पति ने बेटियों के सामने पत्नी को जिंदा जलाया, बेटे की चाहत में कराए 5 बार अबॉर्शन

 

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में  14 जून, 2016 की सुबह। जब बेटियां जागीं तो आंगन में मां को पिटते देखा। पीटने वालों में पति और ससुराल के बाकी सदस्य शामिल थे। बेटियां रोईं और मां को बचाने की कोशिश की, लेकिन पत्नी को पीट रहे शख्स ने बेटियों को जबरन धकेल कर कमरे में बंद कर दिया। फिर पत्नी पर मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगा दी। कमरे में बंद बेटियां खिड़की से जलती मां को देखती रहीं और उनको बचाने के लिए चिल्लाती रहीं। जब तक पड़ोसी आए, उनकी मां 95 प्रतिशत तक जल चुकी थी और पति समेत ससुराल वाले भाग चुके थे।

महिला का पहले बुलंदशहर और फिर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज चला। एक हफ्ते चले इलाज के बाद महिला ने दम तोड़ दिया, लेकिन मरने से पहले बेटियों को फुसफुसाकर बताया कि उसे छोड़ना मत!

सात जन्म का वादा कर लाया था घर
अब जरा फ्लैशबैक में चलते हैं। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में रहने वाले मनोज बंसल की शादी 31 जून 2000 में अनु बंसल से हुई। सात जन्म साथ निभाने का वादाकर मनोज अनु को अपने घर लाया। शादी के दो साल बाद अनु ने बेटी लतिका को जन्म दिया। पहला बच्चा ही बेटी है, इससे ससुराल वाले खफा हो गए। मनोज बंसल प्राइवेट नौकरी करता और अनु बंसल पति का हाथ बंटाने के लिए सिलाई करतीं। अपनी बेटी को अच्छे से पाल रही थी।

दूसरी बेटी पैदा हुई तो घर से निकाल दिया
लतिका के जन्म के तीन साल बाद अनु बंसल के घर में फिर से खुशियां आने वाली थीं। ससुरालवालों को बेटे की आस थी, लेकिन जब दूसरी बार भी बेटी हुई तो ससुरालवालों ने दोनों बेटियों के साथ अनु को घर से निकाल दिया।

अनु अपने मायके चली गई। मनोज की दूसरी शादी करने की बात चलने लगी। तब अनु बहुत रोई थी। इस बीच अनु के भाई ने समझदारी दिखाते हुए अपनी बहन और ससुरालवालों को समझाया। तब मनोज ने अपने घर के पास ही मकान किराए पर लिया, जहां पत्नी और दोनों बेटियों के साथ रहने लगा।

मनोज और अनु साथ रहने लगे, लेकिन यहां भी अनु की सास-ननद और जेठ-जेठानी आने लगे। ये लोग जब तब अनु को ताने देते। मनोज ने भी शराब पीकर पत्नी को पीटना शुरू कर दिया। इस बीच अनु फिर प्रेग्नेंट हुई, लेकिन गैरकानूनी तरीके से गर्भ में पल रहे बच्चे का जेंडर पता करके उसका अबॉर्शन करा दिया गया। अबॉर्शन एक-दो बार नहीं, पूरे पांच बार कराया गया।

शादी के 16 साल बाद 2016 तक हालात नहीं बदले। अनु की बड़ी बेटी लतिका बंसल 14 साल और छोटी बेटी तान्या बंसल 11 साल की हो चुकी थीं। मनोज ने बेटियों और पत्नी के खर्च के लिए पैसा देना बंद कर दिया था। अनु बेटियों की पढ़ाई और घर के खर्च के लिए सिलाई-कढ़ाई करती। 14 जून, 2016 को मनोज ने मिट्टी का तेल डालकर अनु को जिंदा जला दिया।

लतिका ने बताया कि जिस रोज मां को जलाया गया, उस सुबह ही दादी ने मां से कहा-’तू एक लड़का पैदा नहीं कर सकी। दो-दो लड़कियां पैदा की हैं और इन पर लाड तो ऐसे करती है, जैसे कहीं की राजकुमारी हों। इन छोरियों का हम क्या करें, इनसे हमारा वंश तो आगे नहीं बढ़ेगा। बेटा पैदा कर या इस घर से इन दोनों को लेकर चली जा।’ इस पर मेरी मां ने दादी का विरोध किया, जिससे पापा को गुस्सा आ गया। वे मां को मारने लगे। हम दोनों को कमरे में बंद कर दिया।

मैंने दौड़कर कमरे की खिड़की खोली। बाहर देखा तो दादी ने मां के बाल पकड़ रखे थे। मेरी दोनों बुआ-फूफा और ताई-ताऊ भी आ चुके थे। मेरी मां को बचाने की बजाय वो लोग पापा और दादी का साथ दे रहे थे, उन्हें उकसा रहे थे। बहस बढ़ने पर पापा ने मेरी मां के ऊपर मिट्‌टी का तेल छिड़का। दादी ने उन पर माचिस की जलती तीली फेंक दी। मेरी मां हम लोगों के सामने जल रही थी। वो चीख रही थी। हम दोनों कमरे से मां को बचाने की गुहार लगा रहे थे, लेकिन वे लोग मां को जलता छोड़कर भाग गए।

चीख-पुकार सुनकर पड़ोसी आए। पड़ोसियों ने मां को बचाने की कोशिश की। तान्या और मुझे कमरे से बाहर निकाला। पुलिस और एंबुलेंस को कॉल किया, लेकिन कोई मदद को नहीं आया। मामा को कॉल कर मां को जलाने की जानकारी दी। 10 मिनट के अंदर मामा और नानी घर आ गए। मां को जिला अस्पताल ले जाया गया, वहां से ​सफदरजंग भेजा गया, जहां 8वें दिन उनकी मौत हो गई।

अस्पताल में तड़पती अनु बोली-उन्हें छोड़ना मत
लतिका बताती है कि ‘मेरी और तान्या की जिंदगी रुक गई। पिता का प्यार कभी भी नहीं मिला। मां का साया पापा और बाकी घरवालों ने छीन लिया। हम दोनों अनाथ हो गए। जब मां का अस्पताल में इलाज चल रहा था, उस वक्त मैं और तान्या हर वक्त मां के आसपास रहे। मां बहुत तकलीफ में थीं। शक्ल भयानक हो गई थी। मैं उनको छू भी नहीं सकती थी। गले लगकर उनका दर्द नहीं बांट सकती थी।’ अस्पताल में मरने से पहले मां फुसफुसाई- ‘उन्हें छोड़ना मत। पढ़-लिखकर कुछ करना, जिससे लोग जाने की तुम मेरी बेटियां हो। 20 जून को डॉक्टर ने बताया कि मां नहीं रहीं।’

उसी दिन मैंने कसम खाई थी कि कुछ भी हो जाए अपने पिता और उनका साथ देने वालों को जेल पहुंचाकर रहूंगी। पहले मां का अंतिम संस्कार कराया। उसके बाद मामा के साथ थाने जाकर पिता, दादी, ताई-ताऊ, दो बुआ और फूफा समेत 8 लोगों पर हत्या करने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई।

खून से लिखा CM को लेटर, तब हुई पिता की गिरफ्तारी
मां के अंतिम संस्कार कर दोनों नाबालिग बेटियों ने पिता का घर छोड़ दिया। पहले दो महीने तक पुलिस ने जांच शुरू ही नहीं की। लतिका ने मुख्यमंत्री से मदद की गुहार लगाते हुए कई लेटर लिखे। फिर तंग आकर अपनी उंगली काटी और खून से लेटर लिखा, जो वायरल हो गया। मीडिया में खबरें छपीं। उस वक्त के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 13 अगस्त 2016 को मिलने को बुलाया। इसके बाद उनके पिता मनोज बंसल और उनके घरवालों को हिरासत में लिया गया था।

पुलिस ने जांच में मनोज बंसल को छोड़कर सबका नाम निकाल दिया। पुलिस ने जब कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की तो उसमें आईपीसी की धारा 302 (हत्या करने) को आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) कर दी। पैसे नहीं थे, इसलिए कोई भी वकील केस लड़ने को राजी नहीं हुआ। दोनों लड़कियां बुलंदशहर के एडवोकेट संजय शर्मा के यहां पहुंचीं। एडवोकेट संजय शर्मा बिना फीस लिए केस लड़ने को राजी हो गए।

नाबालिग बेटियों को ही बना दिया आरोपी
एडवोकेट संजय शर्मा ने बताया कि ये दोनों बच्चियां अपने मामा के साथ मुझसे मिलने आईं और अपनी मां की दर्दनाक दास्तां सुनाई। आरोपियों ने इन बच्चियों, उनके मामा और नानी के खिलाफ धमकाने और पैसे मांगने के आरोप में मुरादाबाद थाने में केस कर दिया। पुलिस आकर इन बच्चियों को धमकाने लगी, ताकि बच्चियां डरकर मर्डर का केस वापस ले लें। जब मैंने ​बच्चियों की पूरी बात सुनी, उसके बाद इस केस को लड़ने का फैसला किया।

पापा को पहुंचाया सलाखों के पीछे
एडवोकेट संजय ने अदालत में मामले की जांच हत्या के आरोप में कराने के लिए याचिका दी। इसके बाद संजय शर्मा को केस छोड़ने की धमकी मिली, पैसे का लालच भी दिया गया, लेकिन उन्होंने नाबालिग बेटियों की कानूनी लड़ाई लड़ी।

आखिरकार 6 साल की लंबी लड़ाई के बाद 27 जुलाई, 2022 को जिला अदालत का फैसला आया। मनोज बंसल को पत्नी अनु बंसल की हत्या का दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। 20 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया। पिछले 6 साल से दोषी मनोज बंसल जेल में है।

अनु बंसल की बेटियां अपनी मां के कातिल और अपने दोषी पिता को सजा दिलाने में कामयाब रहीं। वे मां के कत्ल में शामिल अन्य आरोपियों को ​कानून के दायरे में लाने के लिए लड़ाई लड़ रही हैं।

बाप से नहीं, मां के लिए लड़ी
लोग मुझसे पूछते हैं कि पिता के खिलाफ लड़ते हुए कमजोर नहीं पड़ी? मां की मौत के बाद हमने घर छोड़ दिया। तारीखों पर कोर्ट जाती थी। कभी पिता के चेहरे पर या बाकी घर वालों के चेहरे पर अपने लिए कोई इमोशन नहीं देखा। उल्टा हमको ताने सुनाए जाते-मिल गई संतुष्टि। अपने ही बाप को जेल पहुंचा दिया। फैसला आने के बाद मैंने जवाब दिया- मां की मौत के साथ ही मेरे पिता भी मर गए। मैं कभी बाप से नहीं लड़ रही थी। मैं सिर्फ अपनी मां के लिए लड़ रही थी।

एएसपीडी से पीड़ित होते हैं आरोपी, सिर्फ खुद की खुशी प्रा​योरिटी
मनोचिकित्सक डॉ. सुनील अवाना कहते हैं कि इस तरह के मामले में आरोपी एंटी सोशल पर्सनैलिटी ​डिसऑर्डर (ASPD) का शिकार होता है। वे अपनी खुशी के लिए दूसरे तकलीफ देते हैं। किसी को चोट पहुंचाकर या मर्डर कर उनको जरा भी अफसोस नहीं होता है। इस तरह के लोग सही और गलत की भावना वाली बात भूल जाते हैं, सिर्फ अपनी खुशी का ख्याल रखते हैं।

बचाव: सतर्क रहें और काउंसलिंग कराएं
पीड़ित को जब लगने लगे कि उसके पार्टनर को तकलीफ पहुंचाने के बाद जरा भी अफसोस नहीं होता। तकलीफ बताने के बाद भी अगर बार-बार गाली-गलौज और मारपीट कर रहा है, चोट पहुंचा रहा है तो सतर्क रहें। अपनी और अपने पार्टनर की काउंसलिंग कराएं। हालांकि, इस इस डिसऑर्डर से पीड़ित लोग जल्दी से काउंसलिंग के लिए तैयार नहीं होंगे, इसलिए परिवार व रिश्तेदारों को इन्वॉल्व करें। अगर फिर भी सुधार नहीं हो रहा है तो ऐसे रिश्ते से बाहर निकल जाएं, क्योंकि इंसान अपने मूल स्वभाव को बदल नहीं सकता और उससे बदलने की उम्मीद पाल लेना भी गलत है।

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