न्यूज़ वाणी
रेहुंटा बालू खदान खंण्ड 455 में ट्रक क्लीनर दीपक को पोकलैंण्ड मे दबाकर उतारा मौत के घाट-
ब्यूरो मुन्ना बक्श की ख़ास रिपोर्ट
पोकलैंड चालक फरार,मृतक की माँ संपत का उजडा परिवार
पैलानी-बाँदा। मौरम खदानें किस तरह मजदूरों और गरीब मेहनतकस परिवारों के घर उजाड़ रही हैं यह खबर उसकी बानगी हैं। कोतवाली नगर क्षेत्र के किलेदार का पुरवा निवासी संपत राजपूत के एक माह में दो जवान बेटे मर गए है। बीते माह रेल की पटरी पर बड़ा बेटा अजय राजपूत मृत अवस्था मे मिला था। माँ के कहने पर एफआईआर नहीं लिखी गई पुलिस ने इसको आत्महत्या मान लिया था। वहीं शुक्रवार 20 मई को ट्रक क्लीनर छोटा बेटा दीपक उर्फ भाटा राजपूत की खदान में बालू निकालते वक्त पोकलैंड से दबाकर मौत के घाट उतार दिया गया। पोकलैंड मशीन चालक मौके से फरार है। उधर दुःखी माँ संपत ने इसको हत्या करार दिया है।
खदान संचालकों के घर आ रही धनलक्ष्मी और सरकार कंगाल-
बुंदेलखंड के बाँदा-महोबा में नदी और पहाड़ो की खदानों में गरीब मजदूरों की असमय मौतों की कहानी नई नहीं है। इस मौत को महज दुर्घटना बतलाकर खदान संचालक दबाने का कुत्सित प्रयास करते हैं। वहीं स्थानीय पुलिस भी खदान संचालकों की हमदर्द बनकर घटना को सुलटाने में जुट जाती है। किसी मजदूर की मौत पर परिजनों का बहुत ज्यादा बवाल हुआ तो राजनीतिक दबाव में फौरी आर्थिक मदद कर दी गई लेकिन खदान संचालक या मौत के ज़िम्मेदार पर रिपोर्ट लिखी जाए यह अपवाद की बात हैं। इसका बड़ा कारण हैं सफेदपोश ही इस पेशे के ठेकेदार हैं। क्षेत्रीय लम्बरदार और स्थानीय नेता को साधकर बाहरी कम्पनियों का प्रशासन के साथ वैध-अवैध खनन का कारोबार चलता है। करोड़ो के धंधे में गरीबों की मौतों का हिसाब रखना असंवेदनशील और पाषाण हो चुके ठेकेदारों के लिए हास्यास्पद हैं। बतलाते चले कि बीते शुक्रवार को बाँदा के पैलानी क्षेत्र की रेहुटा मौरम खदान खंण्ड संख्या 455 में ट्रक क्लीनर दीपक राजपूत उर्फ भाटा की मौत हो गई। मृतक दीपक को पोकलैंड मशीन चालक ने बालू भरते वक्त गम्भीर घायल कर दिया। दीपक के मौरम में दबने का सच देखकर पोकलैंड चालक फरार हो गया हैं। खदान में साथी प्रदीप सिंह व अन्य कर्मचारियों ने जब तक दीपक को जिला अस्पताल पहुंचाया वह मर चुका था। मृतक दीपक नगर कोतवाली क्षेत्र के किलेदार का पुरवा निवासी गरीब संपत राजपूत का छोटा बेटा था। गौरतलब हैं दुखियारी माँ संपत का बड़ा बेटा अजय बीते माह मर चुका है। अब घर पर मृतक दीपक की बहन पूजा व माँ शेष हैं। परिवार का सहारा दीपक पोकलैंड मशीन की चपेट में तब आया जब खनिज एक्ट 1963 की उपधारा 41 ज,खनिज लीज डीड, एनजीटी के निर्देश और पर्यावरण एनओसी,यूपी पीसीबी के जल/वायु सहमति प्रमाणपत्र अनुसार नदियों में हैवी,अर्थ मूविंग पोकलैंड, जेसीबी और लिफ्टर आदि मशीनों से खनन नहीं किया जा सकता हैं। उधर छोटे बेटे की क्रूरता पूर्वक मौत होने से सदमे में आई माँ संपत ने मीडिया को बतलाया कि मृतक दीपक का पोकलैंड मशीन चालक से खराब बालू भरने को लेकर विवाद हुआ था। इसके बाद देर रात्रि यह घटना कारित हुई है। उन्होंने पोकलैंड मशीन चालक पर साज़िश रचकर बेटे की हत्या का आरोप लगाया है। पीड़ित परिवार मृतक का शव लेकर बाँदा एसपी अभिनंदन सिंह के कैम्प आवास के बाहर, ज़िला अस्पताल के समीप एकत्र हुआ। अन्य गांव वाले भी साथ थे ऐसे में जाम की स्थिति पर सीओ सदर आनंद कुमार पांडेय ने मौके पर पहुंचकर मामलें को शांत किया। उन्होंने कहा कि परिवार से तहरीर मिलने पर मुकदमा लिखकर नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी।
लगातार विवादों के बावजूद भी आबाद है रेहुंटा खदान- पैलानी क्षेत्र की यह रेहुटा खदान पिछले कुछ माह से शुरू हुई है। यह अमलोर गांव के संपर्क मार्ग से जुड़ा गांव हैं। खदान शुरुआत होते ही गांव के किसानों का खेती चौपट करने को लेकर खदान संचालक के सहयोगियों से जमकर विवाद हुआ। सिस्टम ने किसानों पर ही मुकदमा लिखकर कुछ किसानों को जेल भेज दिया। गांव में खदान संचालक का ऐसा खौफ भर गया कि किसानों ने प्रतिरोध करना पुलिस व प्रशासनिक अमले से पंगा लेना समझा और शान्ति मार्ग अपना लिया। इधर गत सप्ताह से फिर कुछ किसानों ने इसी खदान में मोर्चा खोलकर विरोध किया व सामाजिक लोगों से मदद मांगी लेकिन गांवदारी में सहयोग करने वाले का साथ छोड़ने की परंपरा देखकर बात नहीं बन सकी। यही कुछ शुरुआत में अमलोर गांव के खंड 7 में हुआ था। आज भी अमलोर में तांडव पूर्वक हैवी पोकलैंड से सिस्टम साधकर खनन करता है। भोपाल के रसूखदारों का ग्रुप राजनीतिक साथ से केन नदी पर भारी हैं। यही कुछ रेहुटा खदान में हो रहा है। स्थानीय मीडिया के ज्यादातर अखबार से मृतक की खबर नदारद हैं। वहीं इलेक्ट्रॉनिक चैनलों के लिए तो बस इतना ही कहा जा सकता हैं कि ” खदानों के हरम में थिरकते पत्रकार, बड़ी घटना पर मौन साध लेते न्यूज़ चैनल-पीत अखबार।” मृत हो चुकी केन नदी की जलधारा अवैध खनन से जार-जार हैं। नदी का गर्भगृह अर्थात कैचमेंट एरिया, नदी की ज़मीन पूरी तरह खोखली हो चुकी हैं। यह कलमकार कुछ रुपयों के लिए अपनी पीढ़ियों की प्यास,पानी,किसानी,पर्यावरण का दोयम सौदा कर बाँदा को बेपानी बनाने के पेशे में सहयोगी हैं। सूबे के दो जलशक्ति मंत्रियों और केंद्र व राज्य सरकार की मंशा भले ही जलजीवन मिशन हो लेकिन केन नदी का अस्तित्व अब ऐसी ही बदकिस्मती की स्याह ज़मीनी हकीकत हैं। अफसोस..।