असली और नकली दवा पहचानने के लिए लगेंगे क्यूआर कोड, मिलेगी दवाई की सारी जानकारी

 

 

आगरा। सरकार ने दवा बनाने में प्रयोग होने वाली एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रीडिएंट्स (एपीआई) पर क्यूआर कोड लगाना जरूरी कर दिया है। इसी फैसले के तहत ड्रग प्राइसिंग अथॉरिटी (डीपीए) ने भी 300 दवाओं पर क्यूआर कोड लगाने की तैयारी कर ली है। जानकारों के मुताबिक इससे दवाओं के दामों में पारदर्शिता आएगी और कालाबाजारी पर लगाम लग सकेगी। जिन दवाओं को क्यूआर कोड के लिए चुना गया है उनमें पेन किलर्स, विटामिन्स के सप्लीमेंट, ब्लड प्रेशर, शुगर और कॉन्ट्रासेप्टिव दवाएं शामिल हैं।

नकली दवाओं की मंडी बना आगरा। आगरा की बात करें तो यहां का बाजार नकली और नशीली, गर्भपात, भ्रूण हत्या की दवाओं की मंडी बन चुका है। यहां से श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, वर्मा जैसे पड़ोसी देशों के साथ मप्र, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, बिहार, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा जैसे राज्यों में दवाओं की लगातार सप्लाई जाती है। नकली और नशीली दवाओं के लिए इन राज्यों की पुलिस, एसटीएफ, नारकोटिक्स विभाग यहां लगातार छापेमारी करता रहता है।

 

नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) ने डोलो, सैरिडॉन, फैबीफ्लू, इकोस्प्रिन, लिम्सी, सुमो, कैलपोल, थाइरोनॉर्म, अनवांटेड-72 और कारेक्स सिरप जैसे बड़े ब्रांड शामिल किए हैं। इनका प्रयोग बुखार, सिरदर्द, गर्भ से बचने, खांसी, विटामिन की कमी के लिए किया जाता है। दवाओं का चयन मार्केट रिसर्च के बाद इनके सालभर के टर्नओवर पर आधारित है। दवाओं की सूची स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजा जा चुकी है। क्यूआर कोड के तहत लाने के लिए इनमें जरूरी बदलाव किए जाने हैं !

क्यूआर कोड से होंगे फायदे

एपीआई में क्यूआर कोड लगने से इस बात का पता आसानी से लगाया जा सकेगा कि इसके निर्माण में गलत फॉर्मूला तो इस्तेमाल नहीं किया गया। इसके अलावा दवा के निर्माण में लगा कच्चा माल कहां से आया और दवा कहां जा रही है, इसका पता भी क्यूआर कोड से लग जाएगा।

 

छोटे-मध्यम कारोबारियों को दिक्कत

फार्मा उद्योग के जानकारों की मानें तो बदलाव को अंगीकार करना छोटे या मध्यम आकार के कारोबारियों के लिए मुश्किल होगा। उनके मुताबिक पैकेजिंग में बदलाव करना थोड़ा कठिन होगा। इसमें मेहनत के साथ पैसा भी ज्यादा लगेगा। फार्मा कंपनियों का राय में सिंगल क्यूआर सिस्टम ज्यादा फायदेमंद होगा। फिलहाल अगल-अलग विभागों से दवाओं की ट्रेसिंग होती है। दवा बाजार में सिर्फ दो प्रतिशत लोग ही गलत कार्यों में लिप्त हो सकते हैं। शेष पूरी ईमानदारी से काम करते हैं। फिर भी आगरा का बाजार बदनाम हो गया है। लेकिन इस फैसले से बाजार और ग्राहकों को फायदा होगा। लोगों को इस बारे में ज्यादा से ज्यादा जागरूक करने की जरूरत है।

 

 

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