बेटियों से गैंगरेप-मर्डर, मां से सवाल- कपड़े कितने फटे थे, कांग्रेस से मिले 2 चेक बाउंस, 68 दिन में 45 बार कोर्ट गए

 

 

‘सरकार ऐसा कदम उठाएगी कि उनकी (आरोपियों) आने वाली पीढ़ियों की भी रूह कांप जाए’- UP के डिप्टी CM ब्रजेश पाठक ने 15 सितंबर, 2022 को ये दावा किया था। इससे एक दिन पहले 14 सितंबर को UP के लखीमपुर खीरी जिले के तमोलीपुर गांव में 2 नाबालिग दलित बहनों की लाश पेड़ से लटकी मिली थी।

UP सरकार ने सख्ती दिखाई, 6 आरोपी अरेस्ट हुए, 14 दिन में चार्जशीट भी फाइल हुई। 25 लाख रुपए मुआवजा, एक घर और सरकारी नौकरी का ऐलान हुआ। कांग्रेस, सपा, बसपा और दूसरी पार्टियों के नेता पहुंचे। फोटो खिंचवाते हुए चेक दिए गए। साथ निभाने और न्याय दिलाने के वादे भी किए।

68 दिन गुजर गए, पीड़ित परिवार करीब 45 बार कोर्ट के चक्कर लगा चुका है। अभी बयान दर्ज हो रहे हैं। UP सरकार ऐलान करके भूल गई, UP कांग्रेस कमेटी का 2 लाख का चेक, कांग्रेस विधायक वीरेंद्र कुमार चौधरी का एक लाख का चेक और UP नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष अमित जानी का दिया एक लाख का चेक बाउंस हो चुका है। एक चेक सिग्नेचर मैच न होने से रिजेक्ट हो गया।

​​​​​​वकील पूछते हैं- लड़कियों के कपड़े कहां से और कितने फटे थे
लखीमपुर जिले से करीब 55 किलोमीटर दूर निघासन तहसील के गांव तमोली पुरबा तक पहुंचने के लिए तहसील से 20 किलोमीटर अंदर जाना पड़ता है। इसी गांव के एक फूस और छप्पर से बने घर में वो 2 नाबालिग लड़कियां पैदा हुई थीं, जिनसे गैंगरेप किया गया, पीटा गया, गला दबाकर कत्ल किया गया और फिर आत्महत्या दिखाने के लिए पेड़ पर एक ही दुपट्टे के सहारे लटका दिया।

मैं इस घर में एक अजीब सिरहन के साथ दाखिल होती हूं। बच्चियों के बारे में सवाल करती हूं। बेटियों के नाम सुनते ही मां का सब्र आंसू बनकर बहने लगा, तो पिता ने खुद को संभालने की कोशिश की। कोशिश नाकाम रही। मां को संभालते-संभालते वे भी फूट-फूटकर रोने लगे। भाई अपनी छोटी बहन का स्कूल बैग उठा लाया। कॉपियां खोल-खोलकर दिखाने लगा। उसकी आंखों में भी आंसू थे।

मैं पूछती हूं केस कैसा चल रहा है? कुछ आगे बढ़ा? पिता झल्ला जाते हैं, कहते हैं, 6 आरोपियों के 6 वकील हैं। एक वकील 6-6, 7-7 बार बयान लेता है। सब बार-बार एक ही तरह के सवाल पूछते हैं। लड़कियों की मां को रोज-रोज बयान दर्ज कराने बुला लेते हैं।’

पास खड़ा भाई भी उखड़ जाता है, बताता है- मां से वकील अजीब-अजीब सवाल पूछते हैं। तुम्हारी शादी कब हुई थी? उस दिन खाने में क्या बना था? पंचायत में गांव कितने हैं? चुनाव में प्रधान कितने खड़े हुए? लड़कियों ने उस दिन क्या पहना था? कब खाना खाया था? गंदे-गंदे सवाल भी पूछते हैं- लड़कियों ने कपड़े पहने थे या नहीं? कपड़े कितने फटे थे, कहां से फटे थे?’

मैं पूछती हूं, जब ये सवाल किए जाते हैं तो कोर्ट में कौन-कौन होता है? जवाब मिला- 12 से 15 वकील और जज साहेब होते हैं।

68 दिन में कचहरी के 45-50 चक्कर लगा चुके
मैं आगे पूछती हूं, अब तक कचहरी के कितने चक्कर काट चुके हैं? सवाल के जवाब में लड़की के पिता कहते हैं- रोज ही जाते हैं, इतवार को छोड़कर। पूरा दिन वहीं रहते हैं। आधे घंटे का बयान होना होता है और बाकी दिन खाली बैठाए रहते हैं।’

कितनी बार अब तक जा चुके हैं? लड़कियों का भाई जवाब देता है- ’45-50 से भी ज्यादा बार। लखीमपुर और नौरंगा कचहरी के चक्कर लगातार लगा ही रहे हैं।’

मैं पूछती हूं, कभी बेटियों की याद आती है तो उनकी तस्वीरें देखने का मन नहीं करता?

मां झल्ला जाती हैं, कहती हैं- ‘हम लोग गरीब हैं। हमारे पास मोबाइल नहीं था। बेटे के पास मोबाइल था, लेकिन वह बाहर रहता था। जिन्हें पैदा किया, पाल-पोसकर इतना बड़ा किया, उन्हें याद करने के लिए मुझे तस्वीरों की जरूरत नहीं। हमारे पास बैठती थीं, खाना बनाकर खिलाती थीं। 3 साल तक मेरी बीमारी में खूब सेवा की।

लड़कियों की एक तस्वीर भी इस परिवार के पास नहीं है, कभी सोचा ही नहीं था कि ऐसी वजहों के लिए जरूरत पड़ जाएगी।

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