ग्वालियर में संवेदनहीन सरकारी सिस्टम से एक मां हार गई। उसे 6 महीने से सैलरी नहीं मिली। आर्थिंक तंगी के चलते अपने 7 साल के बेटे को ठीक से खाना तक नहीं खिला पाई। बेटा बीमार हुआ और अस्पताल में अस्पताल में जिंदगी की जंग हार गया।
वेतनभोगी सफाईकर्मी महिला के बेटे की 17 दिन पहले मौत हो गई। वो अभी दफ्तरों के चक्कर लगाती रही है। लेकिन कहीं उसकी सुनवाई नहीं हुई। मंगलवार को महिला बाल भवन पहुंची। मंत्री-अफसर स्थापना दिवस के कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे। बेटे को खोने वाली मां इसी आस में खड़ी थी कि कोई अफसर उसकी बात सुन ले। महिला आखिरकार नगर निगम कमिश्नर किशोर कान्याल से मिली और मदद की गुहार लगाई।
6 महीने से नहीं मिला वेतन
शिंदे की छावनी में रहने वाली 29 साल की निर्मला धौलपुरिया नगर निगम में वेतनभोगी सफाई कर्मचारी है। 6 महीने पहले ही उसे काम पर रखा गया था। तब उससे कहा गया था कि पेपर वर्क पूरा होते ही वेतन मिलना शुरू हो जाएगा। अभी काम जारी रखें, क्योंकि ग्वालियर को स्वच्छता में नंबर एक बनाना है। निर्मला साल 2016 में पति से अलग हुई हो चुकी है। उस पर मां और 7 साल के बेटे वंश के भरण-पोषण की जिम्मेदारी है।
वह लगातार काम करती रही, लेकिन उसे वेतन नहीं मिला। वह पहचान वालों से यह कहकर उधार लेकर घर चलाती रही कि वेतन मिलते ही वापस कर दूंगी। तीन-चार महीने तो ऐसे ही चलता रहा। जब उधारी मिलना बंद हुई तो जो थोड़े गहने थे, उसे बचकर घर चलाया। रुपए नहीं होने से घर की माली हालत खराब होती गई। बेटे को सही पोषण नहीं मिलने से वह बीमार हो गया। बुजुर्ग मां भी बीमार रहने लगी। परेशान निर्मला वेतन के लिए दफ्तरों के चक्कर काटती रही और अफसर उसे टहलाते रहे।
रुपए नहीं होने से निर्मला मां और बेटे दोनों का न तो पेट भर पा रही थी, न सही इलाज करवा पा रही थी। 3 महीने पहले मां की बीमारी के चलते मौत हो गई। निर्मला मां की माैत के सदमे से अभी उभरी भी नहीं थी कि बेटे की हालत और खराब हो गई। वंश को कमलाराजा अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। भूख-प्यास से कमजोर हो चुके वंश ने करवाचौथ के एक दिन बाद 14 अक्टूबर को अस्पताल में आखिरी सांस ली। इकलौते सहारे की मौत से निर्मला तो टूट गई, लेकिन नगर निगम के अफसरों की संवेदनहीनता नहीं टूटी।