कम ऊंचाई के क्षेत्रों में चेरी-प्लम-खुमानी, बादाम-आड़ू को 40% तक नुकसान, बागवानों की बढ़ी चिंता

 

 

हिमाचल प्रदेश में मार्च महीने में गर्मी ने पिछले सात दशक का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। 69 सालों में पहली बार शिमला का न्यूनतम तापमान 18 डिग्री सेल्सियस पहुंचा है। इस बार लंबे ड्राई-स्पेल के कारण स्टोन-फ्रूट्स पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। बागवानी विभाग द्वारा शिमला के रामपुर क्षेत्र में करवाए गए ताजा आंकलन के मुताबिक, कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में चेरी, बादाम, खुमानी, प्लम, आड़ू की फसल को 30 से 40 फीसदी तक नुकसान हो चुका है। रामपुर के अलावा अन्य इलाकों में भी स्टोन-फ्रूट्स सूखे की जद में आ गए हैं।

विभाग के मुताबिक, रामपुर के दत्तनगर, नीरथ, रचौली, शिंगला, भड़ावली में 175 हैक्टेयर एरिया में सूखे का असर देखा गया है। 175 में से 25 हैक्टेयर एरिया में स्टोन फ्रूट्स को 50 फीसदी से ज्यादा और 71 हैक्टेयर एरिया में 30 फीसदी से अधिक नुकसान हो चुका है। रिपोर्ट के मुताबिक, समुद्र तल से 2000 से 3000 फीट तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सूखे का ज्यादा असर है।

बागवान अपनी आंखों के सामने फसल बर्बाद होते देख रहे हैं। 3000 फीट से अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में 20 से 25 फीसदी तक नुकसान बताया जा रहा है। स्टोन फ्रूट्स की अधिक पैदावार शिमला, सोलन, सिरमौर, कुल्लू, मंडी के ज्यादातर क्षेत्रों में होती है।

प्लम ग्रोवर एसोसिएशन के अध्यक्ष दीपक सिंघा ने बताया कि सूखे से कम ऊंचे क्षेत्रों में स्टोन-फ्रूट्स के बाग स्ट्रेस में आ गए हैं। सूखे के कारण चेरी का अच्छा साइन नहीं बन पाएगा। कम ऊंचे क्षेत्रों में फरवरी माह में बारिश के कारण स्टोन-फ्रूट्स पहले ही कम है। अब रही सही कसर सूखा पूरी कर रहा है। प्रदेश में प्लम की अधिक पैदावार 3000 फीट से कम ऊंचे इलाकों में होती है, लेकिन इस एलिवेशन पर प्लम बहुत कम है। यदि जल्द बारिश नहीं हुई तो 3000 फीट से अधिक ऊंचे क्षेत्रों में भी स्टोन-फ्रूट्स पर असर दिखना शुरू हो जाएगा

जमीन में नमी सूखने से कम ऊंचे क्षेत्रों में चेरी, बादाम, खुमानी, प्लम, आड़ू की बड़े पैमाने पर ड्रॉपिंग हो रही है। प्रदेश में तकरीबन 80 फीसदी जमीन पर किसान आसमान की ओर देखकर खेती करते हैं, यानी बारिश होती है तो किसान अच्छी फसल निकाल पाता है। सूखे जैसी स्थिति में किसानों की फसल बगीचों में ही तबाह हो जाती है।

मौसम विज्ञान केंद्र शिमला की मानें तो प्री-मॉनसून सीजन (एक मार्च से 19 अप्रैल तक) प्रदेश में 94% कम बारिश हुई है। इस अवधि में सामान्य बारिश 154.5 मिलीमीटर होती है, लेकिन इस बार मात्र 9.2 मिलीमीटर बारिश ही हुई है। इसी तरह 1 से 19 तक तक 91 फीसदी कम और मौजूदा सप्ताह के दौरान 80 फीसदी कम मेघ बरसे हैं

प्रदेश में इस बार मार्च महीने में ही गर्मी ने पिछले 7 दशकों के रिकॉर्ड तोड़े हैं। शिमला का न्यूनतम तापमान 69 सालों में पहली बार 18 डिग्री पहुंचा है। ऊना का तापमान भी पहली बार मार्च में 38 डिग्री पहुंचा। राज्य के अन्य शहरों में भी मार्च और अप्रैल में तापमान अधिक रहा है। तापमान इस बार सामान्य से 6 से 11 डिग्री तक अधिक दर्ज किया गया। इससे जमीन में मौजूद नमी सूख गई। नमी नहीं होने से न केवल फलों का आकार, रंग, गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, बल्कि फसल तैयार होने से पहले ही झड़ रही है।

बागवानी विभाग शिमला के उप निदेशक देसराज शर्मा ने बताया कि रामपुर क्षेत्र में विभिन्न स्टोन फ्रूट्स के अधीन पौने 200 हैक्टेयर एरिया प्रभावित हुआ है। जहां पानी की व्यवस्था नहीं हैं, वहां फसल को ज्यादा नुकसान हो रहा है। बादाम और प्लम में ज्यादा ड्रॉपिंग हो रही है। रामपुर क्षेत्र में 30 से 40 फीसदी तक स्टोन फ्रूट्स को नुकसान हो गया है।

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