फतेहपुर। समूची दुनिया में मुस्लिम समुदाय के लिए रमजान का महीना बहुत पवित्र माना जाता है। जिसमें पूरे एक माह रोज़े रखकर मुस्लिम समाज अल्लाह तआला की इबादत करता है। इशा की नमाज के बाद बीस रकात तरावीह पढ़ी जाती है। रोजे रखने के साथ-साथ तरावीह को हर मुस्लिम को पढना जरूरी होता है। छह जरूरी बुनियादी आदाब पर ही रोजा निर्भर रहता है। हकीकी रोजे के लिए जो अंगों को गुनाहों से रोकता है। छह आदाब सामने रखना जरूरी है।
1. निगाह का रोजा:- पहला अदब यह है कि नजर नीचे रखो, जिन चीजो की तरफ निगाह डालना अल्लाह तआला को नपसंद है उनकी तरफ निगाह को न जाने दो। जिन चीजों को देखने से दिन भटकता हो और अल्लाह की याद से गफलत तारी होती हो उनको न देखो। ‘‘अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमाया-नजर डालना ऐसी चीजों पर जिनसे अल्लाह न रोका है शैतान के तीरो में एक जहर में बुझा हुआ तीर है जो कोई अल्लाह के डर से बुरी निगाह से रूक जाए अल्लाह तआला उसके दिल में ईमान की मिठास का मजा अता करेगा’’। हजरत जाबिर रजि. से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. ने कहा कि पांच चीजे ऐसी है जिनसे रोजा टूट जाता है। एक झूठ, दूसरे गीबत, तीसरी चुगली, चौथा झूठी कसम और पांचना वासना की नजर।
2. जुबान का रोज़ा:- दूसरा अदब यह है कि जुबान से बुरी बात न करो, झूठ न बोलो, गीबत न सुनों न करो, चुगली न करो, बेशर्मी की बातें न करो, अत्याचार ज्यादती करने की बात न करों, झगड़ा न करो, वायदा न तोड़ो और न कोई बात काटो। जुबान का रोजा यह है कि खामोश रहे उससे होने वाले गुनाहों से बचे और उसे अल्लाह की याद और कुरआन की तिलावत में व्यवस्त रखें। सुफियान सौरी रह. कहते है कि गीबत और झूठ से रोजा टूट जाता है। ‘‘अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमाया रोजा ढाल है गुनाहों से बचाव के लिए। तुममे से कोई रोजा से हो तो न बेशर्मी की बात करे और न बदकलामी और फिजूल बकवास करे न चीखे चिल्लाए और अगर कोई गाली दे या लड़ने पर उतर आए तो कह दें कि मै रोजे से हॅू’’।
3. कान का रोजा:- रोजे़ का तीसरा अदब यह है कि कानों को बुरी बात सुनने से रोको इसलिए कि जिन बातों का जुबान से निकलना हराम है उनका सुनना भी हराम है। इसी वजह से अल्लाह तआला ने कानों से झूठ सुनने वालों और हराम का माल करने वालो का जिक्र साथ-साथ फरमाया है। अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमाया कि गीबत करने वाला और सुनने वाला दोनों के गुनाह बराबर के साझीदार है।
4. अंगो का रोज़ा:- रोज़े रखने का चौथा अहम अदब यह है कि हांथ, पांव और दूसरे अंगो को गुनाहों से रोको और इफ्तार के वक्त ऐसे खाने से बचो जिसके बारे में हराम होने की आशंका हो। अगर दिन भर वह खाना भी न खाये जो हलाल है और इफ्तार हराम खाने से करे तो उसका रोज़ा कैसे हो सकता है। शरीअत कहती है हराम कमाई से अर्जित किए जाने वाले रोज़ा अफ्तार से रोज़ा नहीं होता है। ऐसे रोजदार की मिसाल ऐसी है जैसे एक व्यक्ति महल बनाए लेकिन पूरे शहर को उजाड़ कर। अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमाया कितने ही रोजदार ऐसे है जिन्हें अपने रोजे से भूख और प्यास के सिवाए कुछ नहीं मिलता।