फतेहपुर। एक ओर रमजानुल मुबारक महीने के चलते रोजेदार रोजा रखकर मशक्कत कर रहे है। वहीं दूसरी ओर फितरा-जकात के लिए मुस्लिम समुदाय काफी सक्रिय नजर आ रहा है। रमजान के महीने में अल्लाह पाक ने रोजे के साथ-साथ फितरा व जकात का भी हुक्म फरमाया है। जिसके तहत मुस्लिम समुदाय अपनी जमा पूंजी या सोने चांदी के जेवरात की कीमत का ढाई प्रतिशत जकात में निकालता है लेकिन आजकल जकात का पैसा उसके हकदारों तक कम ही पहुंच पा रहा है। वजह साफ है कि मदरसा के मालिकों ंव प्रबंधकों द्वारा जकात का पैसा वसूल लिया जाता है। किसी ने सच ही कहा है कि हकदार तरसें उम्मीदवार बरसें।
मजहबे इस्लाम में पांच बातें फर्ज बताई गई हैं। तौहीद, नमाज, रोजा, जकात व हज। यानी अल्लाह पर ईमान रखना मुसलमानों का पहला फर्ज है। दूसरे नमाज अदा करना। तीसरे रमजान के महीने में रोजा रखना, चौथा जकात देना, फिर हज करना। जकात देने से किसी मुसलमान को छुटकारा नहीं मिल सकता, क्योंकि वह फर्ज है। रमजानुल मुबारक का महीना आते ही मुस्लिम समुदाय नमाज, रोजा की तरफ खास तौर पर तवज्जो करने लगता है लेकिन जहां एक ओर नमाज रोजा करता है वहीं जैसे-जैसे यह महीना अपने अंतिम चरणों में पहुंचता है जकात के लिए भी मुसलमानों मे तेजी आ जाती है। जकात के लिए हुक्म है कि जकात को उसके हकदार को तलाश करके दिया जाए। हकदार से मुराद गरीब, मुफलिस, यतीम, बेवा जिसका खर्ज चलने में बड़ी दुश्वारी हो रही हो या जो आम हालत से निचले स्तर पर जिंदगी गुजार रहा हो लेकिन आज कल लोगों ने जकात को खेल बना रखा है। जकात के नाम पर लोग सोचते है कि कहां जाकर उसके हकदार को तलाश करें। दरअसल जकात के लिए पहले अपने घर में देखें कि केाई परेशान हाल अगर उसका हकदार है तो उसे जकात देनी चाहिए। फिर अपने खानदान में, फिर अपने पास पड़ोस में फिर अपने शहर में तलाश करना चाहिए। जकात इस तरह देना चाहिए कि एक हाथ से दें तो दूसरे हाथ को पता भी न चल सके।