फतेहपुर। ईद अरबी भाषा का शब्द है और इसके मायने हैं निहायत खुशी और प्रसन्नता का दिन। इसलिए ईद हमारी खुशी का दिन है। ईद की नमाज खुशी की नमाज है। इस्लाम में खुशी और गम की एक स्पष्ट धारणा है। इसलिए जिस प्रकार एक सच्चा मुसलमान अपने सभी कामों में इस बात का ध्यान रखता है कि अल्लाह किस बात से खुश होता है और किससे नाखुश। इसी तरह उसके लिए यह भी जरूरी है कि अपनी खुशी और गम की उन सीमाओं को निगाह में रखे जो अल्लाह ने निर्धारित कर दी है और अल्लाह के रसूल स0 ने हम तक पहुंचा दी है। यह भी जरूरी है कि वह अपने व्यवहार को संतुलित रखे। स्थिति सामान्य हो या कोई मुसीबत आ पड़ी हो। ईद की खुशी कुछ खास लोगों के लिए विशिष्ट नहीं है और न इसका दायरा सीमित है। ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ खाने-पीने, शारीरिक व भौतिक आनन्द दिलाने वाला दिन हो बल्कि साथ ही यह दिन आत्मा और अन्तर आत्मा की खुशी का भी दिन है। यह एक ऐसी खुशी है जिसमें संसार के सारे कलमा पढ़ने वाले शरीक होते हैं। केवल नये-नये वस्त्र धारण करने, मकान, दुकान को सजाने और लजीज व्यंजन तैयार करने को ईद नहीं कहते हैं। यह तो ईद का एक बाहरी रूप का प्रदर्शन है। ईद हमारे लिए संयम, समानता, सहानुभूति, करूणा, स्नेह, समता व प्रेम का संदेश लेकर आती है। अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों, पूरे वतन व पूरी कौम के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए उनको अपनी खुशी मंे कैसे शामिल किया जाए यही इस त्योहार की शिक्षा है। ईद उत्सव ही नहीं इबादत भी है, एक सीख है, प्रेरणा है और सामाजिक जीवन का एक उदाहरण भी है।
हजारों और लाखों लोग जब एक साथ ईद की नमाज के वक्त पूरे अनुशासन के साथ खुदा के सामने झुकते हैं तो वह इबादत का और खुदा को शुक्रिया अदा करने का नजारा दिखाई देता है। समानता का अदभुत पैगाम भी ईद देती है। ईद प्रत्येक वर्ष हमको अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भाईचारे, आपसी प्यार मुहब्बत, दूसरों के साथ सहानुभूति, परोपकार, मानव प्रेम, असहायों की सहायता और सबके लिए प्रसन्नता का पैगाम देती है। सबको अमन व सलामती का भी संदेश देती है। ईद सामूहिकता और भाईचारे का दूसरा नाम है। एक अकेला व्यक्ति चाहे कि वह ईद की नमाज अदा कर ले तो अकेले ईद की नमाज अदा करना मुमकिन नहीं है। अगर आप भी अकेले ईद की नमाज अदा करें तो वह ईद की सियादत और भलाई को कदापि नहीं पा सकता। क्योंकि ईद की नमाज सिर्फ एक आदमी की नहीं बल्कि पूरे समूह की होती है। ईद सामूहिकता का प्रदर्शन है। हमारी ईद वास्तव में सभी छोटे-बड़ों में सहानुभूति, सहयोग और भाईचारे के सम्बन्ध पैदा करती है। ईद यह बताती है कि अगर हम हमेशा अपने भाईयों के साथ इसी स्नेह और प्रेम से मिलें। एक-दूसरे को अपनी खुशियों में शरीक रखें। उनके घर जाएं और अपने घर बुलायें। एक-दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखें तो समाज का हर दिन ईद का दिन होगा, परन्तु सोंचने की बात है कि क्या उन लोगों का गले मिलना कोई महत्व रखता है जिनके दिल आपस में बंटे हुए हैं। जिनके बीच नफरत, दुश्मनी और द्वेष की दीवारें रोक बनी हुयी हैं। क्या उनको ईद की सच्ची खुशी और उसका आनन्द हासिल हो सकता है जो एक ही खुदा के घर में और एक ही खुदा के सामने खड़े तो हैं और एक ही नबी की तालीम के मुताबिक अल्लाह की पाकी बयान करने में व्यस्त हैं, परन्तु जिनके दिल में जलन, नफरत, वैमनष्यता, अत्याचार, पक्षपात, हिंसा और अपने भाईयों को हीन समझने की भावनाएं भरी पड़ी हैं क्या उनकी ईद और उनकी खुशी का कुछ मतलब हो सकता है जो अल्लाह के बंदों के प्रति नफरत का रवैया अपनाये हुए हैं। हरगिस नहीं! इस्लाम में किसी से द्वेष रखना हराम है। रसूल्लाह ने फरमाया ‘लोगों एक दूसरे पर हसद न करो और न एक दूसरे से बुग्ज रखों और न आपस में एक दूसरे से मुंह फेरकर रहो, बल्कि अल्लाह के बंदों आपस में भाई-भाई बनकर रहो।’ रमजानुल मुबारक में पूरे महीने मुसलमान रोजे रखते हैं। इबादत और कुरआन की तिलावत करते हैं। नेकी का एक सर्वव्यापी माहौल बनाते हैं। इससे उनके अन्दर खुशी की भावना पैदा होती है। ईद की नमाज इस खुशी के सार्वजनिक प्रदर्शन का उचित और समुचित तरीका है। इस्लाम ने अस्थाई और अल्पकालिक खुशी को मान्यता दी है। लेकिन शर्त यह है कि अल्पकालिक खुशी आखिरत की सदैव रहने वाली खुशी से जुड़ी हो। हजरत अनस बिन रजि0 फरमाते हैं कि एक मुसलमान के लिए पांच दिन ईद के होते हैं। 1- जिस दिन वह गुनाह से सुरक्षित रहे 2- जिस दिन वह दुनिया से अपना ईमान सलामत ले जाए और शैतान की चालों से सुरक्षित रहे 3- जिस दिन वह दोजख से बचकर जन्नत में चला जाए 4- जिस दिन वह दोजख के पुल से सुरक्षित गुजर जाए 5- जिस दिन वह अपने रब का दीदार हासिल कर ले और उसकी खुशी हासिल करके ईदुल फित्र में बंदों को अल्लाह से यही कुछ मिलता है। ईद नफासत, पवित्रता, संजीदगी और आपसी सहयोग का उच्च प्रदर्शन है। यही ईद की सच्ची खुशी है। अल्लाह की नजर में वही खुशी ज्यादा पसंदीदा है। जो दूसरों के लिए भी खुशी का साधन हो। अल्लाह को वह खुशी कतई पसंद नहीं जो किसी एक व्यक्ति या एक गिरोह विशेष या कुछ लोगों के आंगन में तो खुशी के फूल खिलाए लेकिन दूसरों के दिलों में दुख-दर्द, रंज व गम की चिंगारियां भड़काए। इंसान की जिन्दगी में खुशी का बड़ा मौका निकाह होता है और उस खुशी का प्रदर्शन वलीमा द्वारा किया जाता है। लेकिन हुजूर स0 ने उस वलीमे पर लानत भेजी है जिसमें मालदार तो बुलाये जाएं लेकिन गरीब, मोहताज छोड़ दिये जाएं। ईद भी हमारी खुशी का एक मौका है। इसमें अमीर और गरीब सबकी भागीदारी बराबर की होनी चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि कुछ लोग तो नये कपड़े पहनें और खुशबू महकाते हुए पेट भरे ईदगाह की तरफ निकले और उनके पड़ोसी खाली पेट और नंगे बदन रह जाएं और आपके साथ उनकी हसरतों और तमन्नाओं के जनाजे निकल जाएं। ईदुल फित्र शुकराने की नमाज इसलिए है कि अल्लाह ने अपनी दया और कृपा से रमजान का महीना प्रदान किया और फिर उसमें रोजा, नमाज, तिलावत, सदका, जकात का सौभाग्य मिला। मानव जगत के साथ सहानुभूति दिखाने और दूसरों का दुख-दर्द बांटने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस पर हम अल्लाह के प्रति कृतज्ञता दर्शाते हैं। उसके शुकराने का सजदा अदा करते हैं।