सुप्रीम कोर्ट तय करेगा मुस्लिम लड़कियों की शादी की उम्र,फिलहाल मासिक धर्म पा चुकी नाबालिग लड़की भी कर सकती है निकाह

 

‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के एक और नियम के खिलाफ देश की सबसे बड़ी अदालत में बहस की तारीख मंजूर हो गई है। इस बार मुद्दा है- मुस्लिम लड़कियों के निकाह की उम्र।

17 अक्टूबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के लिए 9 नवंबर 2022 की तारीख तय की है।

सबसे पहले जानिए पूरा मामला क्या है?
जून 2022 में 16 साल की नाबालिग मुस्लिम लड़की और 21 साल के मुस्लिम लड़के से जुड़ा एक मामला पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में पहुंचा। याचिका में दोनों ने बताया था कि उन्होंने हाल ही में निकाह किया है। उन दोनों के परिवार वाले इस निकाह के खिलाफ हैं, ऐसे में उन्हें सुरक्षा दी जाए।

सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने कहा, ‘कानून के मुताबिक मुस्लिम लड़कियों की शादी ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के तहत होती है। ऐसे में 15 साल की उम्र में मुस्लिम लड़की निकाह के योग्य हो जाती है।’

जस्टिस जे एस बेदी की सिंगल बेंच ने यह भी कहा कि लड़का-लड़की ने अपने परिवार वालों की मर्जी के खिलाफ निकाह किया है। सिर्फ इस वजह से उन्हें संविधान से मिलने वाले मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है। इस तरह कोर्ट की ओर से उन्हें सुरक्षा दी गई।

हाईकोर्ट के इस फैसले को NCPCR ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के इस फैसले को नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट यानी NCPCR ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। 17 अक्टूबर यानी सोमवार के दिन सुप्रीम कोर्ट के जज एस. के कौल और अभय एस. ओका की दो सदस्यीय पीठ ने इस मामले में नोटिस जारी किया।

अदालत ने इस केस में कानूनी सहायता के लिए सीनियर वकील राजशेखर राव को न्याय मित्र नियुक्त किया है। साथ ही इस मामले में सुनवाई के लिए 9 नवंबर की तारीख तय की है।

‘प्रिंसिपल्स ऑफ मोहम्मडन लॉ’ के हवाले हाईकोर्ट ने सुनाया था फैसला
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस जे. एस. बेदी ने जून महीने में सुनाए अपने फैसले में कहा था कि सर दिनशा फरदुनजी मुल्ला की किताब ‘प्रिंसिपल्स ऑफ मोहम्मडन लॉ’ के अनुच्छेद 195 के मुताबिक 16 साल की लड़की और 21 साल के लड़के के बीच निकाह कानून सही है।

वहीं, इस फैसले को चुनौती देते हुए NCPCR ने कहा कि हाईकोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देकर बाल विवाह की अनुमति दी है। कोर्ट का यह फैसला एक तरह से बाल विवाह रोकने के लिए 2006 में बनाए गए कानून को तोड़ता है, जिसमें 18 साल से कम उम्र में लड़कियों की शादी बैन है।

एक नहीं 2 अहम कानून के खिलाफ है ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’
याचिकाकर्ता की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में लड़कियों की शादी की उम्र 15 साल बताया गया है जो देश के 2 अहम कानून के खिलाफ है..

पहला: बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006

दूसरा: पॉक्सो एक्ट 2012

बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के मुताबिक 18 साल से कम उम्र में शादी कानूनी रूप से अपराध है। इतना ही नहीं जबरन इस तरह की शादी कराने वाले लोग भी अपराधी हैं। हालांकि, इस कानून में कोई ऐसा प्रोविजन नहीं है कि यह किसी दूसरे कानून को खत्म कर देगा। इसलिए पर्सनल लॉ के तहत 15 साल में मुस्लिम लड़कियों को शादी की इजाजत मिल जाती है।

वहीं, पॉक्सो एक्ट 2012 में 18 साल से कम उम्र की लड़कियों को नाबालिग माना जाता है। नाबालिग लड़कियों से शादी करके शारीरिक संबंध बनाना कानूनन अपराध है। यही वजह है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ इन दोनों कानून के खिलाफ है।

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