यहां 40 दिन औरत बनकर रहते हैं आदमी, घुंघरू बांधकर डांस, न मेकअप उतारते हैं, न हरी सब्जी खाते हैं

 

आज हम आपको दिखाते और पढ़ाते हैं सबसे अनोखा डांस फेस्टिवल। अब आप सोच रहे होंगे, अनोखा क्यों? तो पहले एक सवाल का जवाब दीजिए…

क्या आपने ऐसा डांस फेस्टिवल देखा है…
-जो 40 दिन चलता है…
-फेस्टिवल पूरा होने तक आर्टिस्ट मेकअप नहीं उतारते…
-फेस्टिवल में भाग लेने के लिए लोग जॉब और बिजनेस से छुट्‌टी लेकर आते हैं…
-मेल हो या फीमेल सारे रोल पुरुष ही निभाते हैं, पैरों में घुंघरु बांधकर डांस करते हैं…
-जहां एक बार ये फेस्टिवल हो जाता है, उस जगह का नंबर दोबारा 20-25 साल बाद आता है…
– आर्टिस्ट फेस्टिवल पूरा होने तक घर नहीं जा सकते…
– हरी सब्जी नहीं खा सकते…
आप में से बहुत से लोगों का जवाब होगा…नहीं

ये अनोखा डांस फेस्टिवल इन दिनों मेवाड़ के कई गांवों में चल रहा है। आदिवासी समाज के इस डांस फेस्टिवल को गवरी नृत्य कहा जाता है। गवरी को लेकर समाज के लोगों में इतना क्रेज है कि जिस गांव में ये फेस्टिवल होता है, वहां के लोग देश में जहां भी हों, इस इवेंट का हिस्सा बनने के लिए बिजनेस और जॉब से छुट्‌टी लेकर आते हैं।

आपको जानकर ताज्जुब होगा कि भील जनजाति के इस डांस फेस्टिवल में पार्टिसिपेट करने वाले कलाकार एक बार मेकअप कर लेते हैं तो चालीस दिन तक अपने श्रृंगार को नहीं उतारते हैं। ये कलाकार श्रृंगार करने के लिए हल्दी, आटा और पत्तियों के रस से बने रंग को इस्तेमाल करते हैं। कलाकार जिस अवतार में होते हैं वो भी कभी नहीं बदलते हैं। वो ना तो चप्पल पहनते हैं और न ही कभी अपने साज को जमीन पर रखते हैं। इसके साथ ही सभी कलाकार 40 दिनों तक नहाते भी नहीं है।

मेल हो या फीमेल, सारे किरदार पुरुष निभाते हैं
फेस्टिवल की सबसे खास बात है इसमें सिर्फ पुरुष ही पार्ट लेते हैं। पुरुष ही देवी बनते हैं और पुरुष ही देवता। चेहरे पर महिलाओं जैसा मेकअप और पैरो में घुंघरू बांधे जब ये पुरुष थिरकते हैं तो हर कोई रोमांचित हो जाता है। राजसमंद, चित्तौड़गढ़, उदयपुर और प्रतापगढ़ इलाके में गवरी नृत्य को लेकर ज्यादा क्रेज है। भील समाज का यह नृत्य राजस्थान का सबसे प्राचीन लोक नाट्य माना जाता है, जिसे केवल पुरुष करते हैं।

20-25 साल बाद मिलता है मौका
हिस्टोरियन का कहना है कि गवरी नृत्य अपने आप में पौराणिक कथाओं का इतिहास है। इसमें शिव पार्वती की कथा का वर्णन मिलता है, लेकिन यह कहीं पर भी लिखित नहीं है। लोकगीतों के जरिए यह सदियों से आदिवासियों की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंच रहा है। खास बात ये है कि भील समाज में गवरी नृत्य हर साल अलग-अलग गांवों में किया जाता है। ऐसे में एक गांव का दोबारा नंबर आने में 20-25 साल लग जाते हैं।

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