कूड़े से बनाई करोड़ों की कंपनी, वेस्ट प्लास्टिक से बनाते हैं डीजल जैसा ऑयल, कीमत सिर्फ 45 रुपए प्रति लीटर

 

2009 की बात है। हम दोनों पुणे के एक जंगल में घूम रहे थे। तभी एक हिरण पर नजर गई। वो छटपटा रहा था। उसे हमने अपनी आंखों के सामने तड़पकर मरते देखा। दरअसल, उसकी मौत प्लास्टिक खाने की वजह से हुई थी। इस घटना ने कई रात हमें सोने नहीं दिया।

हमने तय किया कि इस प्लास्टिक का कुछ तो करना होगा। एक रोज हम दोनों एक होटल में खाना खाने के लिए बैठे हुए थे। वेटर ने ग्लास में बर्फ लाकर दिया। बर्फ पिघल गई, तो हमने सोचा कि क्यों न प्लास्टिक को पिघलाकर कुछ किया जाए।

फिर हमने ऐसा फॉर्मूला इजात कि आज वेस्ट प्लास्टिक यानी कूड़े से हर रोज 700 लीटर डीजल जैसा ऑयल बनाकर बेच रहे हैं। यह ऑयल इंडस्ट्रियल मशीनों के अलावा जनरेटर और बोट को ऑपरेट करने में काम आती है। इस इको फ्रेंडली स्टार्टअप से सालाना 2 करोड़ का बिजनेस है।

ये बातें 58 साल के शिरीष फडतारे किसी जंगल में नहीं, पुणे स्थित अपना प्रोडक्शन यूनिट दिखाते हुए हमसे कह रहे हैं।

शिरीष की पुणे यूनिट में इस वक्त 20 लोग काम कर रहे हैं। कोई वेस्ट प्लास्टिक को साफ कर रहा है, तो कोई इसे प्रोसेस कर रहा। वो वेस्ट प्लास्टिक के ढेर को दिखाते हुए कहते हैं, ‘जिसे लोग इधर-उधर फेंक देते हैं, कूड़े का पहाड़ खड़ा करते हैं, उससे हम ऑयल तैयार करते हैं। डिमांड इतनी कि सप्लाई कर पाना मुश्किल।’

शिरीष उन दिनों के बारे में बताते हैं जब वो इस पर एक्सपेरिमेंट कर रहे थे। कहते हैं, ‘हम दोनों साइंस बैकग्राउंड से नहीं आते हैं। इसलिए कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना है। मैं अकाउंटेंट था और मेधा ब्रांडिंग के प्रोफेशन से जुड़ी थी।’

उन पुरानी बातों को याद कर शिरीष मुस्कुराने लगते हैं। कहते हैं, ‘सबसे पहले तो अपने मैकेनिकल और केमिकल बैकग्राउंड के दोस्तों से मिलना शुरू किया था।

हम और शिरीष उस जगह पर पहुंचते हैं, जहां बॉयलर के जरिए वेस्ट प्लास्टिक से ऑयल निकाला जा रहा है। कहते हैं, ‘हम दोनों ने एक प्लांट लगाना तय किया। 10 लाख रुपए की लागत से 35 किलोग्राम का एक प्लांट लगाया। लगातार तीन साल तक एक्सपेरिमेंट करने के बाद वेस्ट से अच्छी क्वालिटी का ऑयल निकला। यह डीजल जैसा था। जिसके बाद 20 लाख रुपए की लागत से 300 किलोग्राम का एक और प्लांट लगाया।’

शिरीष जिस वेस्ट से बने ऑयल को हमें दिखा रहे हैं, उसमें और डीजल में अंतर कर पाना मुश्किल है। वो कहते हैं, ‘आपको ही नहीं, इंडस्ट्री के लोगों को भी यह डीजल जैसा ही दिखाई देता है। हो भी क्यों न, काम भी उसी तरह से करता है और सस्ता है, ये एक्स्ट्रा बेनिफिट। ‘

शिरीष कहते हैं, ‘हमारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं था। घर चलाने के लिए हम दोनों पहले से बिजनेस कर रहे थे। जब हमने वेस्ट से ऑयल बनाने का प्रोसेस शुरू किया तो लोग पागल समझते थे। कहते थे, ये पागल कूड़ा से ऑयल बनाएगा। आज देखिए…’

वो इस ऑयल के बारे में और अधिक जानकारी देते हैं। कहते हैं, ‘जैसे क्रूड ऑयल से पेट्रोल, गैसोलिन, डीजल, केरोसिन जैसे प्रोडक्ट रिफाइन कर बनाए जाते हैं। उसी तरह से वेस्ट प्लास्टिक को पिघलाकर ऑयल बनाया जाता है। प्लास्टिक पूरी तरह से साफ होना चाहिए। कुछ कंपनियां इस ऑयल को खरीदकर फिर से प्लास्टिक भी बनाती है। हम ऑयल बनाकर इंडस्ट्री को सप्लाई करते हैं। इंडस्ट्री के लोग मशीन के लिए डीजल के बदले वेस्ट से बने ऑयल को खरीदना पसंद कर रहे हैं।’

लेकिन इस काम में शिरीष के सामने सबसे बड़ा चैलेंज भी है। वो कहते हैं, ‘कहने को तो वेस्ट प्लास्टिक है। लेकिन इसे बड़ी मात्रा में इकठ्ठा करना चुनौती भरा है।’ शिरीष बताते हैं कि पुणे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (PMC) ने कई बार वेस्ट प्लास्टिक की सप्लाई करने की बात कह चुकी है, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो पाया। वो ट्रस्ट बनाकर पुणे की सोसाइटी से अपने प्लास्टिक वॉरियर्स के जरिए वेस्ट को इकठ्ठा करवा रहे हैं।

शिरीष कहते हैं, ‘यदि सरकार की तरफ से मदद मिले तो हम और अधिक ऑयल का प्रोडक्शन कर सकते हैं। मार्केट में 25,000 लीटर ऑयल की रोजाना डिमांड है, और इसके लिए हमें हर दिन 50 टन वेस्ट प्लास्टिक की जरूरत है।’

वो कुछ आंकड़े हमारे सामने रखते हैं। बताते हैं, ‘पुणे में हर रोज 2,000 टन कूड़ा निकलता है। जिसमें 160 टन प्लास्टिक होता है। इसमें रिसाइकिल करने लायक 80 टन प्लास्टिक होता है। अब शिरीष की कंपनी प्लास्टिक से ऑयल बनाने वाली मशीन की भी मैन्युफैक्चरिंग कर रही है। नोएडा के अलावा अन्य शहरों में भी प्लांट लगाने का काम चल रहा है।

शिरीष कहते हैं, प्लास्टिक को रिसाइकिल करने के बाद निकले वेस्ट से सड़क भी बनता है। अभी तक पुणे की 30 सड़कों का निर्माण कर चुका हूं।

पॉजिटिव स्टोरी की ये तीन रिपोर्ट भी पढ़िए…

1. मां बोली- खादी का काम छोड़ो, शादी करो:आज रिलायंस, रेमंड हमारे कस्टमर, एक साड़ी 32 हजार की; 2.5 करोड़ का टर्नओवर

जिस उम्र में लड़कियां अपने शादी-ब्याह के बारे में सोचने लगती हैं। मां-बाप दरवाजे पर बारातियों का स्वागत करने की तैयारी के बारे में सोचना शुरू कर देते हैं। उस उम्र में भोपाल की उमंग श्रीधर अपने स्टार्टअप के बारे में सोच रही थी।  

2. 55 की उम्र में खेती, सालाना 10 लाख मुनाफा:इनके गार्डन में लगे एक प्लांट की कीमत 15 लाख, तो गेहूं 120 रुपए किलो

पंजाब के लुधियाना से करीब 35 किलोमीटर दूर एक गांव है पक्खोवाल, जहां 55 साल की रुपिंदर कौर ‘कुलराज ऑर्गेनिक फार्मिंग’ चलाती हैं। लंबा-पतला शरीर, उम्र की वजह से हाथों में हल्की झुर्रियां, लेकिन फुर्तीली इतनी कि मेरे पहुंचने पर अपना फार्म दिखाने के लिए खुद चल पड़ती हैं।

3. तीन लाख से बनाई 500 करोड़ की कंपनी:विराट-धोनी जैसे क्रिकेटर पहनते हैं मेरे बनाए कपड़े, एडिडास, रीबॉक हमारे कस्टमर

कई महीने दिल्ली में जॉब ढूंढने के बाद भी मन लायक कोई काम नहीं मिला, तो तुगलकाबाद में सिर्फ 10 सिलाई मशीन लगाकर 13 लोगों के साथ गारमेंट्स बनाने का काम शुरू किया। आज 500 करोड़ का सालाना टर्नओवर है। 2,000 से ज्यादा सिलाई मशीन से हर रोज 50 हजार के करीब टी शर्ट और ट्रैक पैंट तैयार किए जाते हैं। नेशनल-इंटरनेशनल क्रिकेट, आईपीएल, कॉमनवेल्थ गेम्स में हमारी कंपनी के बनाए कपड़े प्लेयर्स पहनते हैं।

Leave A Reply

Your email address will not be published.