ब्लड कैंसर मरीजों के लिए अच्छी खबर है। कैंसर ग्रस्त चूहों पर प्रयोग करके देखा गया है कि उनकी लाइफ ढाई गुना ज्यादा तक बढ़ गई। काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानी BHU के जूलॉजी डिपार्टमेंट में ब्लड कैंसर पर रिसर्च हुआ है।
प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय रिसर्च जर्नल “एपोप्टोसिस” ने इसे दो भाग में पब्लिश किया है। स्टडी में यह बात सामने आई कि ब्लड कैंसर के रोगियों की लाइफ ढाई गुना तक बढ़ाई जा सकती है। कहने का मतलब यह है कि अगर किसी मरीज के पास एक महीना ही बचा है, तो उसे ढाई महीने तक जीवित रखा जा सकता है।
BHU में 12 चूहों पर हुए प्रयोग का रिजल्ट काफी चौंकाने वाला आया। भारत में पहली बार इस रिसर्च में एक डायग्नोस्टिक मार्कर की पहचान हुई है, जो कि कैंसर को फैलाने की मेन वजह है। इसके आधार पर दवा बनाकर ब्लड कैंसर के शुरुआती स्टेज वाले मरीजों की जान बचाई जा सकती है। साथ ही लास्ट स्टेज वाले मरीजों को कुछ दिन और जिंदा रखा जा सकता है।
असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अजय कुमार के गाइडेंस में हुआ रिसर्च
BHU में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अजय कुमार के गाइडेंस में उनके स्टूडेंट विशाल कुमार गुप्ता ने यह रिसर्च किया है। डॉ. अजय कुमार ने बताया, “ब्लड कैंसर में खून में मौजूद तत्व T-सेल लिंफोमा का लेवल काफी बढ़ जाता है। यह एक तरह का इम्यून सेल होता है। इसमें LPA रिसेप्टर Ki16425 मौजूद होता है, जो कैंसर सेल के गेटवे का काम करता है। LPA का पूरा नाम लाइसोफॉस्फेटिडिक एसिड है। हमने जिस बायोमार्कर की पहचान की है, ये वही रिसेप्टर है।”
“कैंसर फैलने की स्पीड आधी हो जाएगी”
डॉ. अजय ने कहा, “अगर इस गेटवे या रिसेप्टर को ब्लॉक कर दें, तो कैंसर के फैलने की स्पीड तक कम हो जाती है। रिसर्च के दौरान इस विधि का प्रयोग किया गया, तो देखा कि ब्लड कैंसर से पीड़ित चूहे 50 दिन तक जिंदा रह गए। जिन चूहों में रिसेप्टर को नहीं कंट्रोल किया गया, वे 20 ही दिन में मर गए।”
उन्होंने बताया, “मरीजों के ब्लड सेल में में LPA रिसेप्टर जब तक एक्टिव रहेगा, कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने में मदद करेगा। मरीज को बचा पाना असंभव है। मगर, इसके सिग्नल को तोड़ दिया जाए, तो T-लिंफोमा ग्लूकोज की सप्लाई कम हो जाएगी। इससे मरीज को बहुत जल्दी रिकवर किया जा सकता है।”
“सामान्य इंसानों को LPA से कोई नुकसान नहीं”
रिसर्च स्टूडेंट विशाल कुमार गुप्ता ने बताया, “LPA एक नेचुरल बायोएक्टिव फॉस्फोलिपिड्स है। यह बॉडी में टिश्यू की मरम्मत, घाव भरने और कोशिकाओं को जिंदा रखने में हेल्प करता है। यानी एक स्वस्थ इंसान में यह इसी तरह से काम करता है। मगर, जब कैंसर होता है तो यह खतरनाक हो जाता है। आमतौर पर हमारे ब्लड के RBC सेल 30 दिन में मर जाते हैं और दूसरे बन जाते हैं। मगर, इसी LPA की वजह से कैंसर कोशिकाएं मरती ही नहीं।”
ये युवा वैज्ञानिक भी रहे शामिल
शोध छात्र प्रदीप कुमार जयस्वरा, राजन कुमार तिवारी और शिव गोविंद रावत भी रिसर्च करने वाली टीम में शामिल थे। इस रिसर्च में पहली बार इस प्रकार के कैंसर को बढ़ाने में लाइसोफॉस्फेटिडिक एसिड की भूमिका प्रदर्शित की गई है।
ब्लड कैंसर के लक्षण
- नाक, मसूड़ों और मलाशय से निरंतर खून बहता है।
- पीरियड्स के समय महिलाओं को ज्यादा ब्लीडिंग होती है।
- लगातार बुखार आता रहता है।
- हड्डियां कमजोर पड़ जाती हैं और उनमें दर्द बना रहता है।
- हाथ, गले, कमर में सूजन या गांठ निकलने की समस्या होती है।
- रात को सोते समय काफी पसीना आता है।
- पेट के बाईं तरफ सूजन और दर्द होता है।
- भूख नहीं लगती है और इस वजह से तेजी से वजन घटता है।
ब्लड कैंसर का पता लगाने के लिए ये टेस्ट कराएं
बायोप्सी : अगर शरीर में ब्लड सेल्स अनियमित नजर आएं, तो डॉक्टर बायोप्सी कराने की सलाह देते हैं। इसमें बोन मैरो की बायोप्सी होती है।
कंप्लीट ब्लड काउंट टेस्ट : रक्त कोशिकाओं की ज्यादा या कम संख्या का पता लगाने के लिए डॉक्टर इस टेस्ट की सलाह देते हैं।
ब्लड प्रोटीन टेस्ट : संक्रमण से लड़ने में ब्लड सेल्स में पाए जाने वाला इम्यूनोग्लोबुलीन मददगार होता है। इसे इम्यून सेल प्रोटीन कहा जाता है। मायलोमा ब्लड कैंसर में काफी मात्रा में असामान्य कोशिकाओं का निर्माण होता है। ऐसे में डॉक्टर ब्लड प्रोटीन टेस्ट कराने की सुझाव देते हैं।
ऐसे होता है ब्लड कैंसर का ट्रीटमेंट
कीमोथेरेपी : ब्लड कैंसर के उपचार के कीमोथेरेपी की जाती है। यह कैंसर की कोशिकाओं के विकास को रोकने में मददगार है।
स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन : यह उपचार स्वस्थ रक्त बनाने वाली कोशिकाओं के साथ इन्फ्यूज करने के लिए किया जाता है।
रेडिएशन थेरेपी : डॉक्टर स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से पहले कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए रेडिएशन थेरेपी की सलाह देते हैं।