लम्पी स्किन बीमारी से बढ़ता गायों की मौत का आंकड़ा,16 हज़ार 387 गायों की मौत, कई किलोमीटर तक फैल रही इसकी दुर्गंध

 

दो-चार गायें भी कभी इधर से उधर हो जाएं या शाम को वक्त पर घर न पहुंचें तो हमारा कलेजा कांप जाता है। ऐसे में हम अब लाखों गायों की मौतों पर मौन क्यों हैं? अकेले राजस्थान में लगभग 75 हजार गाय-बछड़े मर चुके हैं। सरकारी आंकड़ा ही 43 हजार का है।

पीछे गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश भी हैं, जहां लम्पी वायरस लगातार गायों और उनके बछड़ों को लील रहा है। इसका कोई इलाज नहीं। कोई टीका नहीं। कोई तैयारी भी नहीं। बड़ी संख्या में रोज गायें मरती जा रही हैं। इलाज है तो सिर्फ इतना कि बड़ा, लम्बा सा गड्ढा खोदा जाता है और मरी गायों को उसमें गाड़कर पूर दिया जाता है। कई किलोमीटर तक इसकी दुर्गंध फैल रही है।

आस पास दूध-दही का संकट आ रहा है, लेकिन कौन चिंता करे! सरकारें सोई हुई हैं। उन्हें कोई जगाता नहीं। गो सेस के नाम पर करोड़ों का टैक्स वसूला जाता है। लेकिन कहां जाता है, कोई नहीं जानता। टैक्स भी कैसे-कैसे! रजिस्ट्री पर, शराब पर, मैरिज गार्डन की बुकिंग पर, बड़े सौदों, वाहन खरीदी पर भी गो सेस लिया जा रहा है।

गोशालाओं को अनुदान के नाम पर झुनझुना थमाया जाता है। भारी भरकम अनुदान ज्यादातर उन्हीं गोशालाओं को मिलता है, जो या तो किसी राजनीति से जुड़े व्यक्ति की हैं या किसी पार्टी के समर्थक या घोर समर्थक की हैं। अकेले राजस्थान ने पिछले तीन साल में शराब पर गो सेस लगाकर 1205 करोड़ रुपए कमाए हैं। कहां गए? कोई नहीं जानता। कोई नहीं पूछता। सरकार तो कुछ बताने से रही!

यही हाल पंजाब का और उत्तर प्रदेश का भी है। मध्यप्रदेश सरकार ने गो सेस लगाया नहीं है, लगाने की बात चल रही है। दरअसल, लम्पी कोरोना से भी खतरनाक वायरस है। गाएं सिकुड़ जाती हैं। उनके शरीर पर फफोले होने लगते हैं। वे खाना-पीना बंद कर देती हैं और दो-चार दिन में प्राण त्याग देती हैं। वे सड़क पर मरी मिलती हैं। वे घर से खेत के रास्ते में मरी पाई जाती हैं। ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में भरी जाती हैं और किसी एक गड्ढे में गाड़ दी जाती हैं। जैसे यही उनका पहला और आखिरी इलाज हो!

गांवों को कोरोना से भी ज्यादा डरा रहा है ये लम्पी। जाने क्यों निरीह गायों के पीछे पड़ा है। टीलों के कारण मशहूर राजस्थान में अगर आप अब कोई टीला देखें तो ललचाने की जरूरत नहीं है। हो सकता है वह सैकड़ों गायों की कोई कब्रगाह हो!

गायों के रम्भाने से जो घर, गांव आबाद थे, वे सुनसान पड़े हैं। जैसे गांव नहीं श्मशान हों। जिनके घरों में गायों की मौत हुई है, वे लोग ऐसे लग रहे हैं जैसे उनके मुंह पर कोई हल्दी फेर गया हो! इन भयानक, खौफनाक हालात पर भी कोई न जागे तो फिर कब जागेगा? लम्पी के सामने लम्पट व्यवस्था से वैसे भी कोई उम्मीद करना बेमानी है।

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