ये कहानी 13 और 14 साल की दो बच्चियों की है। इनमें से एक अब नहीं रही। 16 से 18 सितंबर तक उसके साथ 2 लड़कों ने गैंगरेप किया। वह इंसाफ मांगने पिता के साथ थाने पहुंची तो गाली देकर, पीटकर भगा दिया गया। 20 दिन तक उसने इंतजार किया। DM से लेकर CM तक गुहार लगाई।
5 अक्टूबर की सुबह वो कुछ देर घर के आंगन में टहलती रही, फिर अपने कमरे में जाकर चुपचाप फांसी लगा ली। उसके कमरे में दीवार पर एक स्कूल बैग, जींस और स्टॉल टंगा हुआ है, बस अब यही बचा है।
दूसरी बच्ची की मां मीरा इसी रेप-सुसाइड केस में जेल में है। घर में बचे दो बुजुर्गों की जिम्मेदारी उस अकेली के कंधों पर है। उसके घर में एक मोबाइल फोन था, जो पुलिस अपने साथ ले गई। वह मां से भी बात नहीं कर पाई है। इस एक घटना ने उसे वक्त से पहले बड़ा कर दिया। वो बात करते हुए लगातार रोती है और मां को निर्दोष बताती है।
पुलिस सुन लेती तो आज बिट्टी जिंदा होती
UP के अंबेडकर नगर के कांदीपुर गांव में 5 अक्टूबर को 13 साल की रेप विक्टिम ने आत्महत्या कर ली। यह गांव मालीपुर थाने में आता है। पुलिस पर सवाल उठे, ऑनर किलिंग की अफवाह भी उड़ी। मैं जब यहां पहुंचती हूं, तो कीचड़ से भरी सड़क और सवालों से भरी आंखों के सिवा कुछ नजर नहीं आता। विक्टिम के घर अब तक रिश्तेदार मौजूद हैं।
पिता बीमार हैं। मां की आंखों में दुख और गुस्सा दोनों हैं। दुख इस बात का कि बच्ची अब नहीं रही। बार-बार कहती है, पुलिस अगर हमारी बात सुन लेती, तो बच्ची सुसाइड नहीं करती।
इंसाफ मांगने गए तो सिपाही ने बिट्टी को पीटा, पापा को गाली दी
विक्टिम की बड़ी बहन उसके स्कूल बैग से किताबें निकालकर दिखाती है। कहती है- उस दिन वह यही बैग लेकर स्कूल के लिए निकली थी। पढ़ने में अच्छी थी। 16 सितंबर को सुबह 7 बजे स्कूल के लिए निकली, लेकिन फिर वापस नहीं लौटी। उसे बहुत खोजा।
18 सितंबर को जब वापस आई तो उसने बताया कि मुझे दो कार सवार लोगों ने जबरदस्ती उठा लिया। मैंने देखा चाची और चाची को जानने वाला अरशद उन लोगों को इशारा कर रहा था।
अगवा करने वाले लोग उसे लखनऊ के किसी होटल में ले गए। वहां दो दिन रखा और बारी-बारी से रेप किया। एक लड़के के गले से लेकर कंधे तक एक टैटू बना था और उसने एक सिल्वर कलर का कड़ा पहना था। दो दिन तक उसे खाना पानी कुछ नहीं दिया। तीसरे दिन जब वे लोग होटल का बिल जमा करने गए, तब वो वहां से भागकर घर आ गई।
बिट्टी उसी दिन (18 अक्टूबर) पापा के साथ थाने गई। पुलिस ने बच्ची की शिकायत सुनने की बजाय उसे ही डांट-फटकार लगा दी। मोनिका नाम की एक सिपाही ने बिट्टी के साथ मारपीट भी की। पापा के साथ भी गाली-गलौज की।
DM से मिलने गए तो चॉकलेट देकर लौटा दिया
बहन ने बताया कि अपहरण की रिपोर्ट 16 सितंबर को ही लिखवा दी गई थी। 18 सितंबर को बच्ची ने वापस आकर भी पुलिस को सब कुछ बताया, लेकिन 15 दिन तक पुलिस ने कुछ नहीं किया। हमने गांव के अरशद और चाची का नाम FIR में लिखवाया था। किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई।
बिट्टी के साथ पापा DM सैमुअल पॉल एन के पास शिकायत करने गए थे। वहां भी सुनवाई न होते देख बिट्टी जोर-जोर से रोने लगी तो उसे चॉकलेट देकर वापस भेज दिया। इसके बाद बिट्टी और पापा 29 सितंबर को SP दफ्तर और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ऑफिस भी गए थे। वहां भी अपनी अर्जी दी, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
दारोगा से बिट्टी ने कहा था- फांसी लगा लूंगी
विक्टिम का भाई भी उसकी आत्महत्या के लिए पुलिस को दोषी मानता है। उसने कहा- 4 अक्टूबर की सुबह दारोगा प्रमोद खरवार पूछताछ करने घर आए थे। बिट्टी को अलग ले जाकर पूछताछ की। उसे बार-बार कुछ फोटो दिखाकर पहचानने का दबाव डाल रहे थे।
बड़ी बहन से भी अलग से पूछताछ कर रहे थे। हम पर उलटा केस करने की धमकी दी। थप्पड़ भी दिखाया। बिट्टी उसके बाद से बहुत डर गई थी। उसने उनके सामने ही कह दिया था कि इंसाफ नहीं मिला तो फांसी लगा लूंगी। इसी के अगले दिन 5 अक्टूबर की सुबह बिट्टी ने फांसी लगा ली।