईकोर्ट के फैसले के बाद नबा का कानून से भरोसा उठ गया। उसके करीब एक लाख रुपए खर्च हो गए। जो दोषी थे वह हंसी उड़ाने लगे। तभी कुछ लोग सामने आए। नबाकिशोर की तरफ से केस को सुप्रीम कोर्ट लेकर पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश कृष्ण चंद्र कार ने 2002 में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 8 में से चार आरोपियों को दोषी माना और उम्रकैद की सजा सुना दी। लेकिन, नबा इस फैसले को भी पूरा नहीं मानते। क्योंकि नंदा मोहंती, राजूराव डोरा, दिवाकर नायक को बरी कर दिया। किसी पुलिसवाले को कोई सजा नहीं मिली। नबा कहते हैं यही वो लोग हैं जिन्होंने मेरा पूरा परिवार बर्बाद किया।

जब यह फैसला आया तो राज्य में नवीन पटनायक की सरकार थी। सीएम ने नबाकिशोर महापात्रा को बहरामपुर फॉरेस्ट में फील्ड असिस्टेंट की नौकरी दी। जो बच्चा 1980 में छह महीने का था वह दानी महापात्रा अब 22 साल का था। राज्य सरकार ने उसे भी नौकरी दी।

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