पानी ध्यान से खरीदें, बोतल की एक्सपायरी होती है, प्लास्टिक शरीर में गया तो किडनी-लिवर पर होगा बुरा असर

 

पानी की शेल्फ लाइफ पर लंबे समय से डिबेट होती रही है। आज हम कुछ फैक्ट्स पर नजर डालते हैं और देखते हैं कि स्टोर किया हुआ पानी कब तक इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा जाने कि ‘एक्सपायर्ड’ पानी पीने के क्या रिस्क हो सकते हैं।

पानी और एक्सपायर्ड! हां, सही पढ़ा आपने। जैसे खाने के सामान में एक्सपायरी डेट (खराब होने की तारीख) लिखी होती है। वैसे ही सील बंद बोतल पर भी एक्सपायरी डेट रहती है। तो क्या पानी भी एक्सपायर हो जाता है?

जरूरत की खबर में आज इस बात को समझते हैं।

सवाल- ट्रेन, बस या कार में सफर करते वक्त अक्सर दुकान, रेलवे स्टेशन और बस स्टॉप से जो पानी की बोतल खरीदते हैं क्या वह पानी भी खराब हो सकता है?
जवाब-
 लाइव साइंस की एक रिपोर्ट के अनुसार, पानी अपने असली रूप में खराब नहीं होता है। एक्सपायरी डेट यानी खराब होने का संबंध सील बंद बोतल की प्लास्टिक से होता है। दरअसल, प्लास्टिक एक समय के बाद में घुलने लगती है। इसकी वजह से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। इसलिए सील बंद बोतल में लिखी एक्सपायरी डेट पानी के लिए नहीं बल्कि प्लास्टिक की बोतल के लिए होती है।

डॉ.बालकृष्ण श्रीवास्तव कहते हैं कि एक्सपायरी डेट वाली प्लास्टिक की बोतल का पानी पीने से टॉक्सिन आपके शरीर में अंदर जाता है। यह खून में मिक्स होता है और सभी ऑर्गन्स (अंगों) पर बुरा असर डालता है। ये जहर की तरह धीरे-धीरे असर करता है।

सवाल- गलती से 1-2 बार एक्सपायरी डेट वाला पानी पी लें, तो इसका शरीर पर क्या असर होगा?
जवाब- 
ज्यादा नुकसान नहीं होगा। ऐसी सिचुएशन में आपके शरीर के अंदर टॉक्सिन, प्लास्टिक और केमिकल की कम मात्रा पहुंच पाएगी, लेकिन अगर आप ऐसा पानी लगातार या कई बार पीते हैं तो आपको हेल्थ से रिलेटेड ज्यादा समस्याएं झेलनी पड़ सकती हैं।

सवाल- प्लास्टिक की बोतल से कौन से केमिकल निकलकर पानी में घुलने लगते हैं?
जवाब-
 प्लास्टिक BPA (बिस्फेनॉल) और दूसरे केमिकल को छोड़ने के लिए जाना जाता है। जो पानी में घुलकर पानी को खराब कर देते हैं।

सवाल- सील बंद बोतल पर कितने दिन की एक्सपायरी डेट रहती है?
जवाब- 
मैन्यूफैक्चरिंग डेट से लगभग 2 साल तक की एक्सपायरी डेट लिखी जाती है।

सवाल- क्या नल का पानी भी खराब हो सकता है?
जवाब- 
आमतौर पर नल के पानी को हम इन तीन-चार जगह पर स्टोर करते हैं…

  • टंकी
  • मटका
  • स्टील के बर्तन
  • RO या वॉटर प्यूरीफायर

हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ (HSPH) की एक रिसर्च के अनुसार ऐसे पानी को 6 महीने तक पी सकते हैं।

दिए ग्राफिक से समझिए पानी को अच्छी तरह कैसे स्टोर किया जाना चाहिए….

आजकल बहुत से घरों में RO का इस्तेमाल किया जाता है। इसे बेचने वाली कंपनियों कि ​मानें तो ये पानी की गंदगी को छान कर साफ करने का काम करता है। अब सवाल उठता है कि इसमें स्टोर पानी को कब बदलना चाहिए?

सवाल- वॉटर प्यूरीफायर का पानी कितने दिनों में बदल देना चाहिए?
जवाब-
 वॉटर प्यूरीफायर में स्टोर पानी अगर रोज इस्तेमाल नहीं हो रहा है तो इसे 3 महीने में बदल देना चाहिए, क्योंकि इसके फिल्टर में गंदगी जमा हो जाती है। जिसकी वजह से जब पानी फिल्टर होकर आता है तो भी उसमें गंदगी होने की संभावना हो सकती है।

RO के पानी की प्योरिटी Total dissolved solids (TDS) से चेक होती है। इसलिए आपको समय-समय पर TDS भी चेक करते रहना चाहिए। WHO का कहना है कि प्रति लीटर पानी में TDS की मात्रा 300 मिलीग्राम से कम होनी चाहिए। अगर एक लीटर पानी में 300 मिलीग्राम से 600 मिलीग्राम तक TDS हो तो उसे पीने लायक माना जाता है।

एक नजर रिपोर्ट पर भी डाल लीजिए- साल 2019 में नेशनल एन्वायर्नमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (Neeri),केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और IIT-Delhi ने RO के इस्तेमाल पर एक रिपोर्ट तैयार कर NGT (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) को सौंपी थी। जिसके अनुसार…

  • RO से जब पानी छनकर निकलता है तो पानी में मौजूद जरूरी मिनरल्स भी पूरी तरह निकल जाते हैं।
  • विदेशों में RO के बुरे असर देखे जा रहे हैं। वहां के लोगों में कैल्शियम और मैग्नीशियम की कमी होने की शिकायत आने लगी है।

पानी की बात जब भी आती है तो PH वैल्यू के बारे में भी बात की जाती है। तो चलिए इसे भी समझ लेते हैं

सवाल- PH का मतलब क्या होता है? साफ और प्योर पानी का PH कितना होना चाहिए?
जवाब-
 PH का मतलब है, पोटेंशियल ऑफ हाइड्रोजन यानी हाइड्रोजन की शक्ति। हाइड्रोजन के अणु किसी भी वस्तु में उसकी acidic और alkaline trend को तय करते हैं।

इस तरह समझ समझिए- जैसे कि अगर घोल या उत्पाद में PH 1 या 2 है, तो वो acidic है और अगर पीएच 13 या 14 है तो वो alkaline है। अगर पीएच 7 है तो वह न्यूट्रल है।

प्योर पानी का PH 7 होता है। यह मीठा होता है। पानी का PH 6.5 से 8 माना जाता है। इसमें 7 से कम PH वाले पानी को हार्ड वाटर माना जाता है। ऐसे पानी को ASITIC WATER भी कहा जाता है। ऐसे पानी की जांच करें तो इसमें लोहा, कॉपर, लाइट और जिंक के अंश पाए जाते हैं।

चलते-चलते जान लेते हैं

नदी का पानी पीने लायक होता है या नहीं?

साल 2015 में टेरी (The Energy and Resources Institute) का एक सर्वे सामने आया। जिसके अनुसार, बिना ट्रीटमेंट के नदी का पानी पीना सुरक्षित नहीं है, क्योंकि नदी के आसपास काफी गंदगी होती है। बहुत सी फैक्ट्रियों का गंदा पानी भी उसी में जाकर मिलता है।

इन नदियों पर किया गया था सर्वे- दिल्ली की यमुना, कटक की महानदी, असम की ब्रह्मापुत्र, जबलपुर की नर्मदा, सूरत की ताप्ती, वाराणसी की गंगा और विजयवाड़ा की कृष्णा

ये भी जान लीजिए- न्यू जर्सी में साल 1987 में एक कानून बना, जिसके अनुसार, खाने और पानी की कंपनियों को उनके सभी प्रोडक्ट में दो साल से कम की एक्सपायरी डेट डालना जरूरी था। इतना ही नहीं अगर वाकई में पानी एक्सपायर नहीं होता है तब भी पानी की बोतलों पर एक्सपायरी डेट डालना पड़ेगा। बाद में इस कानून में कुछ बदलाव कर दिए गए।

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