‘जब मैं लोगों के साथ होती हूं या कुछ करती हूं, तो मैं भूल जाती हूं कि मेरे साथ क्या हुआ था, लेकिन जब मैं अकेली होती हूं तो मैं खो जाती हूं।’ ये शब्द एक यूक्रेनी मां और पत्नी के हैं। उनका नाम विक्टोरिया कोवलेंको है। रूसी हमले में पति और 12 साल की बेटी गंवा चुकी हैं। पति और बेटी के साथ मिलकर जो आशियाना बनाया था वो छूट गया। जान बचाने की जद्दोजहद में रूसी सैनिकों की बंधक बनीं। 24 दिन तक एक साल की बेटी के साथ हर रोज़ मौत का सामना किया। आज छोटी बेटी वरवारा के साथ लीव में सुरक्षित हैं और अपने दर्द को कम करने के लिए साइकोलॉजिस्ट का सहारा ले रही हैं। हंसते-खेलते परिवार को आंखों के सामने लाश में तब्दील होने की दर्दनाक कहानी उन्होंने शेयर की है।
उस दिन जो हुआ वो मैं सपने में भी सोच नहीं सकती थी
मीडिया से बात करते हुए वो बताती हैं- यूक्रेन में रूसी हमले के नौ दिन हो चुके थे। मैंने और मेरे पति पेट्रो ने चेर्निहाइव छोड़ने का फैसला किया। अपनी दोनों बेटियों की सुरक्षा को देखते हुए हमने देश के उत्तरी हिस्से में जाने का सोचा। शहर छोड़ने से पहले हमने जरूरत की सभी चीजें साथ रखी। जैसे ही हम शहर के बाहरी इलाके से निकल साउथ की ओर याहिदने गांव के पास पहुंचे। रास्ते में बड़े-बड़े पत्थर पड़े मिले। पेट्रो कार से उतर उन्हें हटाने लगा ताकि रास्ता बन सके, लेकिन तभी कार पर हमला हुआ
जब मैंने उसे देखा तो उसके सिर के चिथड़े उड़ चुके थे
मेरे सिर में चोट लगी थी और खून निकल रहा था, ये सब देखकर मेरी बड़ी बेटी वेरोनिका बहुत रो रही थी। वो चिल्लाने लगी। उसके हाथ कांप रहे थे। मैं उसे शांत करने की कोशिश कर रही थी। वो गुस्से में कार से बाहर निकल गई। मैं उसे देखने के लिए उसके पीछे भागी। मैंने उसे गिरते देखा। मैंने देखा उसके सिर के चीथड़े उड़ चुके थे। तभी एक रूसी बम कार से टकराया और ज़ोरदार धमाका हुआ। मैं खुद को शांत करने की कोशिश कर रही थी। मेरे हाथ में मेरी एक साल की छोटी बेटी वरवारा थी, जिसे मुझे सुरक्षित रखना था। मैंने पेट्रो को दोबारा नहीं देखा। वो भी मर चुका था।
बेटी और खुद को जिंदा रखने के लिए 24 घंटे तक संघर्ष किया
विक्टोरिया ने पति और बड़ी बेटी को अपनी आंखों के सामने मरता देखा। वो वहां से छोटी बेटी वरवारा को लेकर भागीं और अगले 24 घंटे तक खुद को जिंदा रखने की तमाम कोशिशें की। आश्रय के नाम पर उन्हें पार्किंग में खड़ी एक कार मिली, लेकिन फायरिंग शुरू हो गई, जिसके बाद वो एक बिल्डिंग की तरफ भागीं और वहीं छिपी रहीं। उस घर का इस्तेमाल सैनिक कर रहे थे। अगले दिन विक्टोरिया और उनकी बेटी को पेट्रोलिंग कर रहे रूसी सैनिकों ने पकड़ लिया और उन्हें ले जाकर पास के एक स्कूल के बेसमेंट में बंधक बना दिया गया।
40 लोगों से भरा एक कमरा, जहां सांस भी मुश्किल से आ रही थी
विक्टोरिया याद करती हैं- एक छोटे से कमरे में 40 लोग थे। वहां लाइट तक नहीं थी। रोशनी के लिए कैंडल या सिगरेट लाइटर का इस्तेमाल करना पड़ता था। बेसमेंट में इतनी धूल और गर्मी थी कि सांस लेना मुश्किल था। अधिकांश समय लोगों को टॉयलेट जाने के लिए भी बाहर नहीं जाने दिया जाता था। लोग टॉयलेट के लिए एक बाल्टी का इस्तेमाल कर रहे थे। वहां हिलने तक की जगह नहीं थी। लोग कुर्सी पर बैठ रहते थे या बैठे-बैठे सो रहे थे। मैंने और मेरी साल भर की बेटी ने इस भयानक स्थिति में 24 दिन गुजरे। मैंने वहां लोगों को मेडिकल हेल्प के बिना मरते देखा।
मैंने रूसी सैनिकों से पति और बेटी की लाश मांगी, ताकि दफना सकूं
विक्टोरिया मीडिया से बात करते हुए बताती हैं कि उन्होंने रूसी सैनिकों से अपने पति और बेटी वेरोनिका की लाश मांगी, ताकि वो उन्हें दफना सकें। उन्होंने अपने पूर्व पति को क्षतिग्रस्त कार की फ़ोटो लेने के लिए भेजा। उस जली हुई कार में वेरोनिका के कपड़े के कुछ टुकड़े, कालिख से पुता सिल्वर नंबर प्लेट के अलावा कुछ नहीं बचा था।
12 मार्च को रूसी सैनिकों ने मुझे बुलाया और कहा-चलो देखो उन्हें कहां दफ़नाया जा रहा है। उन्हें जंगल में दफ़नाया गया था। क्रॉस के चिन्ह के साथ दो बॉक्स थे। एक बड़ा और एक छोटा ताबूत।