पैरों से पढ़कर किया बीएड, बोला-इज्जत से जीने को सरकारी नौकरी चाहिए

 

करौली में एक दिव्यांग की मदद के लिए लोगों ने सोशल मीडिया पर अभियान चलाया गया है। मुख्यमंत्री व राज्यपाल से अपील की गई है कि गरीब दिव्यांग की मदद की जाए। सोशल मीडिया पोस्ट को लोगों का समर्थन मिल रहा है। यह पोस्ट सायपुर गांव के दिव्यांग कृष्ण के लिए है, जिसके दोनों हाथ नहीं है, उस पर बुजुर्ग पिता की जिम्मेदारी है।

करौली के सायपुर गांव निवासी कृष्ण कुमार के कंधे से दोनों हाथ नहीं होने के बाद भी वह सिर्फ अपने पिता की सेवा कर रहा है बल्कि अपने जीवन यापन के लिए भी संघर्ष कर रहा है। पिता को बुजुर्ग पेंशन स्कीम का 1000 रुपया व कृष्ण के दिव्यांग पेंशन का 750 रुपए हर महीने मिलता है। इसी 1750 रुपए से दोनों का खर्च चलता है। कृष्ण सरकारी नौकरी पाने के लिए रीट परीक्षा की तैयारी कर रहा है।

सायपुर गांव निवासी कृष्ण कुमार चतुर्वेदी (32) पुत्र घिस्या राम चतुर्वेदी के हाथ 1996 में 6 साल की उम्र में एक हादसे में कट गए थे। वह खेत पर डीजल पंप सेट को बंद कर रहा था। इस दौरान दोनों हाथ कंधों से उखड़ गए। इसके बाद कृष्ण ने जीने के लिए संघर्ष किया। उसने पैरों से लिखना-पढ़ना सीख कर हिस्ट्री से एमए व बीएड तक शिक्षा हासिल की।

कृष्ण कुमार लगातार प्रतियोगी परीक्षाएं देता है। उसका कहना है कि सम्मान से जीने के लिए सरकारी नौकरी जरूरी है। कृष्ण कुमार ने गांव में बच्चों को फ्री ट्यूशन पढ़ाता है। गांव के 130 बच्चे उसके पास पढ़ने आते हैं। उसने फीस के 50 रुपए लेने शुरू किए तो बच्चों ने पढ़ना छोड़ दिया।

कृष्ण कई बार जिला प्रशासन से रोजगार उपलब्ध कराने के लिए मदद की गुहार लगा चुका है। एक बार जिला कलेक्टर ने जिला परिषद को उसके लायक काम सौंपने के निर्देश दिए। लेकिन आवागमन के लिए साधन उपलब्ध नहीं होने और बिना सहायता काम नहीं कर पाने के कारण वहां भी बात नहीं बनी।

कृष्ण कुमार के साथ उसके बुजुर्ग पिता भी रहते हैं। पिता की तबीयत अक्सर खराब रहती है। बंटवारे में 1 बीघा भूमि उसके हिस्से में आई है। जिसे बंटाई पर दिया हुआ है। कृष्ण कुमार 7 भाई और तीन बहनों में सबसे छोटा है। पहले कृष्ण कुमार के काम में मां उसकी मदद करती थी। कोरोना से 2021 में मां का निधन हो गया।

अब कृष्ण कुमार का भतीजा रोजमर्रा के काम में उसकी मदद करता है। कृष्ण कुमार के भाई दूध बेचने, खेती मजदूरी का काम करते हैं। कृष्ण को तीन साल पहले आवास योजना में मकान आवंटित हुआ था। लेकिन मकान बनवाने के पैसे नहीं थे। वह चाहता है कि उसके प्रोस्थेटिक हाथ लग जाएं, ताकि सामान्य लोगों की तरह वह अपना काम कर सके। एनहार्डी सहित कई संस्थाओं ने मदद का प्रयास भी किया। लेकिन कंधे से प्रोस्थेटिक हाथ की तकनीक फिलहाल भारत में विकसित नहीं है।

दिल्ली के एक भामाशाह ने कृष्ण के घर में इंग्लिश टॉयलेट का निर्माण कराया है।कृष्ण अपने कंधों से पिता के पांव दबाता है। पिता की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। ऐसे में गांव के लोग अब सोशल मीडिया पर कृष्ण की मदद के लिए अभियान चलाए हुए हैं।

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