अफगानिस्तान में हालात बदतर हो गए हैं। भुखमरी का यह हाल है कि लोग अपने भूखे बच्चों को सुलाने के लिए नींद की दवा दे रहे हैं। कई लोग तो खाने के लिए अपनी बेटियों और किडनी भी बेच रहे हैं। इसका कारण तालिबान सरकार की अपने ही लोगों के प्रति अनदेखी है। पिछले साल कब्जा करने के बाद से यहां विदेशी मदद नहीं मिली है।
अफगानिस्तान के तीसरे सबसे बड़े शहर हेरात के बाहर मिट्टी के कच्चे घरों में हजारों लोग जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यहां रहने वाले अब्दुल वहाब का कहना है कि महीने में ज्यादातर दिन परिवार के एक समय के खाने तक का जुगाड़ नहीं हो पाता है। हमारे बच्चे भूख से रोते हैं और रात को सो नहीं पाते। इस कारण वह फार्मेसी से नींद की दवा ले आते हैं। वहां रहने वाले लगभग अधिकतर लोग ऐसा करते हैं।
एक साल के बच्चे को भी दवा दे रहे
एक अन्य व्यक्ति गुलान हजरत का कहना है कि वह तो मजबूरी में अपने एक साल के बच्चे को भी यह दवा देता है। वहीं डॉक्टरों का कहना है कि डिप्रेशन के इलाज में इन गोलियों को मरीज को सुलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, इसके नियमित इस्तेमाल की मंजूरी नहीं दी जाती है।
यह कभी-कभार ही इस्तेमाल करने को कहा जाता है। इसका कारण यह है कि इससे लिवर खराब हो सकता है। इसके अलावा लगातार थकान, नींद और व्यवहार संबंधी परेशानियां हो सकती हैं।
2 से ढाई लाख रुपए में बिक रहीं बच्चियां
AFP की रिपोर्ट के मुताबिक, भुखमरी से बचने के लिए शादी के नाम पर छोटी उम्र में बेची जा रही बच्चियों की कीमत 2 से ढाई लाख रुपए के बीच लगाई जा रही है। निजामुद्दीन ने बताया कि मजबूरी में उसे 5 साल की बेटी को 90 हजार रुपए में बेचना पड़ा।
पश्चिमी अफगानिस्तान में फाहिमा नाम की एक महिला ने बताया कि उसकी 6 साल और डेढ़ साल की बेटियों को उसके पति ने बेच दिया है। बड़ी बेटी की कीमत 3350 डॉलर (करीब 2.5 लाख रुपए) लगाई गई, जबकि छोटी बच्ची के बदले उन्हें 2800 डॉलर (करीब 2.1 लाख रुपए) मिले। ये पैसे भी एकमुश्त नहीं दिए गए हैं बल्कि बच्चियों को खरीदने वाले परिवार किस्तों में ये भुगतान करेंगे।
तालिबान बोला- यह हमारी समस्या नहीं
गरीबों के कैंप में अब्दुल रहीम अकबर सबसे गरीब लोगों के लिए ब्रेड या दूसरी खाने की चीजें मुहैया करा रहे हैं। उन्होंने भुखमरी के चलते बेटियों को बेचने के कई मामले सामने आने पर स्थानीय तालिबान प्रशासन से गुहार लगाई है, लेकिन तालिबान के एक अधिकारी कहा कि बाल विवाह तालिबान की समस्या नहीं है। उन्होंने कहा- ऐसी शादियों के पीछे तालिबान की सत्ता नहीं बल्कि खराब अर्थव्यवस्था जिम्मेदार है। उन्होंने अर्थव्यवस्था के खराब होने का ठीकरा अमेरिका के सिर पर फोड़ा है, जिसने अफगान सरकार की विदेशी मुद्रा तालिबान को सौंपने पर प्रतिबंध लगा रखा है।
परिवार को जिंदा रखने का दबाव, चोरी छिपे बेच रहे किडनी
भूख से निपटने के लिए लोग किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। 20 वर्षीय अम्मार (काल्पनिक नाम) ने बताया कि परिवार को जिंदा रखने के दबाव में 3 माह पहले ही सवा दो लाख रुपए में उसने अपनी किडनी बेच दी।