दुनिया में सबसे ज्यादा मौतों का कारण बने टीबी के इलाज में शोधकर्ताओं ने दशकों पुराने टीके को ही कारगर बताते हुए कहा है कि इसे नए तरीके से शरीर में लगाने पर बड़ा लाभ मिल सकता है। बीसीजी नाम का यह टीका कई दशकों से बच्चों को लगाया जा रहा है, लेकिन इसके नतीजे उतने अच्छे नहीं रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने बंदरों पर शोध कर पता लगाया है कि इस टीके को नसों के अंदर पहुंचाया जाए तो इसका प्रभाव ज्यादा होता है। फिलहाल बीसीजी का टीका बच्चों की त्वचा के जरिये लगाया जाता है।
10 में से 9 बंदर हो गए ठीक
यूनिवर्सिटी ऑफ पीट्सबर्ग के मेडिकल स्कूल और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शस डिसीजेज द्वारा किया गया शोध नेचमिग्जीन में प्रकाशित हुआ है। इसमें बताया गया है कि टीबी के विषाणुओं से पीड़ित बंदरों के शरीर में नसों के जरिये टीका पहुंचाया गया तो 10 में से 9 बंदर पूरी तरह ठीक हो गए।
इतना ही नहीं, उनके शरीर में टीबी के विषाणु भी पहले से एक लाख गुना कम हो गए। हालांकि, छोटे बच्चों को इस तरह के नियमित टीके नसों के जरिये नहीं दिए जाते, लेकिन अफ्रीका में इसी तरीके से मलेरिया के टीके लगाने का प्रयोग सफल रहा है। इसलिए, वैज्ञानिकों का मानना है कि टीबी के मामले में भी ऐसा हो सकता है।
1921 से हो रहा बीसीजी का इस्तेमाल
ऐसे किया शोध