जब लग खालसा रहे निअरा, तब लग तेज़ कियो में सारा – बैसाखी पर्व पर गुरूद्वारे में सबद कीर्तन के साथ हुआ लंगर

 

फतेहपुर। बैसाखी पर्व को लेकर स्थानीय गुरूद्वारा परिसर में प्रातःकाल सबद कीर्तन का आयोजन किया गया। जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की। तत्पश्चात लंगर का प्रसाद लोगों ने चखा।
गुरूद्वारा गुरू सिंह सभा के प्रधान दर्शन सिंह की अगुवाई में कार्यक्रम हुआ। उन्होने बताया कि भारत त्योहारों का देश है, यहां कई धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। सभी धर्मों के अपने-अपने त्योहार है। बैसाखी पंजाब और आसपास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्योहार है। बैसाखी पर्व को सिख समुदाय नए साल के रूप में मनाते हैं। ज्ञानी गुरवचन सिंह जी ने बताया वर्ष 1699 में सिखों के 10 वें गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने बैसाखी के दिन ही आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की नींव रखी थी। इसका खालसा खालिस शब्द से बना है जिसका अर्थ शुद्ध, पावन या पवित्र होता है। खालसा पंथ की स्थापना के पीछे गुरु गोविंद सिंह का मुख्य लक्ष्य लोगों को तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त कर उनके धार्मिक, नैतिक और व्यावहारिक जीवन को श्रेष्ठ बनाना था। सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने सिख समुदाय के सदस्यों से गुरु और भगवान के लिए खुद को बलिदान करने के लिए आगे आने के लिए कहा था. आगे आने वालों को पंज प्यारे कहा जाता था, जिसका अर्थ था गुरु के पांच प्रियजन बाद में, वैसाखी के दिन महाराजा रणजीत सिंह को सिख साम्राज्य का प्रभार सौंप दिया गया। महाराजा रणजीत सिंह ने तब एक एकीकृत राज्य की स्थापना की। इसी के चलते ये दिन बैसाखी के तौर पर मनाया जाने लगा। इस मौके पर लाभ सिंह, सरनपाल सिंह, सनी, सतपाल सिंह, परविंदर सिंह, कुलजीत सिंह सोनू, वरिंदर सिंह, गुरमीत सिंह, सिमरन सिंह, संत, तरन व महिलाओं में जसवीर कौर, हरविन्दर कौर, प्रीतम कौर, मंजीत कौर, गुरप्रीत कौर, खुशी, सिमरन कौर, शिम्पी, हरमीत कौर भी उपस्थित रहे।

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