जिला अस्पताल पुरूष व महिला में अराजकता का बोलबाला – निजी एम्बुलेंस संचालक, दवा के दलाल रोगियों व तीमारदारों का करते उत्पीड़न – अस्पताल प्रशासन अंकुश लगाने में फेल, कतिपय चिकित्सकों दलालों की जुगलबंदी

फतेहपुर। जिला अस्पताल का वर्तमान अराजकता से भरा है। पुरूष और महिला दोनो ही तरफ दलालों और अराजकता फैलाने वालों का जमघट लगा रहता है। जिला प्रशासन ने इन्हीं शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए अस्पताल परिसर में अस्थाई पुलिस चौकी स्थापित किया, लेकिन रोगियों और तीमारदारों को इसका भी कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। इमरजेंसी कक्ष से लेकर वार्ड में भर्ती मरीजों का शोषण अस्पताल कर्मियों की सह पर होना आम हो गया है। चिकित्सक भी कम नहीं है। कतिपय चिकित्सकों की दवा के दलालों से सांठगांठ रोगियों पर भारी पड़ रही है। यही हाल महिला अस्पताल का भी है। जिला महिला चिकित्सालय में आने वाले अधिकतर प्रसूताओं को बिना रेफर कागज दिए ही जच्चा-बच्चा को जान का खतरा बता कर दलालों के हवाले करने में कोई संकोच नहीं किया जाता।
जिला अस्पताल की इमरजेंसी निजी एम्बुलेंस चालकों की अराजकता की भेंट चढ़ रही है। इमरजेंसी में आने वाले रोगी के साथ इनका नंगानाच शुरू हो जाता है। एक रोगी को अपने वाहन में ले लाने के लिए कई एम्बुलेंस इमरजेंसी परिसर को घेर लेते हैं। हालात यह हो जाते हैं कि लोगों को अस्पताल के अंदर जाने और बाहर निकलने में मुश्किलें खड़ी हो जाती है। रविवार की देर रात एक ऐसा ही नजारा देखने को मिला जब एक गंभीर रोगी इमरजेंसी पहुंचा तो निजी एम्बुलेंस चालकों की भीड़ इमरजेंसी के अंदर और वाहनों की भीड़ इमरजेंसी के मुख्य द्वार से लेकर चैनल द्वार तक लग गई। इतना ही चिकित्सक या स्वास्थ्य कर्मियांे को रोगी को प्राथमिक उपचार देने में कठिनाईयां खड़ी हो गईं। बावजूद इसके न तो कोई प्रशासनिक अधिकारी ने संज्ञान लिया और न ही अस्पताल प्रशासन ने इस पर अंकुश लगाने की कोई कार्यवाही की। चौकी पुलिस तो कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आई। केवल इमरजेंसी में तैनात होमगार्ड के एक दो जवान अपनी बात कहते रहे, लेकिन अराजकता फैलाने वालों पर इसका कोई प्रभाव नहीं रहा।
इनसेट-
महिला अस्पताल का बुरा हाल
फतेहपुर। जिला महिला अस्पताल का भी बुरा हाल है। ग्रामीण इलाकों से देर-सबेर आने वाली प्रसूताओं को प्रवेश द्वार से लेकर लेबर रूम तक दलालों की फौज घेरने लगती है। लेबर रूम में जाते ही उनकी जांच रिपोर्ट मांगी जाती है। यदि जांच रिपोर्ट नहीं है तो सुबह का इंतजार नहीं किया जाता, बल्कि वहां मौजूद चिकित्सक सीधे एक पैथालाजी को फोन कर बुलाया जाता है और डेढ़ से दो हजार की जांच कराई दी जाती है। यहां से रोगी और तीमारदार का आर्थिक व मानसिक उत्पीड़न शुरू हो जाता है। इतना ही नहीं प्रसूता और उसके तीमारदारों को पहले तो अस्पताल में सुविधाएं नहीं होने की बात करते हुए कहीं दूसरी जगह ले जाने की बात कहीं जाती है, लेकिन उन्हंे रिफर पर्चा नहीं दिया जाता, बल्कि यह कहा जाता है कि जहंा आप चाहो ले जाओ। इस बीच दलाल सक्रिय हो जाते हैं और फिर उन्हें बरगला कर किसी न किसी नर्सिंग होम में डाल दिया जाता है।
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चिकित्सक व दलाल की जुगलबंदी
फतेहपुर। जिला चिकित्सालय के कतिपय चिकित्सकों और दवा के दलालों की जुगलबंदी रोगी और तीमारदार के उत्पीड़न का एक बड़ा कारण है, लेकिन जिलाधिकारी से लेकर अस्पताल प्रशासन इस पर अंकुश नहीं लगा सका। हड्डी रोग से ग्रसित रोगियों में तो यह जुगलबंदी सबसे अधिक कारगार साबित हो रही है। हड्डी टूटने के मामलों सौ में नब्बे फीसदी को आपरेशन की सलाह ही नहीं दी जाती, बल्कि उसको इतनी बातें बताई जाती हैं कि वह दहशत में आकर आपरेशन कराने को मजबूर हो जाता है। केवल दस फीसदी लोगों को प्लास्टर लगाकर चिकित्सक अपनी र्दमानदारी के दुहाई देते हैं। अस्पताल के आंकडें देखने से सारी सच्चाई बाहर निकल कर आती है। आपरेशन के नाम पर पहले भारी-भरकम रकम वसूली फिर एंटीबायोटिक अच्छी के नाम पर बाहर की भारी कमीशन वाली मंहगी दवाएं चला कर रोगी और तीमारदार की कमर तोड़ने का काम किया जा रहा है। आखिर कब लगेगी लगाम और कौन करेगा कार्रवाई? यह सवाल अनायास ही लोगों में चर्चा का विषय बना है।

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