6 साल में 12 लोगों ने मरने के बाद 49 लोगों को दी नई जिंदगी, 6 साल पहले भोपाल में हुआ था पहला ऑर्गन डोनेशन

 

 

 

भोपाल में पहला कैडेबर (ब्रेनडेड) ऑर्गन डोनेशन होशंगाबाद के अशोक पाटिल का 14 अप्रैल 2016 यानी आज ही के दिन हुआ था। यह उनके बेटे डॉ. आनंद पाटिल की वजह से संभव हो पाया था। उनकी सोच और पहल से भोपाल में ऑर्गन डोनेशन की नई राह खुली थी। उसके बाद से अब तक भोपाल में 12 ऑर्गन डोनेशन हो चुके हैं।

इनसे 49 लोगों को नई जिंदगी मिली, जबकि पूरे प्रदेश में अब तक 56 लोगों के परिजन ही ऑर्गन डोनेशन के लिए तैयार हो पाए। हालांकि इसके पहले केवल आई डोनेशन ही हो पाता था। गौरतलब है कि अशोक पाटिल होशंगाबाद के रहने वाले थे।

वे 6 साल पहले हबीबगंज स्टेशन के बाहर सड़क पार करने के दौरान वाहन की चपेट में आ गए थे। उनके सिर में गंभीर चोट लगी थी, जिससे उनका ब्रेनडेड हो गया था। इसके बाद उनके बेटे आनंद ने पिता के लिवर और किडनी डोनेट करने का फैसला किया।

 

भोपाल में अब तक हुए कैडेबर डोनेशन में 3 लोगों के दिल दूसरों में धड़क रहे

भोपाल में अब तक हुए कैडेबर डोनेशन में 3 लोगों का दिल किसी के काम आ सका है। इसमंे पहला- विमला अजमेरा का दिल फोर्टिस हॉस्पिटल में हार्ट डिसीज से जूझ रहे 12 साल के मासूम को दिया गया था। दूसरा- अतुल लोखंडे का दिल दिल्ली एम्स में दिल की बीमारी से जूझ रहे मरीज को ट्रांसप्लांट किया गया। तीसरा- 20 साल के शशांक कोराने का दिल मुंबई के एक शख्स के सीने में धड़क रहा है।

 

अभी तक नहीं हो पाया लंग्स का डोनेशन, स्किन का भी एकमात्र

अब तक लिवर, किडनी, हार्ट, स्किन और आई डोनेशन ही हुआ है, लेकिन लंग्स डोनेशन नहीं हो पाया है। भोपाल के अतुल लोखंडे का लंग्स का डोनेशन होना था, लेकिन चेन्नई से डॉक्टरों की टीम नहीं आ पाई थी। अतुल के हार्ट को समय पर दिल्ली पहुंचाना था, इसलिए लंग्स का डोनेशन नहीं हो पाया था। वही, शहर में शशांक कोराने की स्किन एक जले हुए व्यक्ति के काम आ सकी।

 

प्रदेश की बात- इंदौर में 43 और जबलपुर में 1 ऑर्गन डोनेशन हुआ

ऑर्गन डोनेशन के लिए भोपाल में काउंसलिंग करने वाले और ऑर्गन डोनेशन से जुड़े किरण फाउंडेशन के राकेश भार्गव ने बताया कि भोपाल में 12, इंदौर में 43 और जबलपुर में 1 आर्गन डोनेशन हुआ है। उनका कहना है कि जागरूकता की कमी के चलते मप्र में बहुत कम ऑर्गन डोनेशन हुए हैं। लोग अपने परिजनों के ऑर्गन डोनेट करने में हिचकिचाते हैं।

 

मेरी मां आज भी जिंदा मेरी मां की मौत भले ही हो गई हो, लेकिन वे आज भी किसी के दिल में धड़कर अपने जिंदा होने का अहसास कराती हैं। उन्होंने मरकर एक या दो लोगों को नहीं, बल्कि 6 लोगों को नई जिंदगी दी है। यह कहना है कि अनुराग अजमेरा का। उनकी मां का दिल एक बच्चे में धड़क रहा है।

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