दुनिया के सबसे अकेले शख्स की मौत, 8 हजार हेक्टेयर जमीन का अकेला वारिस, 26 साल से जंगल में रहता था गुमनाम

 

 

अमेजन के घने जंगलों के बीचों-बीच एक झोपड़ी है। 23 अगस्त को ब्राजील की एजेंसी फुनाई जब वहां पहुंची, तो झोपड़ी के बाहर झूले पर एक शख्स की लाश मिली। जो पिछले 26 सालों से यहां अकेले रहा करता था और अपनी जनजाति का एकमात्र वारिस था। उसकी मौत के साथ ही वो जनजाति और उसका कल्चर भी खत्म हो गया।

उसके पास 8,000 हेक्टेयर जमीन थी। 26 साल पहले उसके परिवार के सभी लोगों को रैंचर्स ने मार दिया था। रैंचर्स खेती और पशुपालन करने वाले बड़े किसानों को कहते हैं।

अपने इलाके में बड़े-बड़े गड्ढे बनाता था

इस शख्स का नाम क्या था, यह कोई नहीं जानता। इसे ‘द मैन ऑफ द होल’ (गड्डों का आदमी) कहा जाता था। उसे यह नाम इसलिए दिया गया था, क्योंकि उसने अपने रहने के लिए इलाके में कई बड़े-बड़े गड्डे किए थे। उसको यह नाम भी फुनाई ने ही दिया था। फुनाई ब्राजील में मूल निवासी जनजातियों को बचाने के लिए काम करने वाली एजेंसी है।

फुनाई के अधिकारी कहते हैं कि उसकी उम्र के बारे में सही जानकारी तो किसी को नहीं है, लेकिन अनुमान लगाया जाए तो वो तकरीबन 60 साल का होगा।

DNA टेस्ट के बाद जंगल में ही दफन

फुनाई ने शनिवार को जारी किए अपने बयान में कहा कि इसकी मौत प्राकृतिक कारणों से हुई होगी। हालांकि, उन्होंने क्रिमिनिल एक्सपर्ट्स को झोपड़ी और आस-पास के इलाकों की तलाशी लेने के लिए भेज दिया है। साथ ही पोस्टमार्टम के लिए उसके शरीर को राजधानी ब्रासीलिया भेजा गया है। एजेंसी DNA टेस्ट करेगी। इसके बाद उसे वापस जंगल में दफना दिया जाएगा।

पंखों से ढका था पूरा शव

मूलनिवासी विशेषज्ञ मार्सेलो डॉस सैंटोस ने उसकी फोटो देख कर बताया कि आदमी का शरीर पंखों से ढका हुआ था। हालांकि इसकी वजह नहीं पता, क्योंकि उसकी किसी से बातचीत नहीं होती थी। अपनी तरह की दूसरी जनजातियों के लोगों से भी नहीं।

पहली बार रिकॉर्ड की गई विलुप्त होती प्रजाति

ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी जनजाति के विलुप्त होने की घटना को रिकॉर्ड किया गया हो। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसी कई जनजातियां हैं, जिनका दुनिया से कोई कॉन्टैक्ट नहीं हैं। फुनाई को कम-से-कम 114 ऐसी जनजातियों के सबूत मिले हैं, जो बाहरी दुनिया से अलग-थलग रहती हैं। इनमें से 28 की मौजदूगी ही पक्के तौर पर कही जा सकती है। इसके चलते, बाकी 86 जनजातियों को सरकार की तरफ से किसी तरह की सुरक्षा नहीं दी जाती है।

जंगल काटने वालों को ब्राजील के राष्ट्रपति का भी समर्थन

पिछले कुछ सालों में प्रशासन अमेजन के जंगलों को बचाने से ज्यादा विकास पर जोर दे रहा है। ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो खुले तौर पर उन इंडस्ट्रीज का समर्थन करते हैं, जो बड़े स्तर पर अमेजन के जंगलों की कटाई और तबाही के लिए जिम्मेदार हैं। राष्ट्रपति बोल्सोनारो ने कटाई, पशुपालन और खुदाई के नियमों में काफी छूट दी है।

साथ ही मूलनिवासियों और उनकी जमीन को मिलने वाली सुरक्षा को कम कर दिया है। इनको बचाने वाली एजेंसियों को सरकार की तरफ से मिलने वाली आर्थिक मदद और स्टाफ में कटौती की गई है।

फुनाई में काम करने वाले गुइलहर्मे मार्टिंस कहते हैं, ‘कई सारे मूलनिवासी समूह खत्म हो चुके हैं। यह बहुत गंभीर बात है कि सरकार और समाज इस बारे में कुछ नहीं जानते। जब तक फुनाई उनके होने की बात नहीं कहता, यह नहीं पता चल सकेगा कि वे कहां रहते हैं, उनकी कितनी जमीन है।’

सुरक्षा नीतियों के चलते कुछ जनजातियां खत्म होने से बच जाती हैं। बाकियों को खत्म होने से नहीं रोका जा सकता। जैसे, माटो ग्रोसो राज्य के मूलनिवासी इलाके में पिरीपकुरा जनजाति रहती है। इसमें केवल 3 लोग जीवित हैं। एक बांझ महिला और दो पुरुष।

कई अधिकारियों ने एजेंसी पर ही सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि एजेंसी फील्ड एजेंट्स से मिली जानकारी पर कोई ठोस कदम नहीं उठाती।

जमीन पर कब्जा करने वालों से आखिरी दम तक लड़ी यह जनजाति

इस जनजाति और किसानों का 1970 के दशक में कई बार आमना-सामना हुआ है। हालांकि, फुनाई का केवल एक बार 1996 में इस आखिरी बचे इंसान से सामना हुआ था। फुनाई की इस टीम को सैंटोस लीड कर रहे थे।

वे कहते हैं कि, ‘द मैन ऑफ द होल अपनी झोपड़ी में छिपा हुआ था। हमने उससे बात करने की कोशिश की। हमने उसे मक्के के दाने और तीर दिए, लेकिन वो डर गया। उसने हम पर हमला किया। इसके बाद हम समझ गए कि उसे अकेले रहना है और इस बात का सम्मान करते हुए हम वापस आ गए।’

इसके एक साल बाद फुनाई ने इस व्यक्ति की जमीन के आसपास जाने पर कई सारे प्रतिबंध लगा दिए। ये सभी 2025 तक लागू रहेंगे।

सैंटोस ने आसपास रहने वाले लोगों से जानकारी इकट्ठा की। वे बताते हैं कि इस मूलनिवासी समूह पर कम से कम दो बार हमला हुआ है। एक बार उन्हें चीनी में जहर मिला कर दे दिया गया था। वहीं, 90 के शुरुआती दशक में 6 लोगों को गोली मार दी गई। सैंटोस कहते हैं, ‘इस जनजाति के साथ जो हुआ वो नरसंहार था।’

बर्तनों और ज्वेलरी का इस्तेमाल करता था

सैंटोस कहते हैं कि वो जिन बर्तनों और ज्वेलरी का इस्तेमाल करता था, वो उस इलाके के मूलनिवासियों से काफी मिलते-जुलते थे। केवल गड्डे खोदना उसे इनसे अलग करता था। उसकी झोपड़ी के बाहर कई सारे गड्डों में तेज भाले मिले हैं। फुनाई का मानना है कि ये उसने शिकार करने के लिए किया होगा। वहीं झोपड़ी के अंदर के जो गड्डे हैं, उनमें खरोंचने के निशान हैं। ऐसा क्यों है, इसकी वजह नहीं पता चल सकी है।

अब उस इलाके में बहुत कम पेड़ बचे हैं

लंदन की सर्वाइवल इंटरनेशनल मानवाधिकारों के लिए काम करती हैं। संस्था की रिसर्च डायरेक्टर फियोना वॉटसन कहती हैं कि, ‘तनारू के इस इलाके से गुजरने पर मैं चौंक गई, अब यहां बहुत कम पेड़ बचे हैं। पशुपालन करने वालों ने पूरे इलाके से पेड़ों को काट दिया है।’

वॉटसन 2005 में फुनाई के साथ यहां आई थीं। ये लोग आखिरी बचे हुए इंसान की खबर लेने आए थे। साथ ही ये यह भी पता करना चाहते थे कि यहां कोई गैरकानूनी गतिविधियां तो नहीं हो रहीं। वे कहती हैं, ‘मेरे लिए वो प्रतिरोध और इच्छाशक्ति का प्रतीक था। वो अपने दम पर जिंदा था। वो शायद दुख या अपने किसी संकल्प के चलते किसी से बात नहीं करता था, न ही किसी से संपर्क रखता था।’

सुरक्षा नीतियों के बावजूद 13 साल पहले तक इस जमीन पर हमले होते रहे हैं। कई लोकल न्यूज रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2009 में इस शख्स पर एक गनमैन ने हमला किया था।

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