प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन को संबोधित किया। दिल्ली के विज्ञान भवन में हुए कार्यक्रम में पीएम मोदी ने कहा, 2047 में जब देश अपनी आजादी के 100 साल पूरे करेगा, तब हम देश में कैसी न्याय व्यवस्था देखना चाहेंगे? हम किस तरह अपनी न्यायिक व्यवस्था को इतना समर्थ बनाएं कि वो 2047 के भारत की आकांक्षाओं को पूरा कर सके, उन पर खरा उतर सके, यह प्रश्न आज हमारी प्राथमिकता होना चाहिए। इस कर्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना भी मौजूद रहे। प्रधानमंत्री ने कहा, यह संयुक्त सम्मेलन हमारी संवैधानिक खूबसूरती का सजीव चित्रण है। मुझे खुशी है कि इस अवसर पर मुझे भी आप सभी के बीच कुछ पल बिताने का अवसर मिला है।पीएम मोदी ने कहा, हमारे देश में जहां एक ओर न्यायपालिका की भूमिका संविधान संरक्षक की है, वहीं विधायिका जनता की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। मुझे विश्वास है कि संविधान की इन दो धाराओं का ये संगम, ये संतुलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का रोडमैप तैयार करेगा। उन्होंने कहा, हमें अदालतों में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। इससे देश के सामान्य नागरिकों का न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा, वो उससे जुड़ा हुआ महसूस करेंगे सीएम-जज कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री ने कहा, एक गंभीर विषय आम आदमी के लिए कानून की पेंचीदगियों का भी है। 2015 में हमने करीब 1800 ऐसे कानूनों को चिन्हित किया था जो अप्रासंगिक हो चुके थे। इनमें से जो केंद्र के कानून थे, ऐसे 1450 क़ानूनों को हमने खत्म किया। लेकिन, राज्यों की तरफ से केवल 75 कानून ही खत्म किए गए हैं।
बढ़ावा मध्यस्थता को दिया जाए
संबोधन के दौरान प्रधानमंत्रियों ने जेल में बढ़ रही कैदियों की संख्या पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, आज देश में करीब साढ़े तीन लाख कैदी ऐसे हैं, जो अंडर ट्रायल हैं और जेल में हैं। इनमें से अधिकांश लोग गरीब या सामान्य परिवारों से हैं। हर जिले में जिला जज की अध्यक्षता में एक कमेटी होती है ताकि इन केसेस की समीक्षा हो सके, जहां संभव हो बेल पर उन्हें रिहा किया जा सके। प्रधानमंत्री ने कहा, मैं सभी मुख्यमंत्रियों व न्यायधीशों से अपील करूंगा कि मानवीय संवेदनाओं और कानून के आधार पर इन मामलों को प्राथमिकता दें। न्यायालयों में और खासकर स्थानीय स्तर पर लंबित मामलों के समाधान के लिए मध्यस्थता भी एक महत्वपूर्ण जरिया है। हमारे समाज में तो मध्यस्थता के जरिए विवादों के समाधान की हजारों साल पुरानी परंपरा है। ऐसे में संभव हो तो ऐसे मामलों को मध्यस्थता के जरिए सुलझाया जाए।पीएम ने कहा, न्यायिक व्यवस्था में तकनीकि की संभावनाओं को डिजिटल इंडिया मिशन का एक जरूरी हिस्सा मानती है। ई-प्रोजेक्ट कोर्ट को आज मिशन मोड में लागू किया जा रहा है। आज कल कई देशों में लॉ यूनिवर्सिटी में ब्लॉक चेन, इलेक्ट्रॉनिक डिस्कवरी, साइबर सिक्योरिटी, रोबोटिक्स, एआई और बायोथिक्स जैसे विषय पढ़ाए जा रहे हैं। हमारे देश में भी लीगल एजुकेशन अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक हो, यह हमारी जिम्मेदारी है।