डिलीवरी बॉय साइकिल से खाना देने आया तो ट्विटर से ढाई घंटे में जुटाए 2 लाख रुपए

 

 

कोरोना संकटकाल में इंग्लिश टीचर की नौकरी चली गई तो वह चिलचिलाती धूप में साइकिल पर जोमैटो का ऑर्डर घर-घर पहुंचाने को मजबूर हो गया। रुपयों की किल्लत इतनी कि, सड़क और कभी रेस्टोरेंट पर रात गुजारनी पड़ती थी। एमए पास डिलीवरी बॉय की हालत देखकर 18 साल के कस्टमर का दिल ऐसा पसीजा कि उसने बाइक दिलवाने की ठान ली।

कस्टमर ने ट्विटर पर लोगों से मदद मांगी। और क्राउड फंडिंग से मात्र दो घंटे में 1.90 लाख रुपए कलेक्ट हो गए। इसके बाद डिलीवरी बॉय को स्प्लेंडर बाइक दिलाई गई। बाकी के रुपयों से डिलीवरी बॉय अपना लोन भी चुकता करेगा।

भीलवाड़ा के रहने वाले 18 साल के आदित्य शर्मा ने क्राउड फंडिंग कर जोमैटो बॉय दुर्गाशंकर मीणा को मंगलवार को स्पेप्लडर बाइक दिलाई है। आदित्य ने बताया कि 11 अप्रैल को जोमैटो पर कोल्ड ड्रिंक का ऑर्डर दिया था। दोपहर 2 बजे 40 डिग्री तापमान और चिलचिलाती धूप में दुर्गा शंकर ऑर्डर लेकर आए।

आदित्य ने बताया कि डिलीवरी बॉय साइकिल पर भी टाइम पर ऑर्डर लेकर आ गया था। उससे बात करने पर उसकी माली हालत के बारे में पता चला। जाने लगा तो उसका मोबाइल ले लिया। इसके बाद किसी तरह जोमैटो से उसके बारे ओर जानकारी जुटाई।

 

डिलीवरी बॉय की मदद के लिए किया ट्वीट
आदित्य ने बताया कि डिलीवरी बॉय को बाइक देने का मन बनाया। मगर अकेले यह संभव नहीं था। तब शाम 4 बजे ट्विटर पर एक ट्वीट किया। ट्विटर पर दुर्गाशंकर की एक फोटो अपलोड करके उसकी हालत और काम के बारे में बताया। बाइक दिलवाने के लिए 75 हजार रुपए की मदद मांगी। इसके बाद मदद के लिए कई लोगों के ट्वीट आए।

 

ढाई घंटे में 1.9 लाख रुपए की मदद
आदित्य ने बताया कि दुर्गाशंकर की मदद के लिए ट्वीट करने के ढाई घंटे बाद ही करीब 1.90 लाख की मदद मिल गई। आलम ये हो गया कि, लोगों से मदद बंद करने की अपील करनी पड़ी। आदित्य ने दुर्गाशंकर को शोरूम में ले जाकर 90 हजार की बाइक दिलाई। बाइक की चाबी देने पर उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा कि पुरानी साइकिल पर अपने आर्डर डिलीवर कर घर का गुजारा करता है। परेशानी होती थी, मगर पेट पालने के लिए जरूरी था। आदित्य ने बाइक पर बैठाकर दुर्गाशंकर के फोटो भी खींचे।

 

कोरोना ने टीचर से बना दिया डिलीवरी बॉय
दुर्गा शंकर मीणा ने बताया कि वह सांवर के रहने वाले है। 12 सालों तक एक प्राइवेट स्कूल में इंग्लिश के टीचर रहे। कोरोनाकाल में स्कूल बंद होने से बेरोजगार हो गए। घर में भी कोई नहीं है। पिता का देहांत हो चुका है। और मां नाता विवाह कर छोड़कर चली गई। गांव में पुश्तैनी घर था। लेकिन, डूब में आने के कारण उसका मुआवजा मिल चुका था। वह रहने जैसा भी नहीं रहा। पिता की मौत और मां के नाते चलते जाने के बाद आगे-पीछे कोई नहीं था। ऐसे में शादी भी अभी तक नहीं हो पाई। 7 महीने पहले भीलवाड़ा आया। 4 महीने पहले पेट पालने के लिए जोमैटो में डिलीवरी बॉय की नौकरी शुरू की। मीणा ने बताया कि घर नहीं होने के कारण रेस्टोरेंट में ही जगह मिलने पर सो जाते हैं।

 

मार्च 2020 में चली गई नौकरी
दुर्गा ने बताया कि वह गांव में ही 10 th तक के प्राइवेट स्कूल में पढ़ता था। 12 साल तक पांचवीं से दसवीं तक की क्लास को पढ़ाया। शुरूआत में 1200 रुपए महीना मिलता था। धीरे-धीरे सैलरी बढ़कर 2020 में 10 हजार रुपए मिलने लगे। मगर लॉकडाउन के बाद नौकरी चली गई। एक साल तक सेविंग से गुजारा किया। 40 हजार रुपए का पर्सनल लोन भी लिया। मगर रुपए खत्म होने लगे तो भीलवाड़ा आ गया और जोमैटो में नौकरी मिली।

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