नौकरी छोड़कर 21,000 KM की पैदल यात्रा पर निकले, 7 महीने में 6,500 KM चल चुके 

 

अब पूरे देश में ब्लड डोनेट करने की मुहिम को लेकर 21,000 किलोमीटर की पैदल यात्रा पर निकल पड़ा हूं। जिस वक्त किरण हमारे साथ ऑनलाइन बातचीत कर रहे हैं, वो 10 राज्यों की यात्रा कर महाराष्ट्र के औरंगाबाद में हैं।

किरण चाहते हैं कि लोग ब्लड डोनेशन को लेकर इतने जागरूक हों कि 2025 तक समय पर ब्लड नहीं मिलने की वजह से एक भी व्यक्ति की मौत ना हो। वो कहते हैं, ‘सरकार हॉस्पिटल बना सकती है। ब्लड बैंक बना सकती है, लेकिन ब्लड नहीं बना सकती। इसके लिए हमें ही आगे आना पड़ेगा।’

किरण वर्मा कहते हैं, ‘एक दिन में 30 किलोमीटर की दूरी तय करता हूं। दो साल में 21,000 किलोमीटर की दूरी तय करने का लक्ष्य है। अब तक 6,500 किलोमीटर चल चुका हूं। जब इस मुहिम को लेकर प्लानिंग कर रहा था और एक जिले से दूसरे जिले की दूरी को देखते हुए पूरे देश की मैपिंग की, तो पता चला कि मुझे पूरे देश की यात्रा के लिए करीब 21,000 किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी।’

किरण मूल रूप से दिल्ली के मौजपुर इलाके के रहने वाले हैं। वे बताते हैं, ‘दिसंबर 2021 में केरल से इसकी शुरुआत की थी। उसके बाद तमिलनाडू, पुडुचेरी, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, दादरा नगर हवेली, दमन द्वीप गया। अब गुजरात से फिर महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके की ओर जा रहा हूं।’

किरण कहते हैं, ‘अपनी 90 फीसदी यात्रा पैदल करता हूं। जहां जाने की परमिशन नहीं होती है या ना के बराबर आबादी, वहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट से ट्रैवल करता हूं। लोगों के यहां ही खाना-पीना, रहना होता है।’

दरअसल, किरण अपनी यात्रा के दौरान लोगों से मिलते हैं। गांव-गांव जाते हैं। अपने मिशन और ब्लड डोनेट करने की जरूरत के बारे में बताते हैं। वहां के लोकल एडमिनिस्ट्रेटिव से मिलते हैं।

आपके अब तक के इस मिशन से कितना बदलाव आया है? किरण कहते हैं, ‘5 लाख स्कूली बच्चों से जनसंपर्क कर चुका हूं। अलग-अलग जगहों पर 43 ब्लड डोनेशन कैंप लगाए गए हैं। 10 हजार से ज्यादा लोगों ने ब्लड डोनेट किया है।’

वे कहते हैं, ‘आदिवासी समुदाय, जहां कम पढ़ी-लिखी आबादी है। अब तक वो ब्लड डोनेट करने के बारे में जानते ही नहीं थे। मेरे जागरुकता अभियान के बाद लोगों ने ब्लड डोनेट करना शुरू किया है।’

किरण जब 7 साल के थे, तब उनकी मां की मौत कैंसर की वजह से हो गई थी। वो आज भी उन दिनों को लेकर कहते हैं, ‘बड़ा हुआ तो पापा कहते थे कि मां के लिए ब्लड अरेंज करने में उन्हें काफी दिक्कतें आईं थीं।’

जब किरण ने अपने इस मिशन की शुरुआत की, तो घर वालों ने ऐतराज जताया। वे कहते हैं, ‘मेरी पत्नी पहली शख्स है, जिसने मेरा सपोर्ट किया। उसी की वजह से मैं चल पा रहा हूं। कई बार रोता हूं, टूट जाता हूं तो वही ढांढस बंधाती है। नौकरी करके घर का खर्च चलाती है।’

दिलचस्प है कि किरण वर्मा सिर्फ 10वीं पास हैं। वे कहते हैं, ‘पढ़ाई में बहुत कमजोर था। पहली बार 10वीं के एग्जाम में बैठा, तो फेल हो गया। फिर डिप्लोमा करने की कोशिश की, लेकिन उसमें भी असफल रहा।’

परिवार की आर्थिक तंगी को देखते हुए नौकरी शुरू की। अलग-अलग कंपनियों में काम करने से एक्सपीरिएंस मिलता रहा। आखिरी नौकरी छोड़ी, तो एक बड़े एजुकेशनल ग्रुप का मार्केटिंग हेड था।

किरण ने अपनी जिंदगी में कई लोगों को समय पर ब्लड नहीं मिलने की वजह से मरते देखा है। वो कहते हैं, ‘इस साल हमने 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाया है, लेकिन 75 साल बाद भी हम अपनी समस्याओं से आजाद नहीं हुए हैं। इन समस्याओं की जड़ भी हम हैं और सॉल्यूशन भी… 140 करोड़ की आबादी वाले देश में यदि 50 लाख ब्लड डोनर हर साल तैयार हो जाए, तो देश में एक भी व्यक्ति की मौत ब्लड की कमी से नहीं होगी।’

Leave A Reply

Your email address will not be published.