आयुर्वेद के नाम पर स्त्री पर फैलाये जा रहे भ्रांतियों पर छात्रों ने दर्ज कराई आपत्ति

फतेहपुर /  इंटरनेट पर एक एग्जाम का पेपर का स्क्रीनशॉट वायरल हो रहा है खबरों के मुताबिक यह पेपर राजीव गांधी यूनिवर्सिटी आफ हेल्थ साइंस कॉलेज के बैचलर आफ आयुर्वैदिक मेडिसिन एंड सर्जरी कोर्स से जुड़ा है इस परीक्षा में छात्रों से कहा गया वाजीकरण यानी कामोत्तेजक द्रव्य के रूप में स्त्री को लेकर एक लघु निबंध लिखें इस बात को लेकर विवाद तब बढ़ गया जब महिलाओं को उत्तेजना बढ़ाने की दवा कह दिया गया वही इस बात को लेकर डॉक्टर विकास चौरसिया जो कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में चिकित्सक के पद पर कार्यरत हैं इन्होंने आयुर्वेद के प्रति फैलाए जा रहे भ्रांति को लेकर आपत्ति दर्ज कराई और लोगों को पूरी सत्यता से वाकिफ कराया कायचिकित्सा विषय परीक्षा का पेपर बहुत ज्यादा वायरल हो रहा है।जिसके बारे में ये कहकर भ्रांति फैलाई जा रही है कि आयुर्वेद में स्त्री को उत्तेजना बढाने की दवा के रूप में बताया गया है। जबकि ये बात पूर्णतः असत्य है। फतेहपुर जिले के ड़ॉ. विकास चौरसिया समेत ईशान आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज की अंतिम वर्ष की छात्रा डॉ रिया चौरसिया एवं ड़ॉ राशि सिंह आदि लोगों ने इस विषय पर लल्लन टॉप में छपी खबर के बारे में आपत्ति जताते हुए कहा कि निश्चित तौर पर आयुर्वेद संहिताओं में वाजीकरण(कामोत्तेजक) औषधियों के बारे में बताया गया है, जिसमें चरक संहिता में चिकित्सा स्थान में श्लोक न. 4-7 में स्त्री को सर्वोत्तम बाजीकारक बताया गया है। इन श्लोकों के कहने का तात्पर्य महज यह है कि निरन्तर वाजीकारक औषधियों का सेवन करने के बावजूद भी इन सब औषधियों की सिद्धि मुख्यतः स्त्री पर ही निर्भर करती है क्योंकि वाजीकरण के लिए उत्तम क्षेत्र हर्ष उत्पत्ति स्त्री पर ही निर्भर करता है। इसका वैज्ञानिक आधार यह है कि क्योंकि स्त्री के शरीर मे समुदाय रूप से सभी इन्द्रियों के मनोअनुकूल अर्थ विद्यमान रहते हैं जैसे स्त्री की अवस्था,उसकी सुंदरता, सुंदर वाणी और उसके हाव भाव आदि। उसी फैलाई जा रही भ्रांतियों में ये भी लिखा है कि आयुर्वेद में स्त्रियों को कामोत्तेजक वस्तु और बच्चे पैदा करने की फैक्ट्री बताया गया है,जबकि ये बात भी बिल्कुल गलत है क्योंकि इन्हीं श्लोकों में श्लोक न. 6 व 7 में स्त्री की महत्ता बताते हुए ये भी कहा गया है कि इस संसार में सबसे अधिक प्रेम/स्नेह स्त्रियों में ही पाया जाता है(स्त्रीषु प्रीतिर्विशेषेण) एवं ये भी कहा गया है कि संसार में उपस्थित धर्म, अर्थ एवं लक्ष्मी स्त्री में ही प्रतिष्ठित होता है(धर्मार्थो स्त्रीषु लक्ष्मीश्च)यहां तक कि ये कहा गया है कि ये सम्पूर्ण संसार स्त्री में ही प्रतिष्ठित है(स्त्रीषु लोकाः प्रतिष्ठितः) क्योंकि स्त्री में ही अतपत्य अर्थात संतान की उत्पत्ति प्रतिष्ठित होती है। जो इस संसार के अनवरत चलते रहने का सबसे बड़ा कारण है।
डॉ विकास आगे कहते हैं कि ये देश का दुर्भाग्य है कि आज के इस पढ़े लिखे समाज में भी समाचार चैनल(जैसे- लल्लन टॉप आदि)वाले व सामान्य लोग आधी अधूरी जानकारी को मुद्दा बनाकर देश की उस पैथी को बदनाम कर रहें जिसे संसार पहले एवं कोरोना के भयावह काल के बाद से बड़े ही मुहब्बत से स्वीकार कर रहा है। जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत विश्व के अन्य छोटे व बड़े स्वास्थ्य संगठन बहुत उम्मीद व इज्जत भरी नजरों से देखते हैं। ऐसी बचकाना हरकतों से हटकर हम सभी लोगों का प्रयास होना चाहिए कि हम सभी मिलकर अपने देश की पुरानी पद्धति को पुनः स्थापित करने में सहयोग दे सकें न कि बिना कुछ जानकारी के बस बदनाम करें और भ्रांति फैलाएं।

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