18 साल से बच्चा नहीं हुआ, गुड़िया ही सही; कोई बांझ तो नहीं कहेगा

 

 

दरअसल पिछले महीने खबर आई कि UP के इटावा में एक महिला ने प्लास्टिक की गुड़िया को जन्म दिया है। लोगों ने चटकारे ले लेकर खबर पढ़ी। गांव वालों ने उसे पागल करार दिया। अस्पताल वालों ने इसे ठगी का पैंतरा बताया, लेकिन किसी ने महिला का पक्ष नहीं सुना। वो महिला निशा ही है।

मैं निशा से बात करने दिल्ली से 335 किलोमीटर दूर इटावा जिले के रामिकावर गांव पहुंची…

रामिकावर निशा का ससुराल है। घर का पता पूछने पर चौपाल पर बैठे एक बुजुर्ग कहते हैं, ‘उसने पूरे गांव का नाम बदनाम कर दिया। उस पर कार्रवाई होनी चाहिए।’

उनसे बातचीत के लिए मैं जैसे ही कैमरा ऑन करती हूं, वे उठकर चल देते हैं। जाते-जाते निशा के घर का पता भी बता देते हैं।

यहां से मैं निशा के घर पहुंचती हूं। लाल साड़ी पहने निशा की सास रमा देवी चारपाई पर बैठी हैं। कैमरा देखते ही बोल पड़ती हैं, ‘जो हुईगयो सो हुईगयो, अब का कर सकत। बहुत बदनामी हुइ चुकी। आप काहे बात बढ़ावत हैं। जान देओ।’ (जो हो गया सो हो गया, अब क्या कर सकते हैं। बहुत बदनामी हो चुकी है। क्या कर सकते हैं। आप क्यों बात बढ़ा रही हैं, जाने दीजिए।)

मैं पूछती हूं निशा कहां हैं?

जवाब मिलता है- उस घटना के बाद बेटा गांव आया और बहू को लेकर फतेहपुर सीकरी चला गया।

बहू के इस फैसले पर रमा देवी ने क्या कहा, आगे बताऊंगी। यहां से मैं फतेहपुर सीकरी के लिए रवाना हो जाती हूं।

यहां निशा और उनके पति दोनों किराये के एक छोटे से कमरे में रह रहे हैं। इसी कमरे खाना-पीना सोना सब। बेड पर बैठी निशा लाल रंग के दुपट्टे में मुंह छुपाए सुबक रही हैं। आंसू पोंछकर मुझसे चाय-पानी के लिए पूछती हैं। मैं कहती हूं अभी चाय पीकर आई हूं। इसके बाद वो सिमट कर बेड पर एक कोने में बैठ जाती हैं।

निशा कहती हैं, ‘18 साल की उम्र में ससुराल आई थी। खूब लाड-प्यार मिला, लेकिन मैं बच्चा नहीं पैदा कर सकी। पति ने इटावा से लेकर दिल्ली, गुरुग्राम हर जगह मेरा इलाज कराया। 18 साल से दवाइयां खा रही हूं, लेकिन कोई फायदा नहीं।

बड़ी जेठानी के चार बच्चे हैं। वे अक्सर कह देती हैं- तू बांझ है, तू बांझ ही रहेगी, तेरे कभी बच्चे नहीं होंगे। तू बच्चा पैदा कर ही नहीं सकती। उनकी बातें मुझे चुभती थीं।’

देवरानी को एक बेटा था। वो मेरे साथ ही ज्यादा रहता था। उसकी मां कहती थी कि आपको बच्चा नहीं हो रहा तो क्या हुआ, इसे ही अपना बच्चा समझो, लेकिन कुछ साल बाद ही निमोनिया से उसकी भी मौत हो गई। इसके बाद मुझे अभागिन, मनहूस न जाने क्या-क्या बोले जाने लगा।

लोग कहने लगे कि इसकी छाया पड़ने से बच्चे की मौत हो गई। चार साल तक देवरानी को बच्चा नहीं हुआ। जेठानी मुझे देखते ही अपने बच्चों को दूर हटा देती थी।

सुबह-सुबह किसी के सामने पड़ जाती तो लोग मुंह घुमा लेते। कहते कहां से निःसंतान का चेहरा देख लिया। आज तो खाना भी नसीब नहीं होगा। किसी की शादी में चली जाती तो लोग कहने लगते कि शुभ मौके पर अपशकुन करने ये कहां से आ गई।

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