10 जून को चित्रकूट मंडल के खनिज अधिकारी सौरभ गुप्ता को सीएम योगी ने अचानक नोटिस देकर सस्पेंड कर दिया। वजह थी बुंदेलखंड में नियमों के खिलाफ हो रहे खनन की लगातार मिल रहीं शिकायतें। योगी के इस एक्शन के बाद हम चित्रकूट की उस माइनिंग रेंज पर पहुंचे, जहां सबसे ज्यादा खनन होता है। यहां पता चला कि इस काम में बच्चे भी शामिल हैं।
दरअसल, बुंदेलखंड में 16 साल से कम उम्र के बच्चों को जल्दी काम नहीं मिलता। मिलता भी है तो 200 रुपए प्रतिदिन का, लेकिन पहाड़ों पर खनन कराने वाले ऐसे ही बच्चों को ढूंढते हैं। वो 15 से 18 साल के बच्चों को रोजाना 500 रुपए मजदूरी देकर ग्रेनाइट की खदानों में विस्फोटक लगवा रहे हैं।
भरतकूप में चालू 8 खदानों में 50 से ज्यादा नाबालिग मजदूर
भरतकूप के पहाड़ों की तलहटी पर गोंडा, भंवरा, नया पुरवा, बजनी और कोरारी गांव हैं। खदानों पर काम करने वाले ज्यादातर मजदूर इन्हीं गांवों के हैं। गोंडा गांव के रहने वाले 16 साल के रिंकू ने माइनिंग का काम पिछले साल शुरू किया। रिंकू ने बताया, “बापू (पिता) खदान में बारूद भरने का काम करते थे। पिछले साल मार्च में सांस की बीमारी से उनकी मौत हो गई। इसके बाद पड़ोस के धर्मपाल चाचा ने हमें यहां काम दिलवा दिया।”
रिंकू कहता है, “मजदूरी करता तो 200 रुपए मिलते, यहां 8 घंटे के 500 रुपए मिलते हैं। पूरे भरतकूप में मेरे जैसे 50 से ज्यादा लड़के यहां पर चालू 8 खदानों में रोज काम पर आते हैं।” रिंकू पहाड़ी पर ब्लास्टिंग से पहले सेल यानी विस्फोटक लगाने का काम करता है।
बच्चों से लगवाए जा रहे अमोनियम नाइट्रेट और जिलेट जैसे विस्फोटक
रिंकू ने बताया, “भरतकूप की पहाड़ियों पर रोजाना 300 से ज्यादा मजदूर खुदाई, बम प्लांटिंग और पत्थरों को स्टोन क्रशिंग प्लांट तक पहुंचाते हैं। सुबह 6 से दोपहर 1 बजे तक पत्थर तोड़ने का काम होता है।”
बच्चे जिस विस्फोटक को हाथ में लेकर काम करते हैं, उसके बारे में हमने माइनिंग सुपरवाइजर से भी बात की। उन्होंने ऑफ-द-कैमरा बताया, “पत्थरों को तोड़ने के लिए यहां BEL-MX ब्रांड का विस्फोटक यूज होता है। छोटे पत्थरों के लिए 25MM और बड़ी चट्टानों के लिए 200MM विस्फोटक की रॉड लगती है। इसमें अमोनियम नाइट्रेट और जिलेट जैसे एक्सप्लोसिव होते हैं। इन्हें यहां के लोग सेल, रॉड, RDX और डायनामाइट कहते हैं।”
बच्चों को तार बिछाने से लेकर विस्फोटक फिट करने की मिलती है ट्रेनिंग
भरतकूप में बजनी रेंज की खदान पर काम करने वाले 18 साल के मजदूर संतोष ने बताया, “हम 3 साल से खदान में तार बिछाने का काम कर रहे हैं। विस्फोट से पहले कैसे सेल लगाना है? किस जगह पर सेल डालने से बड़ा विस्फोट होगा? एक तार से दूसरा तार कैसे जोड़ना है? ये सब हमें ठेकेदार के लोगों ने सिखाया है।”
बगल में खड़े दूसरे मजदूर केसू ने हां में सिर हिला दिया। ठेकेदारों का नाम पूछने पर दबी आवाज में संतोष ने अच्छू, बल्लू, मनी का नाम लिया। उसने बताया कि यही लोग ठेके पर यहां काम करवाते हैं।
बच्चों से काम कराने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
इस सवाल पर रजनीश कहते हैं, “खदान मालिकों का जिलों में बैठे खनिज अधिकारियों के साथ बैठना-उठना होता है। इसलिए जांच अधिकारी भी माइनिंग एरिया में कम जाते हैं। इससे खदानों पर मजदूरी कौन कर रहा है। ये पता नहीं चल पाता।”
1 साल में 50 से ज्यादा स्टोन क्रशिंग प्लांट्स किए गए बंद
नाबालिगों से माइनिंग में काम लिए जाने पर चित्रकूट के DM शुभ्रांत कुमार शुक्ल ने दैनिक भास्कर को बताया, “भरतकूप की पहाड़ियों पर NGT के नियमों के खिलाफ चलाए जा रहे 50 से ज्यादा स्टोन क्रशिंग प्लांट्स बीते एक साल में बंद किए गए हैं। खदानों में बाल मजदूरी करवाना नियमों के खिलाफ है। इस पर संबंधित विभागों के अधिकारियों के साथ बैठक कर जल्द एक्शन लिया जाएगा।”