मैं चार्वी अनिल कुमार बेंगलुरु से हूं और 8 साल की उम्र में मैंने देश के लिए चेस चैंपियन में गोल्ड मेडल जीता है। मैंने 4 साल की उम्र से इस खेल के दांव-पेच सीख रही हूं। मैंने जॉर्जिया में हुए अंडर 8 वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप जीतकर ये साबित करने की कोशिश की है कि मेहनत कभी कामयाबी उम्र की मोहताज नहीं होती।
यूट्यूब के जरिए सीखती थी गेम के मूव्स
मैं 4 साल की थी जब मम्मी-पापा ने बिजी रूटीन और जॉब के कारण मुझे डे केयर सेंटर में डाला था। स्कूल के बाद का समय मैं वहीं बिताती और दूसरे बच्चों के साथ कई तरह के गेम्स सीखती और खेलती थी। इसी दौरान मैंने एक दिन अपनी दोस्त के साथ चेस खेला।
शुरुआत में मुझे चेस के रूल्स और मूव्स को समझने में मुश्किल हुई। लेकिन मैंने जब एक दिन कार्टून देखते-देखते यूट्यूब में सर्च किया तो देखा कि वीडियोज को देखकर गेम खेलने का तरीका सीखा जा सकता है।
यूट्यूब वीडियोज के जरिए राजा, वजीर, ऊंट, घोड़े के चाल सीखने और समझने लगी। धीरे-धीरे ये गेम मुझे इतना पसंद आने लगा कि घर में भी मैं घंटों खेलती रहती थी। यहां तक कि कई बार तो मम्मी को मुझे खाना खिलाने के लिए भी मेरा चेस बोर्ड छुपाना पड़ता था और बोर्ड मिलने के लालच में मैं चुप-चाप वह सारी चीजें भी आसानी से खा जाती थी, जो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं होतीं।
पसंद और टैलेंट को पापा ने दी सही दिशा
मैं आज जो कुछ भी कर पाई हूं उसका सारा श्रेय मेरे पेरेंट्स को जाता है। उन्होंने शायद सही समय पर मेरे अंदर छुपे टैलेंट को भांप लिया था। इसलिए साल 2018 में उन्होंने मेरा एडमिशन देश के टॉप चेस प्लेयर आई एम शिवानंद के एकेडमी में करवा दिया।
एकेडमी में एडमिशन होने के बाद दिन मैं दिन के 3 से 4 घंटे चेस खेलने और कॉम्पिटिशन की प्रैक्टिस करती थी।
एकेडमी में जाने के बाद मेरे गेम में इंप्रूवमेंट दिखने लगा। मैंने स्टेट लेवल कॉम्पिटिशन में टॉप 6 में जगह बनाई। उसके बाद कोरोना आ गया और इस कारण वो सभी कॉम्पिटिशन कैंसिल हो गए, जिसमें मैं पार्ट लेने वाली थी। हालांकि ऑनलाइन क्लासेज के जरिए मैं लगातार क्लासेस अटेंड करती और प्रैक्टिस करती रही।
2021 में जीते कई टाइटल
2 साल की प्रैक्टिस का नतीजा यह रहा कि 2021 में मैंने जितने भी टूर्नामेंट में पार्ट लिया, उसमें अपनी जगह बनाने में कामयाब रही।
मैंने अंडर 7 नेशनल स्कूल गर्ल्स चैंपियनशिप का खिताब जीता। मैंने ऑनलाइन हुए अंडर 8 एशियन स्कूल चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता और मैं गोल्ड जीतने वाली टीम की सदस्य रही।
चेस के कारण मेरा कॉन्सन्ट्रेशन लेवल बढ़ता गया और यही वजह है कि गेम के कारण मैं अपने पढ़ाई को होने वाले नुकसान को बचा पाई। मैं हमेशा अपने रूटीन को फॉलो करती हूं और कोशिश करती हूं कि स्कूल में ही पढ़ाई से रिलेटेड काम पूरा कर लूं।
वुमन ग्रैंड मास्टर आरती रामास्वामी से सीखा हर बाजी को जीतना
चेस के लिए मेरे लगाव को देखते हुए वुमन ग्रैंड मास्टर आरती रामा स्वामी और उनके पति ग्रैंड मास्टर आरबी रमेश मुझे वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए तैयार करने को आगे आईं।
उन्होंने मुझे हर बाजी को किस तरह जीतना है इसके गुण सिखाए। उन्होंने मुझे हर हाल में गेम पर फोकस करना, अपने मूव से सामने वाले खिलाड़ी को कन्फ्यूज करना और सही समय पर सही चाल चलने के गुण बताए। मेरे दोनों कोच ने मेरा बहुत सपोर्ट किया। मुझे जब भी जरूरत होती थी वो मुझे समय देते हैं।
वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए करती थी 5 से 6 घंटे प्रैक्टिस
मैंने जब एशियन चैंपियनशिप में हिस्सा लिया था, उसी समय से मैं वर्ल्ड चैंपियनशिप की तैयारी में जुट गई थी। जैसे-जैसे चैंपियनशिप करीब आ रही थी मैं अपने प्रैक्टिस सेशन को बढ़ाती जा रही थी। मैं दिन में 6 से 7 घंटे प्रैक्टिस करती थी।
इस बीच भुवनेश्वर में हुए नेशनल स्कूल ओपन चेस टूर्नामेंट में मैंने अंडर 15 में पार्ट लिया 158 लड़कों में मैं अकेली लड़की थी। मैं इस टूर्नामेंट में चौथे स्थान पर रही।
देश के लिए गोल्ड जीतने पर विश्वनाथन आनंद ने भी की तारीफ
जॉर्जिया में हुए वर्ल्ड चेस चैम्पियनशिप में अंडर 8 गर्ल्स के 11 दौर में 9.5 स्कोर हासिल किया। मेरा टाईब्रेक स्कोर बेहतर था, जिस कारण मैं गोल्ड जीतने में सफल रही। जीतने के बाद जब पोडियम पर खड़े होकर मैंने अपना राष्ट्रगान गाया तब मुझे पहली बार समझ आया कि प्राउड होना किसे कहते हैं।
जीतने के बाद जब मैं देश लौटी तो शहर और आसपास के लोगों से जो प्यार मिला तो अच्छा लगा। मुझे अपने आदर्श विश्वनाथन आनंद सर से मिलने का मौका मिला, उन्होंने मेरी तारीफ की और कहा कि अभी बहुत आगे जाना है। उसके लिए बहुत मेहनत करनी होगी। मेरा सपना है कि मैं चेस में एक वर्ल्ड चैंपियन के तौर पर जानी जाऊं।